Satna News: भ्रष्टाचार के मामले में 13 वर्ष बाद भी अभियोजन स्वीकृति नहीं पेश कर पाई पुलिस
- विचाराधीन मामले में अदालत में आरोपियों के बयान दर्ज किए जा रहे हैं।
- इस लापरवाही से आरोपियों के दोषमुक्ति की दशा में अधिकारी स्वयं जिम्मेदार होंगे
Satna News: जिले की बडख़ेरा पंचायत में हुए भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितता के एक मामले में विवेचना अधिकारियों की एक बड़ी लापरवाही सामने आई है। चार साल की विवेचना के बाद वर्ष 2015 में आरोपियों के विरूद्ध अभियोग पत्र तो सभापुर थाना पुलिस ने प्रस्तुत कर दिया, लेकिन आरोपित शासकीय कर्मचारियों के विरूद्ध जरूरी अभियोजन स्वीकृति का दस्तावेज 9 वर्षों के विचारण के दौरान भी प्रस्तुत नहीं कर सकी है। इस संबंध में प्रकरण की पैरवी कर रहे शासकीय अभिभाषक ने संबंधितों को पत्र लिखकर अभियोजन स्वीकृति प्रस्तुत किए जाने का निर्देश दिया है, साथ ही इस लापरवाही से आरोपियों के दोषमुक्ति की दशा में अधिकारी स्वयं जिम्मेदार होंगे, की चेतावनी भी दी है।
ये है मामला
ग्राम पंचायत बडख़ेरा में वर्ष 2006 से 2008 के बीच हुए शासकीय निर्माण कार्यों में लाखों रुपए गबन कर वित्तीय अनियमितता की शिकायत बडख़ेरा निवासी आनंद शर्मा ने सभापुर थाने में 23 अप्रैल 2011 को दर्ज कराई थी। थाना पुलिस ने फर्जीवाड़े की इस शिकायत पर तत्कालीन सरपंच बडख़ेरा माया सेन, सचिव हीरामणि अग्निहोत्री, उपयंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा जयपाल किरकिट्टा, उपयंत्री रोजगार गारंटी परिषद सुभाष प्रसाद, उपयंत्री जल संसाधन विभाग ओमप्रकाश मिश्रा, उपयंत्री एसएल प्रजापति, विकासखंड अधिकारी मांगीलाल आस्के के विरूद्ध भारतीय दंड विधान की धारा 420, 120बी, 467, 468, 471 और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1) (डी), 13(2) का प्रकरण दर्ज किया।
4 साल बाद आई चार्जशीट
इस बहुचर्चित मामले में प्रकरण वर्ष 2011 में थाना पुलिस द्वारा दर्ज किया गया और एसडीओपी स्तर के कई अधिकारियों ने कई वर्षों तक विवेचना की, लेकिन अभियोग पत्र न्यायालय में प्रस्तुत नहीं किया गया। तब शिकायतकर्ता ने सीएम हाउस के सामने जाकर शिकायत दर्ज कराई, जिस पर आनन-फानन में अपनी गर्दन बचाते हुए आरोपियों के विरूद्ध अभियोग पत्र विशेष न्यायालय में प्रस्तुत किया गया। 4 साल तक चली लंबी-चौड़ी विवेचना के दौरान पुलिस के जिम्मेदार अधिकारियों ने विवेचना तो की, लेकिन मामले में संलिप्त शासकीय कर्मियों के विरूद्ध अभियोजन स्वीकृत प्राप्त नहीं किया और महज कागजी खानापूर्ति करते हुए सभी आरोपियों के विरूद्ध चालान प्रस्तुत कर आरोपियों को बचाव का पहले तो अवसर दिया ही, बाद में भी उनके बचाव का रास्ता प्रशस्त कर दिया।
विशेष अभियोजक ने पकड़ी गड़बड़ी
यह मामला जहां वित्तीय अनियमितता का थाना पुलिस ने प्रस्तुत किया, वहीं थाना पुलिस द्वारा की गई वित्तीय अनियमितता भी कम नहीं है। प्रकरण में की गई गड़बडिय़ों की जानकारी जैसे ही शासकीय अभिभाषक को हुई, वैसे ही लोक अभियोजक ने एसडीओपी चित्रकूट को 2024 के फरवरी, मार्च और अप्रैल एवं जुलाई 2024 में अभियोजन स्वीकृति के बिना प्रस्तुत चालान के बारे में जानकारी देते हुए तत्काल अभियोजन स्वीकृति प्राप्त कर प्रस्तुत करने का पत्र जारी किया।
फरवरी 2024 से शासकीय अधिवक्ता द्वारा मांग किए जाने के बावजूद भी वर्ष 2024 तक प्रकरण में अभियोजन स्वीकृति पुलिस प्रशासन द्वारा प्रस्तुत नहीं की जा सकी है। इसी बीच अभियोजन स्वीकृति के अभाव में आरोपियों की सूची में दर्ज किए गए उपयंत्री ग्रामीण जयपाल किरकिट्टा का नाम अदालत ने मामले की आरोपियों की सूची से पृथक कर दिया है। इस विचाराधीन मामले में अदालत में आरोपियों के बयान दर्ज किए जा रहे हैं।