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छिंदवाड़ा: लोकसभा पर नजर, कैसी होगी तस्वीर, कांग्रेस बचा पाएगी गढ़ या बीजेपी लगाएगी सेंध
डिजिटल डेस्क, छिंदवाड़ा। विधानसभा चुनाव के बाद अब ५ माह बाद होने वाले लोकसभा चुनाव पर चर्चाएं शुरू हो गई हैं। वह इसलिए कि पिछली बार प्रदेश की २९ में से २८ लोकसभा सीटें जीतने वाली भाजपा की नजर छिंदवाड़ा पर है। विधानसभा चुनाव परिणाम के चौथे दिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने छिंदवाड़ा की दौड़ लगाई। कार्यकर्ताओं को लोकसभा सीट जिताने का संकल्प दिलाया। अब १२ दिसंबर को कमलनाथ यहां आ रहे हैं। वैसे तो उनका आगमन आभार जताने के लिए हो रहा है, लेकिन आभार के साथ ही अगली तैयारियों पर भी मंथन वे कर सकते हैं। यानी अगले पूरे पांच माह फिर जिले में चुनाव बादल छाए रहने के पूरे आसार हैं।
मोदी-शाह की रैलियां और प्रबंधन भी सफलता में कन्वर्ट नहीं हुआ:
विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो वर्ष २०१८ और २०२३ एक जैसी है। पीएम मोदी की रैली के बाद भी वर्ष २०१८ में भी कांग्रेस सातों सीट जीती थी और इस बार भी क्लीन स्वीप किया है। भाजपा की पूरी ताकत झोंकने और मोदी लहर के बावजूद कांग्रेस वर्ष २०१९ का लोकसभा जीत गई थी। इस बार विधानसभा चुनाव में गृहमंत्री अमित शाह की दो रैलियों और संसाधन व गुजरात सहित अन्य राज्यों की टीम की मौजूदगी के बावजूद भाजपा हार गई। यह एक तरह से लोकसभा का ट्रायल था। अब भाजपा को छिंदवाड़ा के लिए नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ सकती है।
सीएम फेस पर लोगों ने विश्वास जताया, अब आगे क्या:
वर्ष २०१९ का लोकसभा चुनाव कांग्रेस ने प्रदेश में अपनी सत्ता रहते हुए लड़ा था और पूरे देश में मोदी की लहर को यहां प्रभावी नहीं होने दिया था। नकुलनाथ पहली बार चुनाव लड़े और जीते थे। इस बार विधानसभा चुनाव में जिले की जनता ने कमलनाथ के मुख्यमंत्री फेस पर भरोसा जताया और सातों सीटें दीं। लोकसभा चुनाव कांग्रेस किन मुद्दों पर लड़ेगी और कैसे लोगों का विश्वास जीत पाएगी यह बड़ी चर्चा का विषय बना हुआ है।
गुटबाजी... भाजपा-कांगे्रेस दोनों के भीतर:
कांग्रेस: इस चुनाव में कांग्रेस को गुटबाजी का सामना भी करना पड़ा। जुन्नारदेव, परासिया और सौंसर में गुटबाजी का बोलबाला रहा। जुन्नारदेव और परासिया के नजदीकी मुकाबले भी गुटबाजी की वजह से बने। कमलनाथ के सीएम फेस होने से गुटबाजी का असर फीका पड़ गया। अब आगे की स्थितियां सामने आनी हैं।
भाजपा: यहां गुटबाजी की खाई लगातार बढ़ते जा रही है। जिसके चलते पहले निकाय चुनाव और अब विधानसभा चुनाव पर असर पड़ा। कोई किसी की मानने को तैयार नहीं दिख रहा है। शिकवा-शिकायतों का दौर चल पड़ा है। सोशल मीडिया पर कमेंट जारी हैं। भाजपा से जुड़े लोगों का कहना है कि लोकसभा चुनाव भी गुटबाजी की भेंट चढ़ सकता है।
जानिए... कितनी सहज, कितनी कठिन है डगर
कांग्रेस:
सहज: विधानसभा चुनाव में सातों सीट कांग्रेस ने जीती है। कांग्रेस को अपनी तैयारियों को मेनटेन रखना है। जिले में भाजपा को विधानसभा चुनाव में तमाम प्रयासों के बाद हार के रूप में मिली हताशा का फायदा उसे मिल सकता है।
कठिन: पिछला लोकसभा चुनाव कांग्रेस में प्रदेश की सत्ता में रहते हुए लड़ा था। मोदी लहर के बावजूद परिस्थतियां अनुकूल थी। अब प्रदेश में सत्ता नहीं हैं। परिस्थितियां प्रतिकूल हैं। सत्ता तक नहीं पहुंच पाने से कार्यकर्ता मायूस हैं।
भाजपा:
सहज: केंद्र और राज्य दोनों में भाजपा की सत्ता है। पर्याप्त संसाधन हैं। मजबूत चेहरा मिलता है तो चुनाव सहज हो सकता है। वर्ष २०१९ में प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता थी, खुद कमलनाथ मुख्यमंत्री थे। चेहरे का संकट था।
कठिन: वर्ष २०१९ की तुलना में अब भाजपा की गुटबाजी चरम पर पहुंच गई है। गुटबाजी का विधानसभा स्तर पर विस्तार हो गया है। एक नहीं हुए तो परिणाम फिर वही हो सकते हैं।
Created On :   11 Dec 2023 5:24 PM IST