माघ अष्टमी: भीष्म अष्टमी के व्रत करने से मिलता है पुण्य लाभ, जानें पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

  • इस दिन को साल का सबसे पवित्र समय माना गया है
  • माघ माह की अष्टमी को मोक्ष का दिन भी कहा जाता है
  • तर्पण करने से योग्य एवं संस्कारी संतान की प्राप्ति होती है

Bhaskar Hindi
Update: 2024-02-17 06:24 GMT

डिजिटल डेस्क, भोपाल। माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को ‘भीष्म अष्टमी’ कहा जाता है। भीष्म अष्टमी उत्तरायण के दौरान आती है, जब सूर्य अपनी उत्तर दिशा में होते हैं। इसे साल का सबसे पवित्र समय माना जाता है। इस वर्ष भीष्माष्टमी को लेकर संशय की स्थिति निर्मित हुई, ऐसे में कई स्थानों पर 16 फरवरी शुक्रवार को पूजा की गई। वहीं कई लोग आज यानि कि 17 फरवरी को भीष्माष्टमी मान रहे हैं।

माघ माह के शुक्ल पक्ष के आठवें दिन को मोक्ष का दिन भी कहा जाता है। माना जाता है कि, इस दिन भीष्म पितामह के नाम से पूजन तर्पण आदि करने से योग्य एवं संस्कारी संतान की प्राप्ति होती है। साथ ही पित्त दोष के भी मुक्ति मिलती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं इस व्रत और पूजा विधि के बारे में...

महत्व

श्रीमद्भगवद्गीता में बताया गया है कि किस तरह अर्जुन के तीरों से घायल होकर महाभारत के युद्ध में जख्मी होने के बावजूद भीष्म पितामह 18 दिनों तक मृत्यु शैय्या पर लेटे थे। उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था जिसकी वजह से शैया पर आने के बाद भी उन्होंने अपने प्राण नहीं त्यागे थे और माघ माह की अष्टमी के दिन का चयन इसके लिए किया। इसी तिथि को देवव्रत यानि भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागे थे। इसी वजह से इसे भीष्म अष्टमी के नाम से जाना जाता है।

पूजा विधि

- भीष्म अष्टमी के दिन व्रती को किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए।

- ध्यान देने वाली बात यह कि, व्रती या साधक को इस दिन बिना सिले वस्त्र धारण करने चाहिए।

- इसके बाद दाहिने कंधे पर जनेऊ या गमछा धारण करें।

- दाहिने कंधें पर गमछा रखें और हाथ में तिल और जल लें।

- इसके बाद दक्षिण की ओर मुख कर "वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृतिप्रवराय च. गंगापुत्राय भीष्माय, प्रदास्येहं तिलोदकम् अपुत्राय ददाम्येतत्सलिलं भीष्मवर्मणे" मंत्र का जाप करें।

- अब तिल और जल के अंगूठे और तर्जनी उंगली के मध्य भाग से होते हुए पात्र में छोड़ें।

- इसके बाद जनेऊ या गमछे को बाएं कंधे पर डाल लें और गंगापुत्र भीष्म को अर्घ्य दें।

- इसके बाद तर्पण वाले जल को किसी पवित्र वृक्ष या बरगद के पेड़ पर चढ़ा दें।

- पूजा के अंत में हाथ जोड़कर भीष्म पितामह और अपने पितरों को प्रणाम करें।

डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिष/वास्तुशास्त्री/ अन्य एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें।

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