जबलपुर: सामाजिक-धार्मिक आयोजनों की बाढ़, पर पुलिस वेलफेयर फण्ड में सूखा

सामाजिक-धार्मिक आयोजनों की बाढ़, पर पुलिस वेलफेयर फण्ड में सूखा
  • जबलपुर में कार्यक्रम आयोजक पुलिस व्यवस्था का लाभ तो उठाते हैं, पर उसके एवज में पुलिस को कुछ नहीं देते
  • पुण्य सलिला नर्मदा के तट पर संस्कारधानी में साल भर आयोजन चलते रहते हैं।
  • कार्यक्रम आयोजित करने में शिक्षण संस्थाएँ भी पीछे नहीं हैं।

डिजिटल डेस्क,जबलपुर। भले ही जबलपुर में सामाजिक-धार्मिक आयोजनों की बाढ़ आती है, लेकिन पुलिस को तमाम व्यवस्थाएँ करने के बावजूद पुलिस वेलफेयर फण्ड में एक पैसा नहीं मिलता। संभवतः पूरे प्रदेश का यही हाल है, जबकि पड़ोसी प्रदेश महाराष्ट्र में कोई भी सामाजिक-धार्मिक-खेल आयोजन होता है, अगर पुलिस व्यवस्था में तैनात है तो आयोजकों को उसका मूल्य चुकाना पड़ता है।

पुण्य सलिला नर्मदा के तट पर संस्कारधानी में साल भर आयोजन चलते रहते हैं। धार्मिक आयोजन तो बहुतायत से होते ही हैं, साथ ही अब सामाजिक आयोजन भी काफी होने लगे हैं। युवाओं से जुड़े संगठन भी रॉक बैंड जैसे बड़े आयोजन करने लगे हैं।

कार्यक्रम आयोजित करने में शिक्षण संस्थाएँ भी पीछे नहीं हैं। हर आयोजन की आमतौर पर न केवल प्रशासन और पुलिस से अनुमति ली जाती है, बल्कि सुरक्षा व्यवस्था सहित बहुत सी जिम्मेदारी पुलिस-प्रशासन की होती है।

हाथरस में हुए हादसे के बाद जब दैनिक भास्कर ने पुलिस कप्तान आदित्य प्रताप सिंह से जानना चाहा कि सुरक्षा आदि का प्रबंध करने के बाद पुलिस को वेलफेयर फण्ड में क्या मिलता है तो श्री सिंह ने जवाब दिया-कुछ नहीं।

कोई नहीं करता मदद

पिछले 3 साल के आँकड़े भी यही बताते हैं। ऐसा याद पड़ता है कि जब भी किसी फिल्म की शूटिंग जबलपुर में हुई निर्माता ने पुलिस वेलफेयर फण्ड में कुछ दिया था या कोई उपकरण अथवा सुविधा उपलब्ध कराई थी, पर इनके अलावा साल भर होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजक कोई मदद वेलफेयर फण्ड में नहीं करते हैं।

आँकड़ों के मुताबिक पुलिस वेलफेयर फण्ड में वर्ष 2021 में 6,68,244 रु., वर्ष 2022 में 7,34,126 रु., वर्ष 2023 में 8,04,618 रु. और वर्ष 2024 में (30 मई तक) 19,59,148 रुपए आये हैं। ये फण्ड काॅफी हाउस से आय, बैंक खाते के ब्याज, सीपीसी कैंटीन से लाभांश और पेट्रोल पम्प से प्राप्त लाभांश के रूप में आये हैं।

इसका 40 प्रतिशत जबलपुर पुलिस को मिलता है और 40 प्रतिशत प्रदेश पुलिस मुख्यालय भेजना पड़ता है, 20 प्रतिशत राशि रखरखाव में खर्च होती है। आमतौर पर वेलफेयर फण्ड सुरक्षित रहता है, जब कभी आपातकाल में इसकी जरूरत पड़ती है, खर्च किया जाता है और भोपाल प्रस्ताव भेजने पर वापस मिल जाता है।

बारात निकालने का भी शुल्क

पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र की बात करें तो वहाँ केवल बड़े आयोजन ही नहीं, बल्कि बारात निकालने में भी शुल्क लिया जाता है और इसके एवज में पुलिसकर्मी बारात के साथ तैनात रहते हैं, जो ट्रैफिक की चाल को बिगड़ने से रोकते हैं। जबलपुर, बल्कि पूरे मध्यप्रदेश में सड़क पर जमकर बारातें निकाली जाती हैं, ट्रैफिक प्रभावित होता है और पुलिस व्यवस्था के कोई इंतजाम नहीं रहते।

फैक्ट फाइल

एक अनुमान के मुताबिक जबलपुर में साल भर में 50 बड़े आयोजन, 150 मध्यम और 350 छोटे आयोजन होते हैं।

बड़े आयोजनों की सुरक्षा व्यवस्था पुलिस के लिए चुनौती होती है और डीएसपी स्तर के अधिकारी भी तैनात किए जाते हैं।

महाराष्ट्र में जिस स्तर के जितने अधिकारी-कर्मी आयोजन की व्यवस्था सँभालते हैं, उनके प्रतिदिन के वेतन से आकलन कर उतनी राशि वेलफेयर फण्ड में जमा करानी पड़ती है।

महाराष्ट्र में बारात निकालने का शुल्क बारातियों की संख्या के अनुसार लिया जाता है, बिना शुल्क बारात नहीं निकाली जा सकती, कार्रवाई हो जाती है।

जिले में होने वाले तमाम आयोजनों की व्यवस्था पुलिस करती है, अगर आयोजक पुलिस वेलफेयर फण्ड में सहयोग देने लगें तो पुलिस कर्मियों और उनके परिवारों के कल्याण के लिए बहुत कुछ किया जा सकेगा।

-आदित्य प्रताप सिंह, ,एसपी जबलपुर

Created On :   8 July 2024 4:46 PM IST

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