ठेकेदार ब्लैक लिस्टेड: जमा राशियां भी सीज करने के निर्देश,मुक्त कराई जाएगी रेल लाइन की जमीन
- नाले की तलाश के लिए कराएंगे सीमांकन
- 3 साल में ठेकेदार ने कमाए 2.99 करोड़ और फिर टेंडर टर्मिनेट करा कर ले ली विदाई
- शासन को हुई आर्थिक क्षति के लिए आखिर कौन जिम्मेदार?
डिजिटल डेस्क,सतना। नगरीय विकास एवं आवास राज्यमंत्री प्रतिमा बागरी ने नारायण तालाब की मेड़ फूटने के मामले में भोपाल के ठेकेदार केएन नारंग को दोषी मानते हुए एग्रीमेंट टर्मिनेट करने के निर्देश दिए हैं। ठेकेदार को ब्लैक लिस्टेड करने और जमा राशियां सीज करने का भी निर्णय लिया गया है।
राज्यमंत्री ने बताया कि शेष काम का प्राक्कलन तैयार कर टेंडर बुलाने का भी फैसला लिया गया है। समीक्षा बैठक में तय किया गया कि तकनीकी मार्गदर्शन के बिना नारायण तालाब के ओवर फ्लो के पानी की निकासी के लिए हृयूम पाइप कल्वर्ट न बनाए जाने के कारण यह स्थिति बनी।
टीसीईएल से रिपोर्ट तलब
राज्यमंत्री ने इस मामले में टीसीईएल से टेक्निकल रिपोर्ट तलब करते हुए अब तक की कार्यवाही का ब्यौरा मांगा है। उन्होंने कहा कि नारायण तालाब के ओवर फ्लो की निकासी के लिए नाला निर्माण की भूमि का सीमांकन कराया जाएगा। अतिक्रमण हटा कर नया नाला बनाया जाएगा। रीवा रोड से कृपालपुर तक प्रस्तावित पुरानी रेल लाइन का अतिक्रमण भी हटाया जाएगा।
ये भी थे मौजूद
राज्यमंत्री प्रतिमा बागरी की अध्यक्षता में आयोजित समीक्षा बैठक में मेयर योगेश ताम्रकार, निगमायुक्त शेर सिंह मीना, स्मार्ट सिटी के डायरेक्टर महेंद्र पांडेय, उपायुक्त वित्त भूपेंद्र देव परमार, कार्यपालन यंत्री आरपी सिंह, अरुण तिवारी और सहायक यंत्री अंशुमान सिंह भी उपस्थित थे।
नारायण तालाब: 3 साल में ठेकेदार ने कमाए 2.99 करोड़ और फिर टेंडर टर्मिनेट करा कर ले ली विदाई
काम से ज्यादा दिए दाम: असल में 45 फीसदी भौतिक प्रगति, मगर वित्तीय प्रगति 55 प्रतिशत
स्मार्ट सिटी फंड से 10.3 करोड़ की प्रोजेक्ट कास्ट पर प्रस्तावित नारायण तालाब के ब्यूटीफिकेशन के काम को महज 8.56 करोड़ में हथियाने में कामयाब रहे भोपाल के संविदाकार केएन नारंग ने अंतत: कमाल कर दिया।
जानकारों के दावे के मुताबिक तकरीबन 70 वर्ष पुराने 7 एकड़ तालाब क्षेत्र में फूड कोर्ट, इवेंट जोन, एडवेंचर जोन, सिटिंग एरिया, पाथवे, घाट एवं बंड ,पार्किंग और टायलेट ब्लाक के निर्माण के नाम पर ठेकेदार ने 3 साल में 3 एक्सटेंशन पार किए।
इसी बीच 2.99 करोड़ कमाए । एक तो मूसलाधार बारिश के बाद भी तालाब में ह्यूम पाइप कल्वर्ट नहीं बनाए और उस पर भी जब एग्रीमेंट के टर्मिनेट करने का दबाव पड़ा तो ठेकेदार के कारिंदे पोकलेन लेकर नारायण तालाब की कच्ची मेड़ पर पहुंच गए।
तालाब का सब्र टूटा और गरीब घरों तक सैलाब पहुंच गया। आरोप है कि 3 वर्ष बाद भी मौके पर कार्य की प्रगति भले ही 45 प्रतिशत हो लेकिन कागजों में काम की प्रगति 55 प्रतिशत है। एग्रीमेंट टर्मिनेट किए जाने से पहले ही ठेकेदार को इसी 55 फीसदी वर्क प्रोग्रेस के मान से भुगतान भी हो चुके हैं। यानि हिसाब बराबर ही नहीं है, स्मार्ट सिटी (नगर निगम) के मुकाबले ठेकेदार ने मजे के साथ विदाई ली है।
मनमानी मुनाफे के इस गणित को ऐसे समझें
भोपाल के संविदाकार केएन नारंग को नारायण तालाब के ब्यूटीफिकेशन का वर्क आर्डर वर्ष 2021 की 2 सितंबर को एसओआर से 13.73 फीसदी बिलो पर यानि 8.65 करोड़ में मिला था। अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहता तो एक्स्ट्रा वर्क के नाम पर 1.38 करोड़ की बचत का भी इंतजाम था।
प्रोजेक्ट कास्ट 10.03 करोड़ थी। संविदाकार ने 3 साल में 3 एक्सटेंशन पार किए। इसी बीच 55 प्रतिशत कार्य पूर्णता के मान से उसे लगभग 4 करोड़ 75 लाख 75 हजार के पेमेंट किए गए। जबकि असल में 45 प्रतिशत कार्य पूर्णता में भुगतान की यह राशि 3 करोड़ 89 लाख 25 हजार रुपए बनती है।
आरोप हैं कि इस तरह ठेकेदार ने 86 लाख का अतिरिक्त भुगतान प्राप्त करने में कामयाबी पाई।
इनके तो हाथ लगे सिर्फ 67 लाख
नगरीय विकास एवं आवास मंत्री प्रतिमा बागरी ने माना कि ठेकेदार केएन नारंग की एफडी और एसडी सीज करने का निर्णय लिया गया है। जानकारों ने बताया कि इससे स्मार्ट सिटी (नगर निगम)
के हाथ महज 67 लाख 3 हजार 750 रुपए लगने हैं। एफडी में 43 लाख 25 हजार और सिक्योरिटी डिपाजिट में 23 लाख 78 हजार रुपए हैं। इस तरह यदि यह राशि जब्त भी की जाती है तो 55 प्रतिशत कार्य पूर्णता की स्थिति में 4 करोड़ 75 लाख के भुगतान ले चुका ठेकेदार 19 लाख के अतिरिक्त नफे में है।
अब तक कुल भुगतान के 10 प्रतिशत शुद्ध प्रॉफिट के हिसाब से ठेकेदार 47.50 लाख रुपए पहले ही कमा चुका है। इतना ही नहीं 7 एकड़ पर विस्तृत नारायण तालाब से 5 फीट गहरी मुरुम के उत्खनन से निकली तकरीबन 2 करोड़ 33 लाख 33 हजार रुपए मूल्य की 46 हजार 666 घन मीटर मुरुम का भी हिसाब नहीं है।
आंकड़ों की बाजीगरी आखिर किसके लिए
नारायण तालाब के ब्यूटीफिकेशन प्रोजेक्ट की असल में आज की स्थिति में भौतिक प्रगति कितनी है? गुरुवार को स्मार्ट सिटी के कार्यों की समीक्षा के दौरान नगरीय प्रशासन एवं आवास राज्यमंत्री को जानकारी दी गई कि कार्य की भौतिक प्रगति 55 प्रतिशत है और वित्तीय प्रगति भी इतनी ही है? लेकिन 14 दिसंबर 2023 को एसएससीडीएल के चेयरमैन एवं कलेक्टर अनुराग वर्मा की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में यही भौतिक प्रगति 70 प्रतिशत, जनवरी 2024 को सांसद गणेश सिंह की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में भी प्रोग्रेस 70 फीसदी और 11 जुलाई 2024 को कलेक्टर की अध्यक्षता में आयोजित समीक्षा बैठक में यही भौतिक प्रगति 75 प्रतिशत एवं वित्तीय प्रगति 55 फीसदी बताई गई थी। बड़ा सवाल है कि आंकड़ों की ऐसी बाजीगरी आखिर किसके लिए? जबकि जानकारों का दावा है कि अगर आज की स्थिति में कार्य की उच्चस्तरीय भौतिक प्रगति का सत्यापन कराया जाए तो प्रोग्रेस बमुश्किल 40 प्रतिशत है।
सरकार से छल: शासन को हुई आर्थिक क्षति के लिए आखिर कौन जिम्मेदार?
तो क्या दूध की धुली है टीसीईएल, इस पर इतनी मेहरबानी क्यों
आरोप हैं कि काम से ज्यादा दाम का यह गंभीर मामला सरकार से छल है। गंभीर प्रश्न यह है कि जनता की गाढ़ी कमाई से लूट और शासन को हुई इस आर्थिक क्षति के लिए क्या सिर्फ ठेकेदार जिम्मेदार है? जानकार कहते है, हर एक्सटेंशन पर काम की लागत के मान से 2 फीसदी कमीशन का खेल किसी से छिपा नहीं है।
एसएससीडीएल (सतना स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट लिमिटेड) की पीडीएमसी (प्रोजेक्ट डेवलपमेंट एंड मैनेजमेंट कंसल्टेंसी) यानि टीसीईएल (टाटा कंसल्टेंसी इंजीनियर्स लिमिटेड) क्या दूध की धुली है? टीसीईएल में मैनपावर का रोना अब क्यों? ठेकेदार के भुगतान की प्रक्रिया की यही पहली सीढ़ी है। ठेकेदार का पहला बिल यहीं लगता है। टीसीईएल ही काम की एमबी (मेजरमेंट बुक) भरती है।
इंजीनियर बचाओ : इनकी भी जिम्मेदारी तय क्यों नहीं ?
इसके बाद एमबी का सत्यापन क्रमश: उपयंत्री, सहायक यंत्री और कार्यपालन यंत्री करते हैं। जानकारों ने बताया कि कछुआ चाल का हवाला देकर एक साल पहले नारायण तालाब का यही प्रोजेक्ट एसएससीडीएल से लेकर नगर निगम को सौंप दिया गया था। स्मार्ट सिटी के कार्यपालन यंत्री अरुण तिवारी थे।
नगर निगम के भी कार्यपालन यंत्री यही अरुण तिवारी ही हैं। स्मार्ट सिटी के सहायक यंत्री अजय गुप्ता थे, काम नगर निगम को मिलने के बाद सहायक यंत्री अंशुमान सिंह हैं। इसी फेहरिस्त में स्मार्ट सिटी के उपयंत्री प्रवीण जायसवाल भी कम सुर्खियों में नहीं हैं।
जानकार सवाल उठाते हैं कि जब गुणवत्ता विहीन काम में ऐतिहासिक लेटलतीफी पर केएन नारंग का टेंडर टर्मिनेट हो सकता है तो इन्हीं प्रमाणित आरोपों के आधार पर इन विद्वान अभियंताओं की जिम्मेदारी तय करने में परहेज क्यों?
अकाउंट सेक्शन पर भी आंच नहीं
काम नगर निगम का हो या स्मार्ट सिटी का अकाउंट सेक्शन में फाइल घूम फिर कर भूपेंद्र देव सिंह परमार के पास जाती है। भूपेंद्र ही स्मार्ट सिटी के चीफ फाइनेंस ऑफिसर (सीएफओ) हैं और वही नगर निगम के डिप्टी कमिश्नर फाइनेंस भी हैं। इस प्रक्रिया के बाद निगमायुक्त भुगतान का आदेश
देते हैं। जानकारों का कहना है कि अकेला यही नहीं स्मार्ट सिटी के तमाम प्रोजेक्ट अंतत: केंद्र एवं राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) के विषय हैं।