10 साल से नो-एंट्री: 358 करोड़ के पैकेज में शामिल 22 किलोमीटर का बायपास
- बावजूद इसके कदम-कदम पर आखिर क्यों लगता है भीषण जाम
- 50 करोड़ का इंट्रीग्रेटेड ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम फिर भी रीवा रोड पर 30 मिनट में बमुश्किल पूरी होती है 2 किलोमीटर की दूरी
- शहर की इस सबसे व्यस्ततम सडक़ पर यात्री बसों के परिवहन पर रोक नहीं है।
डिजिटल डेस्क,सतना। जिला मुख्यालय में स्मार्ट सिटी का 50 करोड़ का ईटीएमएस (इंट्रीग्रेटेड ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम)... 358 करोड़ के पैकेज में शामिल 22 किलोमीटर का बायपास, 10 साल से नो-इंट्री और शहर के अंदर 18 मीटर चौड़ी फोरलेन रीवा रोड के बाद भी आखिर रोज कदम-कदम पर भीषण जाम क्यों लगता है? सवाल यह भी है कि जरा सी बारिश में भी यही यातायात अराजक क्यों हो जाता है?
जानकार इसके 4 प्रमुख कारण बताते हैं। शहर की इस सबसे व्यस्ततम सडक़ पर यात्री बसों के परिवहन पर रोक नहीं है। खासकर चित्रकूट और पन्ना की ओर आने-जाने वाली बसों की लंबी कतार दिन भर लगी रहती है। सडक़ के दोनों ओर बेसमेंट में दुकानों के कारण हर प्रकार के वाहनों की पार्किंग सडक़ के नो पार्किंग जोन में होती है। जरुरत के हिसाब से ट्रैफिक पुलिस के पास आवश्यक बल की भारी कमी है।
सुगम यातायात के लिए नगर निगम और पुलिस के अफसर वैकल्पिक उपायों को अमल में लाने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। आरोप हैं कि इन पर पॉलिटिकल प्रेशर है? जिम्मेदारों की जन समस्याओं और सुविधाओं में रुचि नहीं है।
इनकी नजर सिर्फ मुनाफे पर है? यही वजह है कि कोठी तिराहा से समेरिया चौक के बीच महज 2 किलोमीटर की दूरी बुमिश्कल 30 मिनट में पूरी होती है। इनमें स्कूली बच्चों की बसें ही नहीं एम्बुलेंस तक फंस कर रह जाती हैं।
4 बड़े कारणों से अराजक है यातायात
शहर के अंदर फर्राटा मारती बसों के परिवहन पर रोक नहीं
बेसमेंट में दुकानों के कारण सडक़ पर वाहनों की पार्किंग
ट्रैफिक पुलिस के पास आवश्यक बल की भारी कमी
वैकल्पिक उपायों को अमल में लाने की दृढ़ इच्छा का अभाव
हर पांच मिनट में एक बस, टिड्डी दल की तरह मंडराते हैं ऑटो
रीवा रोड पर बेपटरी ट्रैफिक व्यवस्था के लिए पन्ना और चित्रकूट की तरफ जाने वाली बसें कम जिम्मेदार नहीं हैं। इस रोड पर हर 5 मिनट के अंतर में एक बस होती है। अपना नंबर पकड़ने की दौड़ में फर्राटा मारती बसों के ड्राइवर सवारियां उतारने-चढ़ाने के चक्कर में कब-कहां ब्रेक मार
दें, कोई गारंटी नहीं है। तेज हार्न... ओवरटेक और कभी आगे तो कभी पीछे से ठोकर लगने के कारण पहले भी यहां कई हादसे हो चुके हैं। जहां बस वहां ऑटो रिक्शा टिड्डी दलों की तरह मंडराने लगते हैं।
बदखर से बायपास का रूट क्यों नहीं
चित्रकूट और पन्ना आने जाने वाली बसों को बदखर से बायपास का रुट देने के सुझाव प्राय: सडक़ सुरक्षा समिति की बैठकों में आते रहे हैं, लेकिन इस पर अमल का साहस जुटाने के नाम पर सिस्टम सदैव बैकफुट पर जाता रहा है।
जानकारों का मानना है कि यदि पन्ना-चित्रकूट की बसों को शहर के अंदर नो-डिले करते हुए बदखर से बायपास पर सहमति बना ली जाए तो अराजक यातायात को बड़ी राहत मिल सकती है। मगर, इस वैकल्पिक उपाय के बजाय नगर निगम ने पुराने बस स्टैंड के इसी रुप में विकास के लिए 1.30 करोड़ की योजना बना रखी है।
यह कार्ययोजना तब भी बनी है जब मैहर बायपास पर 31.15 करोड़ का इंटर स्टेट बस टर्मिनल लगभग बन कर तैयार है।
ट्रैफिक पुलिस के पास बल नहीं
शहर में यातायात व्यवस्था को संभालने की जिम्मेदारी ट्रैफिक पुलिस के कंधों पर है, मगर स्टाफ का संकट है। दशकों पहले तब की स्थितियों के लिहाज से स्वीकृत किए गए बल का आधा भी उपलब्ध नहीं है। वर्तमान समय पर यहां 68 पोस्ट सेंक्शन हैं, मगर ट्रैफिक डीएसपी और टीआई को मिलाकर 33 अधिकारी-कर्मचारी ही कार्यरत हैं।
वहीं सहायता के लिए होमगार्ड की तरफ से 11 सैनिकों की सेवाएं विभाग को सौंपी गई हैं। हालात ऐसे बन चुके हैं कि 6 नो-एंट्री प्वाइंट समेत शहर के अंदर चिन्हित स्थानों पर एक-एक जवान की तैनाती तक संभव नहीं है।
ट्रैफिक जवानों को चौराहों पर पूरे समय खड़े रहकर यातायात संभालना होता है, इसके बावजूद उनसे 8 से 10 घंटे की ड्यूटी ली जा रही है। वर्तमान समय पर शहर की आबादी और वाहनों की संख्या को देखते हुए ट्रैफिक थाने के स्वीकृत बल को कम से कम दोगुना करना अनिवार्य हो गया है।
इनका कहना है
सीमित संसाधनों के साथ यातायात व्यवस्था सुचारू बनाने के लिए हम लगातार प्रयासरत हैं। सुगम यातायात के लिए शहरवासियों को भी जिम्मेदारी समझकर सहयोग करना होगा, तभी हालात सुधरेंगे।
संजय खरे, यातायात डीएसपी