Mumbai News: बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा - राष्ट्रपति पदक विजेता पुलिसकर्मी की गिरफ्तारी अवैध

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा - राष्ट्रपति पदक विजेता पुलिसकर्मी की गिरफ्तारी अवैध
  • अदालत ने राज्य सरकार को 2 लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश
  • सतारा के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ने पुलिसकर्मी को हत्या के मामले में दोषपूर्ण जांच के लिए की थी गिरफ्तारी



-

-

Mumbai News :

बॉम्बे हाई कोर्ट ने राष्ट्रपति पदक विजेता पुलिसकर्मी की हत्या के मामले में दोषपूर्ण जांच के लिए गिरफ्तारी को अवैध करार दिया है। अदालत ने राज्य सरकार को पुलिसकर्मी को मुआवजे के तौर पर 2 लाख रुपए देने का निर्देश दिया है। पुलिसकर्मी पर मार्च 2013 में हत्या के एक मामले में सबूत नष्ट करने और जानबूझकर दोषपूर्ण रिपोर्ट तैयार करने के आरोप था।

न्यायमूर्ति ए.एस.चंदुरकर और न्यायमूर्ति राजेश पाटिल के समक्ष पुलिस अधिकारी संभाजी पाटिल की याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में याचिकाकर्ता को गिरफ्तार करने वाले सतारा के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के खिलाफ जांच और उसे 10 लाख रुपए मुआवजा के रूप में देने की मांग की गई। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि गिरफ्तारी के अधिकार का सावधानी से इस्तेमाल नहीं किया गया है। पुलिस अधिकारी को अवैध तरीके से गिरफ्तार किया गया है। यह कोई अपवाद का मामला नहीं है, जहां याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी अनिवार्य थी और अपराध जमानती थे। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अपनी अवैध गिरफ्तारी के कारण सार्वजनिक कानून में मुआवजे की मांग करने का मामला बनाया है, जिसके परिणामस्वरूप भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।

पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता राज्य सरकार से 2 लाख रुपए का मुआवजा पाने का हकदार है। पीठ ने राज्य सरकार को 8 सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता को मुआवजे की राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया और कहा कि सरकार कर्तव्य में लापरवाही के दोषी पाए गए अधिकारी से धन वसूलने के लिए स्वतंत्र होगी। याचिकाकर्ता पाटिल को जनवरी 2004 में उसकी सराहनीय सेवा के लिए राष्ट्रपति का पुलिस पदक और उसी वर्ष उत्कृष्ट सेवा प्रदान करने के लिए पुलिस महानिदेशक का प्रतीक चिन्ह मिला था।

क्या है पूरा मामला

पाटिल 2009 में सतारा जिले के कराड शहर पुलिस स्टेशन के प्रभारी पुलिस अधिकारी के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्होंने एक हत्या के मामले की जांच की। उनके तबादले के बाद मामले की जांच दूसरे अधिकारी को सौंपी गई। 2012 में याचिकाकर्ता को सतारा के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के मामले में उनके द्वारा की गई जांच के तरीके को स्पष्ट करने के लिए बुलाया गया था। मार्च 2013 में याचिकाकर्ता अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के समक्ष उपस्थित हुए। इस दौरान उन्हें सूचित किया गया कि उनको सबूत नष्ट करने और जानबूझकर झूठी रिपोर्ट तैयार करने के आरोप में गिरफ्तार किया जा रहा है। अगले दिन याचिकाकर्ता को मजिस्ट्रेट की अदालत में रिमांड के लिए पेश किए जाने पर जमानत पर रिहा कर दिया गया।

Created On :   26 Nov 2024 9:38 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story