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Jabalpur News: किताब से ज्यादा "कीमत' परीक्षा लेती थी, अब बस्ता पूरा भरा है

- पुस्तक मेला के पीछे के पहलूू: किसी काे सहारा मिला, पर्यावरण की फिक्र देख कुुदरत भी मुस्कुराई
- प्रशासन के इस प्रयास से अब इस बात की तसल्ली है कि एक बोझ कम हो गया।
- पुरानी पुस्तकों के बार-बार उपयोग की यह पहल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी बड़ा कदम है।
Jabalpur News: बच्चे किताबों से "सबक' ताे आसानी से सीख लेते हैं लेकिन जब बारी नए सेशन में नई क्लास की किताबों को खरीदने की होती है तो बहुत सारे बच्चों के लिए स्कूल का रास्ता तय करना आसान नहीं होता। इस स्कूली सेशन में कम से कम बस्तों पर कीमत का बोझ तो हावी नहीं रहा। एक पहल ऐसी की गई कि कक्षा पहली से 12वीं तक की 34 हजार से अधिक किताबें आ गईं। शहरवासियों ने अपने-अपने बच्चों की किताबें इस साल के जरूरतमंद बच्चों के लिए भेंट कर दीं। यह सिलसिला अभी रुका नहीं है। एक बुक बैंक के रूप में साल भर चलता रहेगा।
घमापुर निवासी एक अभिभावक को जब अपनी बेटी साक्षी बर्मन के लिए 11वीं कक्षा की किताबों का सेट मिला तो उनकी खुशी चेहरे पर साफ झलक रही थी। वे कहते हैं बच्ची परीक्षा में तो हमेशा अव्वल आती रही है पर किताबों की कीमत और स्कूल की फीस की वजह से लगता था कि कब तक इसे पढ़ा पाएंंगे। बमुश्किल परिवार के खानपान का इंतजाम ही हो पाता है।
प्रशासन के इस प्रयास से अब इस बात की तसल्ली है कि एक बोझ कम हो गया। अब कम से कम प्रतिभावान बच्चों के लिए स्कूल के दरवाजे सिर्फ कीमती किताबों की वजह से बंद नहीं होंगे। करीब 33 हजार किताबें 7 दिनों तक बिखरी पड़ी रहीं। जिनको जरूरत रही वे लपक पड़े। दूसरा पहलू यह भी है कि इस बदलाव से बच्चों को न केवल किताबें मिलीं बल्कि यह परंपरा पर्यावरण के लिए अनुष्ठान जैसी साबित हुई।
खुद पर फख्र कीजिए...आपने 5 पेड़ बचा लिए
पुरानी पुस्तकों के बार-बार उपयोग की यह पहल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी बड़ा कदम है। यदि आपने भी चंद किताबें दान की हैं तो यह खुद पर फख्र करने जैसा है। एक्सपर्ट का कहना है कि औसतन एक छात्र के स्कूल बैग में 6 से 7 पुस्तकें होती हैं और इसका औसत वजन 3.50 किग्रा भी आंका जाए तो इतने कागज बनाने के लिए 49 किग्रा लकड़ी की जरूरत पड़ती। लकड़ी अगर बांस है तो मान लीजिए आपने कम से कम 5 पेड़ तो बचा ही लिए।
पेपर इंडस्ट्री से जुड़े एक सीनियर मैनेजर बताते हैं कि ए-फोर साइज की 100 पेज की 50 हजार किताबों को छापने में 70 टन लकड़ी लगती है। गौर करने वाली बात यह है कि इतनी लकड़ी को तैयार होने के लिए यूकेलिप्टस और बांस जैसे किसी पेड़ को 7 साल तक का समय लगता है। अब अंदाजा लगाइए… पर्यावरण को कितने नुकसान से बचाया गया।
34 हजार किताबों का रीयूज 2.38 लाख किलो लकड़ी बच गई
किताब मेले में अलग-अलग कक्षाओं की तकरीबन 34,000 किताबें दान की गईं।
आंकलन किया जाए तो 1 किलो कागज निर्माण के लिए 14 किलो लकड़ी की जरूरत पड़ती है।
कुल किताबों का वजन जोड़ा जाए तो आंकड़ा 17,000 किलो तक पहुंचता है।
इस नजरिए से इतने कागज के निर्माण में 2.38 किग्रा तकरीबन 24 क्विंटल पेड़ों का उपयोग होता।
पढ़-लिखकर आगे बढ़ेंगी बेटियां
कक्षा ग्यारहवीं की छात्रा साक्षी बर्मन ने हाल ही में 97 प्रतिशत अंक हासिल किए। पिता के आर्थिक हालात ठीक नहीं हैं। मेले में मिलीं पुस्तकें बड़े सहारे की तरह सामने आईं। इसी तरह अपूर्वा रजक को मेले से मिली पुस्तकें पढ़ते वक्त कुछ अलग तरह की खुशी मिलती है। वहीं पुस्तक बैंक में 8 हजार पुस्तक जमा हैं। हाल ही में दीक्षितपुरा स्कूल की शिक्षिका नंदिनी श्रीवास्तव ने इंजीनियरिंग कर रही अपनी बेटी की कक्षा 12वीं और प्रतियोगी परीक्षाओं की किताबें यहां जमा कराईं।
Created On :   21 April 2025 12:56 PM IST