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Jabalpur News: डॉक्टरों के लिए भी पहेली बना युवा दिल की धड़कन का "साइलेंट' दर्द

- कमजोर पड़े दिल के तार: कम उम्र में भी स्ट्रक्चरल हार्ट डिसीज का खतरा, समय रहते जरूरी है पहचान
- पहले हार्ट डिसीज के ज्यादातर पेशेंट्स 60 साल से अधिक उम्र के होते थे।
- हार्ट के इलेक्ट्रिकल सिस्टम का डिफेक्टिव होना भी अचानक होने वाली मौतों के लिए जिम्मेदार है।
Jabalpur News: शिवपुरी में एक दिन पहले 9वीं के छात्र की धड़कने अचानक थम गईं। इससे पहले एक युवती डांस करते-करते अचानक गिरी, फिर उठी नहीं। जबलपुर के दमोहनाका में मेट्रो का बस ऑपरेटर ड्यूटी के दौरान अचेत होकर स्टेयरिंग सीट से नीचे गिर गया। मामले भले ही अलग-अलग है लेकिन इसमें एक समानता है.. साइलेंट अटैक। दिल से जुड़ी शिकायतें आमतौर पर बड़ी उम्र में आती हैं, लेकिन बीते कुछ समय में कम उम्र के युवा भी दिल की दगाबाजी का शिकार बन रहे हैं।
पहले हार्ट डिसीज के ज्यादातर पेशेंट्स 60 साल से अधिक उम्र के होते थे। अब नई समस्या यह है कि बीते कुछ सालों में 30 साल से कम उम्र के लोग भी इसका शिकार बन रहे हैं। चिकित्सकों का कहना है कि हार्ट से जुड़ी मौतों में आमतौर पर हार्ट अटैक को कारण माना जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है।
हार्ट से संबंधित व्याधियां जैसे स्ट्रक्चरल हार्ट डिसीज जिनमें हार्ट की मांस पेशियों का अत्यधिक मोटा होना, कमजोर या शिथिल होना, हार्ट के वॉल्व का सिकुड़ जाना एवं हार्ट के इलेक्ट्रिकल सिस्टम से संबंधित खराबी, अचानक होने वाली मौतों के लिए जिम्मेदार हैं। इनका शिकार 40 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति अधिक हैं, जबकि हृदय की नसों में ब्लॉकेज के चलते होने वाला हार्ट अटैक 40 से अधिक उम्र में देखा जाता है।
हार्ट की बनावट में गड़बड़ी
चिकित्सकों के अनुसार स्ट्रक्चरल हार्ट डिसीज यानी हार्ट की बनावट में गड़बड़ी के चलते भी कई समस्याएं बनती हैं। यह अनुवांशिक भी हो सकता है। हाइपर ट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी इसी से जुड़ी स्थिति है। इसमें हार्ट की मांसपेशियां मोटी हो जाती हैं, इसके कारण वॉल्व से ब्लड आउटपुट कम हो जाता है।
मेहनत का कार्य करते हुए डेथ हो जाने की यह सबसे बड़ी वजह है, जिससे एथलीट्स और जिम जाने वाले लोग प्रभावित होते हैं।
क्यूटी सिंड्रोम
दिल की धड़कन असामान्य होने की एक समस्या, जिसमें दिल की धड़कन तेज और अनियमित हो सकती है। ईसीजी का पैरामीटर-क्यूटी अंतराल बढ़ जाता है और अचानक मृत्यु हो जाती है। इसमें लंबे समय तक मरीज में कोई लक्षण नहीं दिखता लेकिन जब लक्षण दिखते हैं, तो वे गंभीर होते हैं। इसमें अचानक बेहोश होना या दौरे पड़ना शामिल है। इसमें व्यक्ति की अचानक मौत भी हो सकती है। यह जेनेटिक है।
इलेक्ट्रिकल सिस्टम का डिफेक्टिव होना
हार्ट के इलेक्ट्रिकल सिस्टम का डिफेक्टिव होना भी अचानक होने वाली मौतों के लिए जिम्मेदार है। हृदय के कंडक्शन सिस्टम में खराबी के कारण निचले चैंबर में हार्ट रेट अचानक बढ़कर 200 से 300 प्रति मिनट पहुंच जाता है। इस स्थिति को वेंट्रीक्यूलर टेकीकार्डिया या वेंट्रीक्यूलर फिब्रीलेशन कहते हैं। इलेक्ट्रिकल सिस्टम के डिफेक्टिव होने से सोते वक्त सांसें थम जाती हैं। इस घटना को ब्रुगाडा सिंड्रोम कहा जाता है।
मेडिकल कॉलेज में हर साल 2-3 मामले
सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. सोहेल सिद्दीकी कहते हैं कि हृदय से जुड़ी व्याधियों की समय रहते पहचान कर उपयुक्त उपचार और परामर्श लेकर इस गंभीर जानलेवा परिस्थितियों से बचा सकता है, क्योंकि हृदय से जुड़ी समस्या हमेशा हार्ट अटैक नहीं होती।
सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में हर वर्ष इस तरह के 2-3 मामले सामने आते हैं। ऐसी परिस्थितियाें में अस्पताल ले जाने का समय भी कम होता है, इसलिए सांसें थम जाती हैं। समय रहते पहचान कर लेना ही बचाव है।
Created On :   15 April 2025 5:20 PM IST