आईआईटी बाम्बे में 39 साल तक सेवाएं देने वाले रमन गरासे ने कर ली आत्महत्या

आईआईटी बाम्बे में 39 साल तक सेवाएं देने वाले रमन गरासे ने कर ली आत्महत्या
  • छात्र संगठन का दावा ग्रेच्युटी के पैसे न मिलने से परेशान होकर उठाया कदम
  • पुलिस ने कहा डिप्रेसन के चलते उठाया कदम

डिजिटल डेस्क, मुंबई. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बाम्बे में माली के तौर पर 39 वर्षों तक अपनी सेवाएं देने वाले रमन गरासे नाम के एक 65 वर्षीय बुजुर्ग की आत्महत्या के बाद विवाद खड़ा हो गया है। आंबेडकर पेरियार फुले स्टडी सर्कल (एपीपीएससी) नाम के आईआईटी बांबे के विद्यार्थियों के सोशल मीडिया एकाउंट से हुए पोस्ट में दावा किया गया है कि संस्थान द्वारा ग्रेच्युटी के पैसे न मिलने से रमन परेशान थे इसी के चलते उन्होंने यह कदम उठाया। हालांकि पवई पुलिस स्टेशन के एक अधिकारी ने दावा किया कि आत्महत्या का आईआईटी बांबे से कोई लेना देना नहीं है और रमन लकवाग्रस्त थे और अवसाद (डिप्रेसन) से जूझ रहे थे। अधिकारी के मुताबिक वे आईआईटी बांबे में ठेके पर काम करते थे और वहां के कोई नियमित कर्मचारी नहीं थे।

अदालत के आदेश के बावजूद नहीं मिले पैसे

रमन ने 1 मई के दिन पवई इलाके में स्थित अपने घर में आत्महत्या की जब पूरी दुनिया मजदूर दिवस मना रही थी। वे 31 दिसंबर 2019 को सेवा निवृत्त हुए थे। ग्रेच्युटी की मांग को लेकर उन्होंने अपने साथ सेवानिवृत्त हुए तीन अन्य लोगों के साथ लेबर कोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ी और आदेश उनके पक्ष में आया। अदालत ने आईआईटी बांबे को 10 फीसदी ब्याज के साथ रमन को 4 लाख 28 हजार 805 रुपए का भुगतान करने का निर्देश दिया लेकिन संस्थान ने आदेश को चुनौती दी। पिछले महीने अदालत ने एक बार फिर रमन के पक्ष में फैसला सुनाया। छात्रों के समूह का दावा है कि संस्थान ने आदेश को ऊपरी अदालत में चुनौती देने की तैयारी शुरू कर दी। रमन को लगा कि फैसला होने में 3-4 साल और लग जाएंगे इसलिए निराशा में उन्होंने यह कदम उठाया।

‘चार साल से पैसे नहीं मिले इसलिए निराशा ‘

आईआईटी बांबे के एक छात्र ने कहा कि अगर पुलिस दावा कर रही है कि रमन डिप्रेसन में थे तो वे यह भी बताएं कि इसकी वजह क्या है। रमन पिछले 4 साल से अपने पैसों के लिए बार-बार संस्थान का दरवाजा खटखटाकर परेशान हो गए थे। करोड़ों रुपए दान में लेने वाले आईआईटी बांबे के पास 39 साल सेवा करने वाले कर्मचारी को देने के लिए 4 लाख रुपए भी नहीं हैं। बल्कि मुकदमा लड़ने के लिए संस्थान ने इससे ज्यादा पैसे खर्च कर दिए हैं।

Created On :   3 May 2024 5:01 PM IST

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