सतपुड़ा की सुरम्य वादियों में रची थी महादेव ने लीला, देखते ही बनता है प्राकृतिक सौंदर्य

सतपुड़ा की सुरम्य वादियों में रची थी महादेव ने लीला, देखते ही बनता है प्राकृतिक सौंदर्य
  • मन मोह लेता हैं प्राकृतिक सौंदर्य
  • हर साल पहुंचते हैं लाखों पर्यटक
  • श्रावण मास में रोज पहुंचती है कांवड़ यात्रा

डिजिटल डेस्क, छिंदवाड़ा, दिनेश लिखितकर। सतपुड़ा की सुरम्य वादियों के बीच प्राकृतिक सौंदर्य के बीच चौरागढ़ महादेव में देश भर से लाखों श्रद्धालु और पर्यटक पहुंचते हैं। यहां की बलखाती छोटी-बड़ी नदियां, झरने और हरी-भरी पहाडिय़ों की खूबसूरती मन मोह लेती है। यह धार्मिक स्थल मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम होशंगाबाद क्षेत्र के पचमढ़ी में है। श्रावण मास में यहां प्रतिदिन कांवड़ यात्रा पहुंचती है। श्रद्धालु यहां अभिषेक और विशेष पूजा अर्चना करते है। महाशिवरात्रि पर मध्य प्रदेश के उज्जैन के महाकाल और मंदसौर के ओंकारेश्वर के बाद यहां सबसे बड़ा मेला लगता है।


श्रद्धालु करीब 1326 मीटर की ऊंचाई तक 1300 सीढिय़ां चढक़र चौरागढ़ महादेव के दर्शन करने पहुंचते हैं। मनोकामना की पूर्ति के लिए अनेकों भक्त हर हर महादेव के जयकारे लगाते हुए त्रिशूल लेकर यहां पहुंचते हैं।

दक्षिण का कैलाश पर्वत

कहा जाता है कि महादेव पहाडिय़ों पर भगवान शंकर ने लीला रची थी। इसलिए महादेव पहाडिय़ों को महादेव का दूसरा घर और दक्षिण का कैलाश पर्वत माना जाता है। भक्तजन छोटे बाण से लेकर 151 किलो से भी ज्यादा वजनी त्रिशूल करीब 4200 फीट ऊंची चढ़ाई पार करने के बाद यहां अर्पित करते हैं।


पहली पायरी से शुरू होती है महादेव यात्रा

छिंदवाड़ा जिले के जुन्नारदेव नगर की पहली पायरी को महादेव यात्रा की पहली सीढ़ी माना जाता है। यहां कपूर जलाकर शिवभक्त यात्रा शुरू करते हैं। मान्यता है कि पहली पायरी से होकर ही महादेव शंकर महादेव पर्वत पर पहुंचे थे। इसीलिए पहली पायरी को महादेव यात्रा की प्रथम सीढ़ी कहा जाता है।

सात कुंडों से आता है पानी

पहली पायरी से पैदल यात्रा शुरू करने वाले शिव भक्त पद्म पठार की कठिन चढ़ाई पार करते हुए लगभग 12 किमी की यात्रा कर सतघघरी पहुंचते हैं। यहां पानी के सात कुंड बने हुए है, जो एक दूसरे से जुड़े हुए है। पहले कुंड में फूल प्रवाहित करने पर वह सातों कुंड से बहता हुआ दिखाई देता है।

भूराभगत को स्पर्श कर परिक्रमा करने की प्रथा

सतघघरी के बाद शिवभक्त गोरखनाथ, मछिंदरनाथ की चढ़ाई को पार कर नागथाना होते हुए भूराभगत पहुंचते है। इस मंदिर में भूराभगत को स्पर्श कर उसकी परिक्रमा करने की प्रथा है। भूराभगत के दर्शन के बाद ही महादेव यात्रा पूरी मानी जाती है।


दो बार पार करनी पड़ती है बेतवा नदी

भूराभगत से छोटी भुवन, बड़ी भुवन, नंदीखेड़ी तक 5 किमी दूरी तय कर शिवभक्त चौरागढ़ पर्वत की कठिन चढ़ाई चढ़ते हैं। लगभग छह किमी चलने के बाद यह रास्ता पचमढ़ी मठ से चौरागढ़ पहुंचने वाले रास्ते से मिलता हैं। इस मार्ग पर बेतवा नदी दो बार पार करनी पड़ती है।

बनेगा सेल्फी पाइंट, दूरबीन से दिखेगा नजारा

आगामी दिनों में पर्यटक सेल्फी का लुत्फ भी उठा सकेंगे और दूरबीन से सतपुड़ा की वादियों का नजारा भी देख सकेंगे। भूरागत के सरपंच और श्री भूराभगत सेवा समिति के सचिव राजेंद्र कुमार लोबो ने बताया कि पर्यटकों के लिए भूराभगत के पीछे टेकड़ी पर सेल्फी प्वाइंट जैसी सुविधाएं ऑन लाइन बुकिंग के साथ उपलब्ध कराने की तैयारी चल रही हैं।


आकर्षण

घने जंगलों और पहाड़ों के बीच पांडवों की गुफा

जटाशंकर

पचमढ़ी का हिल स्टेशन

झरने


मुंबई से कैसे जाएं

- निकटतम हवाई अड्डा भोपाल में है, जो पचमढ़ी से 195 किमी दूर है। वहां से सड़क से पचमढ़ी पहुंच सकते हैं।

- निकटतम रेलवे स्टेशन पिपरिया में है। पिपरिया रेलवे स्टेशन इटारसी जंक्शन से जबलपुर के रास्ते पर है।

- पिपरिया से 51 किमी की 2 घंटे की ड्राइव यहां पहुंचा देगी। बस, टैक्सी और जीप की सुविधा।



Created On :   7 Aug 2023 5:50 PM IST

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