धनतेरस 2024: क्यों मनाते हैं धनतेरस का त्योहार? क्या मान्यता है सोना चांदी खरीदने की? जानें इसकी पौराणिक कथाओं के बारे में
- क्यों मनाते हैं धनतेरस?
- माता लक्ष्मी और भगवान कुबेर की करते हैं विधि विधान से पूजा
- जानें धनतेरस की पौराणिक कथाओं के बारे में
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देशभर में दीपोत्सव की तैयारियां जोरों पर हैं। लोग अपने घरों की साफ-सफाई और सजावट करने में जुटे हुए हैं। हर साल दिवाली में हम लोग अपने घर की अच्छी तरह से साफ सफाई करते हैं। वहीं, दिवाली से ठीक दो दिन पहले धनतेरस का भी त्योहार मनाया जाता है। कई लोग कोशिश करते हैं कि धनतेरस से पहले ही घर की साफ-सफाई पूरी हो जाए। क्योंकि धनतेरस की भी अपनी ही मान्याताएं हैं। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इसलिए इसे धनत्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य धन, समृद्धि, और स्वास्थ्य की प्राप्ति की कामना करना है। धनतेरस में लोग विधि-विधान से देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की पूजा करते हैं, ताकि उनके घर में सुख-समृद्धि और वैभव का आगमन हो। इस दिन लोग सोने, चांदी के सिक्कों के अलावा कई अन्य धातुओं के बर्तन भी खरीदते हैं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन की गई खरीदारी से घर में खुशहाली और समृद्धि आती है। यह केवल एक धार्मिक त्योहार ही नहीं है, बल्कि यह सामाजिक मेलजोल और एकता का भी प्रतीक है। लोग एक-दूसरे के घर जाकर मिठाइयां और उपहार देते हैं, जिससे संबंधों में मजबूती आती है। इस साल धनतेरस 29 अक्टूबर को मनाया जाएगा। तो चलिए जानते हैं कि धनतेरस का त्योहार क्यों मनाते हैं और इसकी शुरुआत कैसे हुई।
धनतेरस की पौराणिक कथाएं
धनतेरस का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है – "धन" जिसका अर्थ है धन-दौलत और "तेरस" जिसका अर्थ है तेरहवां दिन। इसे संपत्ति और समृद्धि के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, इसलिए इस दिन नई चीजों की खरीदारी को विशेष रूप से शुभ माना जाता है। वैसे तो धनतेरस के पीछे कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं लेकिन आज हम आपको मुख्य रूप से दो प्रमुख कथाओं के बारे में बताएंगे।
समुद्र मंथन की कथा
धनतेरस का एक पौराणिक संबंध समुद्र मंथन से जुड़ा है। पुराणों के मुताबिक, एक बार जब कुछ कारणों से सृष्टि से सारी धन-संपदा गायब हो गई तब स्वर्ग पर असुरों का राज्य हो गया था। जिसके बाद इस समस्या के हल के लिए त्रिदेवों ने सागर मंथन कराने का फैसला लिया। जिसके लिए भगवान विष्णु ने क्षीर सागर में कच्छप अवतार धारण किया था। इसके बाद देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया, जिससे 14 रत्न निकले थे। इन 14 रत्नों में से एक रत्न धन्वंतरि थे, जो हाथ में अमृत कलश लिए प्रकट हुए। इसी में मां लक्ष्मी भी थीं। मान्यता के अनुसार, भगवान धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अंश माना जाता है और इनको आयुर्वेद का जनक भी कहा जाता है। इसलिए भगवान धन्वंतरि और मां लक्ष्मी के प्रकट होने की याद में धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। वहीं इस दिन घर के द्वार पर तेरह दीपक जलाए जाने की भी प्रथा है।
राजा हेम और उनके पुत्र की कथा
धनतेरस की इस दूसरी कथा के अनुसार, हिमा नाम का एक राजा था जिसका एक पुत्र था। उसके पुत्र की कुंडली में यह भविष्यवाणी की गई थी कि शादी के चार दिन बाद सांप के काटने से उसकी मृत्यु हो जाएगी। जब उसकी शादी के बाद वह दिन आया तब उसकी पत्नी ने समझदारी दिखाकर भाग्य को पलटने का सोचा। उसने सोने और चांदी के गहनों से अपने घर के दरवाजे पर ढेर लगा दिया और सारे घर को रोशनी से सजा दिया। ऐसा माना जाता है कि मृत्यु के देवता यमराज उस रात एक सांप के रूप में राजा हेम के पुत्र की आत्मा लेने आए थे। लेकिन घर की चमक और गहनों की चकाचौंध ने उन्हें थोड़ी देर के लिए अंधा कर दिया और वे घर के दरवाजे पर ही बैठ गए। सुबह होते ही यमराज वापस चले गए और इस तरह राजा हेम के पुत्र की जान बच गई। तभी से इस दिन को यमदेव के सम्मान में भी मनाया जाता है और इसे यमदीपदान कहा जाता है। इस दिन लोग यमराज को खुश करने के लिए दीप जलाते हैं।