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बॉम्बे हाईकोर्ट: दोषियों की समय पूर्व रिहाई के लिए दिशा-निर्देश का पालन नहीं करने पर सरकार की खिंचाई
- सरकार कैदियों को समय पूर्व रिहाई प्रदान करने के लिए अपने स्वयं के दिशा-निर्देशों का पालन करने में विफल
- मुंबई की लोकल ट्रेनों में सीरियल बम विस्फोट मामला की भी सुनवाई
डिजिटल डेस्क, मुंबई. बॉम्बे हाई कोर्ट ने दोषियों की समय पूर्व रिहाई के लिए दिशा-निर्देश का पालन नहीं करने पर राज्य सरकार की खिंचाई की। अदालत ने माना कि सरकार कैदियों को समय पूर्व रिहाई प्रदान करने के लिए अपने स्वयं के दिशा-निर्देशों का पालन करने में विफल रही है। अदालत ने राज्य के गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को सरकार के रुख को स्पष्ट करने के लिए हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति भारती डांगरे और मंजूषा देशपांडे की पीठ ने पापा राठौड़ की याचिका पर कहा कि इस न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय ने बार-बार कहा है कि राज्य को अपने दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा। वह किसी विशेषाधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता है। हम ऐसे कई मामलों को देख रहे हैं, जिनमें सरकार अपनी स्वयं की नीति का पालन नहीं कर रही है। इसलिए अब इस मुद्दे को यहीं छोड़ देते हैं। सरकार अपनी नीति का पालन करे या इसे खत्म कर दे। पीठ ने कहा कि वरिष्ठ अधिकारी को अपना व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए कि नीति का पालन किया जाएगा या नहीं। यह आखिरी मौका है। अन्यथा भविष्य में हम जुर्माना लगाने में संकोच नहीं करेंगे। पीठ राज्य सरकार के इस दलील से नाराज था कि राठौड़ को उस वह लाभ नहीं दिया जा सकता, क्योंकि वह जघन्य अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने के कारण श्रेणीबद्ध होने के योग्य नहीं है। विचाराधीन नीति केवल आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (टाडा) या महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) जैसे विशेष अधिनियमों के तहत दोषियों पर लागू नहीं होगी। राज्य सरकार यह नहीं कह सकता कि वह किसी दोषी को सिर्फ इसलिए श्रेणीबद्ध नहीं करेगा, क्योंकि उस पर जघन्य अपराध का मामला दर्ज है। याचिकाकर्ता को मई 2009 में अपनी ही नाबालिग बेटी से दुराचार के आरोप में दोषी ठहराया गया था। उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि नीति में 10 साल की छूट का प्रावधान है। याचिकाकर्ता की छूट और सजा काट चुके समय को जोड़ दिया जाए, तो उसने 25 साल की सजा काट ली है। यह 20 साल की पात्रता से अधिक है। इसलिए उसे समय से पहले रिहाई का लाभ दिया जाना चाहिए।
मुंबई की लोकल ट्रेनों में सीरियल बम विस्फोट का मामला
इसके अलावा बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को 11 जुलाई 2006 में मुंबई की लोकल ट्रेनों में सीरियल बम विस्फोट की 18वीं बरसी से पहले मामले में दोषियों की अपील पर जल्द सुनवाई करने का आश्वासन दिया है। दोषी एहतेशाम सिद्दीकी ने अपने वकील युग मोहित चौधरी के माध्यम से अदालत का दरवाजा खटखटाया है। दोषी पिछले 18 वर्षों से बिना अपनी दलीलों पर सुनवाई के सलाखों के पीछे हैं। न्यायमूर्ति भारती डांगरे और मंजूषा देशपांडे की पीठ ने कहा कि हमें भारी मात्रा में दस्तावेजों से विचलित नहीं होना चाहिए, लेकिन हमें इस बात का अनुमान लगाने की आवश्यकता है कि इसमें (सुनवाई पूरी होने में) कितना समय लगेगा। हम समझते हैं कि 18 साल का समय बहुत लंबा है। पीठ ने मोहित चौधरी और विशेष सरकारी वकील राजा चौधरी को एक साथ बैठकर यह तय करने का निर्देश दिया कि उन्हें सुनवाई पूरी करने में कितना समय लगेगा। मोहित चौधरी ने कहा कि यह पहले ही हो चुका है। अगर पीठ हर दोपहर सिर्फ ट्रेन विस्फोट की अपीलों पर सुनवाई करने के लिए बैठती है, तो सुनवाई पूरी होने में छह महीने लगेंगे। मोहित चौधरी ने दलील दी कि एक दोषी कमाल अहमद अंसारी की अपील की सुनवाई की प्रतीक्षा में जेल में पहले ही मृत्यु हो चुका है, जबकि अन्य अभी भी अपनी-अपनी अपील की सुनवाई की प्रतीक्षा कर रहे हैं। उन्हें मृत्युदंड की पुष्टि का इंतजार है। पीठ ने कहा कि वह इस सप्ताह इस बारे में फैसला करेगी। 11 जुलाई 2006 को पश्चिमी रेलवे की लोकल ट्रेनों में सात ठिकानों पर बम विस्फोट हुए थे। बम विस्फोटों में 189 लोग मारे गए और 800 से अधिक लोग घायल हुए थे। 8 साल तक चले मुकदमे के बाद 13 में से 12 आरोपियों को दोषी ठहराया गया, जिसमें महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत विशेष अदालत ने 2015 में 12 में से पांच को मौत की सजा सुनाई थी। बाकी आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा हुई है।
Created On :   2 July 2024 9:41 PM IST