Satyajit Ray Birthday: ऐसे आया फिल्में बनाने का आइडिया, पत्नी के गहने बेचकर बनाई पहली फिल्म
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डिजिटल डेस्क, मुम्बई। भारतीय सिने जगत के इतिहास में "सत्यजीत रे" किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। वे फिल्मी जगत के पहले ऐसे निर्देशक थे, जिनके पास "ऑस्कर अवॉर्ड "खुद चलकर आया। सत्यजीत रे के काम को देखते हुए ही कई सितारों ने फिल्मों में हाथ अजमाया था। साफ शब्दों में कहा जाए तो वे खुद ही एक चलता फिरता सिनेमा थे। 2 मई 1921 में कोलकत्ता में जन्मे सत्यजीत रे अपने काम का लोहा पूरी दुनिया में मनवा चुके हैं। जब उनकी उम्र तीन साल थी, तब उनके पिता का देहांत हो गया था। उनकी मां सुप्रभा ने कई दिक्कतों का सामना कर उनका लालन पालन किया।
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सिने जगत का सबसे प्रतिष्ठित ऑस्कर अवॉर्ड, सत्यजीत रे के काम को देखते हुए उनके पास खुद चलकर आया था। दरअसल, 1992 में जब सत्यजीत रे को ऑस्कर (ऑनरेरी अवॉर्ड फॉर लाइफटाइम अचीवमेंट) देने की घोषणा की गई, लेकिन उस वक्त वे बहुत बीमार थे। इस वजह से वे यह अवॉर्ड लेने नहीं जा सकते थे। ऐसे में ऑस्कर के पदाधिकारियों फैसला लिया कि ये अवॉर्ड उनके पास पहुंचाया जाएगा। पदाधिकारियों की टीम कोलकाता में सत्यजीत रे के घर पहुंची और उन्हें अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। अवॉर्ड मिलने के एक महीने के भीतर ही सत्यजीत रे को दिल का दौरा पड़ा और उनका निधन हो गया। इस तरह हमने सिने जगत का एक सितारा खो दिया। आज भी जब बॉलीवुड में उनके नाम का जिक्र होता है तो फिल्मों के प्रति उनके त्याग और समर्पण को जरुर याद किया जाता है।
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इस फिल्म ने समीक्षकों का दिल खुश कर दिया। यह फिल्म कोलकत्ता में कई हफ्तो तक हाउस फुल चलती रही। साथ ही इस फिल्म ने कई राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय पुरस्कार जीते। इनमें फ्रांस के कांस फिल्म फेस्टिवल में मिला विशेष पुरस्कार बेस्ट ह्यूमन डॉक्यूमेंट भी शामिल है।
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1952 में सत्यजीत रे ने एक नौसिखिया टीम लेकर फिल्म की शूटिंग शुरू की। इस नए फिल्मकार के साथ कोई भी दाव लगाने को तैयार नहीं था। उनके पास जितने भी पैसे थे, वे सब उन्होंने फिल्म में लगा डाले। इतना ही नहीं फिल्म के लिए उन्होंने अपनी पत्नी के जेवर तक बेच दिए थे। जब तक पैसे थे तब तक फिल्म की शूटिंग चलती रही, लेकिन पैसे खत्म होने के बाद फिल्म की शूटिंग रोकनी पड़ी। उन्होंने कुछ लोगों से मदद लेने की कोशिश की, लेकिन वे फिल्म में अपने हिसाब से कुछ बदलाव चाहते थे जिसके लिए रे तैयार नहीं थे। आखिर में पश्चिम बंगाल सरकार ने उनकी मदद की और 1955 में 'पाथेर पांचाली' परदे पर आई।
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किसी काम के चलते सन् 1950 में उन्हें अपनी कंपनी की तरफ से लंदन जाने का मौका मिला। वहां पर उन्होंने कई फिल्में देखी। उन फिल्मों को देखकर वे काफी प्रभावित हुए और उन्होंने तय किया कि भारत आकर 'पाथेर पांचाली' पर फिल्म बनाएंगे।
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सत्यजीत रे ने अपने काम की शुरुआत ग्राफिक डिजाइनर के तौर पर की थी। उस दौरान उन्होंने कई किताबों के कवर पेज डिजाइन किए थे। इन किताबों में जिम कार्बेट की मैन इट्स ऑफ कुमाऊं और जवाहर लाल नेहरु की डिस्कवरी ऑफ इंडिया शामिल है। विभूतिभूषण बंधोपाध्याय के मशहूर उपन्यास 'पाथेर पांचाली' का बाल संस्करण तैयार करने में सत्यजीत रे ने अहम भूमिका निभाई थी। इसका नाम था अम अंतिर भेपू (आम के बीज की सीटी)। इस किताब से सत्यजीत काफी प्रभावित हुए। उन्होंने इस किताब के कवर के साथ इसके लिए कई रेखाचित्र भी तैयार किए जो बाद में उनकी पहली फिल्म पाथेर पांचाली के खूबसूरत और मशहूर शॉट्स बने।
Created On :   2 May 2019 9:33 AM IST