Fake News: आइन्स्टाइन को डॉक्टरेट के लिए बर्न यूनिवर्सिटी ने किया था रिजेक्ट, जानें क्या है वायरल लेटर का सच

Fake News: आइन्स्टाइन को डॉक्टरेट के लिए बर्न यूनिवर्सिटी ने किया था रिजेक्ट, जानें क्या है वायरल लेटर का सच

Bhaskar Hindi
Update: 2020-09-19 10:05 GMT
Fake News: आइन्स्टाइन को डॉक्टरेट के लिए बर्न यूनिवर्सिटी ने किया था रिजेक्ट, जानें क्या है वायरल लेटर का सच

डिजिटल डेस्क। सोशल मीडिया पर साल 1907 में भौतिकशास्री एल्बर्ट आइंस्टाइन की डॉक्टरेट एप्लिकेशन रिजेक्ट करने का एक लेटर वायरल हो रहा है।  लेटर के मुताबिक, बर्न यूनिवर्सिटी एल्बर्ट आइंस्टाइन की डॉक्टरेट डिग्री की एप्लिकेशन रिजेक्ट करती है और उन्हें असोसिएट प्रोफ़ेसर के पद के लिए भी अयोग्य ठहराती है। 

किसने किया शेयर?
कई ट्विटर और फेसबुक यूजर ने भी इस लेटर को शेयर किया है। वहीं फ़िल्म निर्देशक शेखर कपूर ने ये लेटर 18 सितंबर 2020 को ट्वीट किया था। इसके अलावा कांग्रेस नेता शशि थरूर ने ये लेटर साल 2018 में शेयर किया था। 11 जून 2018 के उनके इस ट्वीट के मुताबिक, “उनके लिए जो रिजेक्शन से डरते हैं- जो आज पॉवर में हैं (और ऐसे स्थान पर हैं जहां से आपके बारे में राय बना सकें) ज़रूरी नहीं कि ये लोग कल सही ही साबित हों और आपके बारे में बनाई गई उनकी राय मूर्खतापूर्ण भी साबित हो सकती है।” 

क्या है सच?
भास्कर हिंदी टीम ने पड़ताल में पाया कि, सोशल मीडिया पर वायरल लेटर फर्जी है। अमेरिकन फैक्ट-चेकिंग ऑर्गेनाइजेशन स्नोप्स ने मई 2016 में इस खत की जांच की थी। उनकी रिपोर्ट के मुताबिक, ये बात सच है कि बर्न यूनिवर्सिटी ने साल 1907 में आइंस्टाइन की शुरुआती डॉक्टरेट एप्लिकेशन को अपर्याप्त मानते हुए नकार दिया था और उनको असोसिएट प्रोफेसर पद के लिए भी रिजेक्ट कर दिया था। लेकिन हाल में शेयर हो रहा लेटर वो नहीं है जिसे बर्न यूनिवर्सिटी ने साल 1907 में आइंस्टाइन को भेजा था। ये एक फर्जी लेटर है। 

स्नोप्स के मुताबिक, “जिस देश की मूल भाषा जर्मन हो, ऐसे देश स्विट्जरलैंड में स्थित बर्न यूनिवर्सिटी ने जर्मन बोलनेवाले आइंस्टाइन को अंग्रेजी भाषा में पत्र लिख कर रिप्लाइ करे, ये बात समझ में नहीं आती। बर्न यूनिवर्सिटी ने आइंस्टाइन का ऐकडेमिक काम भी जर्मन भाषा में ही पब्लिश किया है।” इसके अलावा, एक और बात पर गौर करना चाहिए कि लेटर में बर्न का पोस्टल कोड (3012) लिखा हुआ है जबकि 1960 के दशक तक स्विट्ज़रलैंड ने चार अंकों वाले पोस्टल कोड की सुविधा को अपनाया ही नहीं था।  इस खत की सच्चाई सामने आने के बाद थरूर ने अपनी गलती भी स्वीकार की थी। इस तरह, पिछले कई सालों से ये फर्जी खत सोशल मीडिया पर साल 1907 में बर्न यूनिवर्सिटी द्वारा आइंस्टाइन को भेजा गया असली खत मानकर शेयर किया जा रहा है। 

निष्कर्ष : सोशल मीडिया पर साल 1907 में भौतिकशास्री एल्बर्ट आइंस्टाइन की डॉक्टरेट एप्लिकेशन रिजेक्ट करने का वायरल लेटर फर्जी है। 

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