Mumbai News: बॉम्बे हाईकोर्ट - बीमा कंपनी को पायलट के परिवार को चुकानी होगी ब्याज की भी राशि

बॉम्बे हाईकोर्ट - बीमा कंपनी को पायलट के परिवार को चुकानी होगी ब्याज की भी राशि
  • मालिक को मुआवजे की राशि के बारे में वास्तविक विवाद के बावजूद बकाया का भुगतान करने के लिए वैधानिक रूप से बाध्य किया गया है
  • एयर इंडिया चार्टर्स लिमिटेड कंपनी की विदेशी पायलट की दुर्घटना में मौत के बाद मुआवजा को लेकर दायर याचिका पर अदालत ने सुनाया अहम फैसला

Mumbai News : बॉम्बे हाई कोर्ट ने एयर इंडिया चार्टर्स लिमिटेड कंपनी की विदेशी पायलट की दुर्घटना में मौत के बाद मुआवजा को लेकर दायर याचिका पर अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने माना कि मालिक को मुआवजे की राशि के बारे में वास्तविक विवाद के बावजूद बकाया का भुगतान करने के लिए वैधानिक रूप से बाध्य किया गया है। समय पर मुहावजे की राशि पायलट के परिवार को नहीं देने के मामले में ब्याज की राशि के लिए किए गए दावे का भी बीमा कंपनी को भुगतान करना होगा। न्यायमूर्ति शर्मिला देशमुख की एकल पीठ ने कहा कि बकाया मुआवजे की राशि के बारे में वास्तविक विवाद के बावजूद मालिक को मुआवजे की तारीख से एक महीने की अवधि के भीतर स्वीकृत बकाया का भुगतान करने के लिए वैधानिक रूप से बाध्य किया गया है। भुगतान करना इसी अधिनियम की धारा 19 के तहत आयुक्तों द्वारा दावे के निर्माण तक निलंबित नहीं किया जाता है। पीठ ने वेद प्रकाश गर्ग बनाम प्रेमी देवी (एआईआर 1997 एससी 3854) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर भी भरोसा किया, जिसमें यह माना गया था कि बीमा कंपनी न केवल बीमाकर्ता मालिक द्वारा बकाया मुआवजे की मूल राशि का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है, बल्कि यदि आयुक्त द्वारा मालिक के भुगतान करने का आदेश दिया जाता है, तो उस पर ब्याज भी देने के लिए उत्तरदायी है। यह भी माना गया कि बीमा कंपनी अधिनियम की धारा 3 और 4 ए(3)(ए) के संयुक्त संचालन पर अधिनियम द्वारा बीमाकर्ता मालिक पर लगाए गए ब्याज के साथ मुआवजे के लिए दावे को पूरा करने के लिए उत्तरदायी है।

सर्बियाई (विदेशी) नागरिक एयर इंडिया कंपनी के साथ पायलट के रूप में काम कर रहा था। वर्ष 2010 में मैंगलोर में हुई दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना में ड्यूटी के दौरान मौत हो गई। वर्ष 2012 में कंपनी ने कर्मचारी मुआवजा अधिनियम 1923 (ईसीए) के नियम 6(1) के तहत निर्धारित प्रासंगिक फॉर्म 'ए' के साथ श्रम आयुक्त (कर्मचारी मुआवजा) के कार्यालय में 3 करोड़ 32 लाख15 हजार 589 रुपए जमा किए। इसी 'ए' की धारा 22 के तहत एक आवेदन दायर किया गया और याचिकाकर्ता ने उसी पर अपना जवाब दायर किया। बाद में पायलट के परिवार द्वारा एक और आवेदन दायर किया गया, जिसमें मुआवजे 50 फीसदी का अधिकतम जुर्माना और 12 फीसदी का अधिकतम ब्याज का दावा किया गया। पायलट के परिवार ने भारत आने में कठिनाई का हवाला देते हुए अपने वकील के माध्यम से दावा दायर किया। दुर्घटना के 2 साल बाद भी याचिकाकर्ता द्वारा अंतरिम मुआवजा का भुगतान नहीं किया गया और न ही कोई जमा राशि जमा की गई। याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट के समक्ष अपील दायर की, जिन्होंने इसी 'ए' की धारा 3, 4, 4 ए और 10 के साथ धारा 22 के तहत याचिका दायर किया।

मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए पीठ ने कहा कि कानून के बनाए गए प्रश्नों पर लौटते हुए जुर्माना और ब्याज लगाना कर्मचारी मुआवजा अधिनियम 1923 की धारा 4 ए के तहत निर्धारित अवधि के भीतर मुआवजा जमा करने में विफलता का कानूनी परिणाम है। मैंने पहले ही बिंदु संख्या (4) के उत्तर में माना है कि बकाया मुआवजे की राशि के बारे में किसी वास्तविक विवाद के बावजूद मालिक को मुआवजा की तारीख से एक महीने की अवधि के भीतर स्वीकृत बकाया का भुगतान करने का वैधानिक आदेश है और भुगतान करना इसी अधिनियम की धारा 19 के तहत आयुक्तों द्वारा दावे के निर्णय तक निलंबित नहीं किया जाता है। पीठ ने कहा कि मेरे विचार में चाहे मुआवजा का निर्णय आयुक्त द्वारा की गई जांच के अनुसार हो या नहीं, दुर्घटना की तारीख से एक महीने की अवधि के भीतर स्वीकृत बकाया जमा न करने पर ब्याज का भुगतान किया जाना चाहिए।

Created On :   3 Nov 2024 10:13 PM IST

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