भिड़े वाड़ा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका खारिज

  • राष्ट्रीय स्मारक के लिए 13 साल संघर्ष करने की नौबत पर जताई नाराजगी
  • सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका खारिज

Bhaskar Hindi
Update: 2023-11-02 14:01 GMT

डिजिटल डेस्क, पुणे। ऐतिहासिक भिड़ेवाड़ा को लेकर पुणे के स्थानीय निवासियों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका गुरुवार को कोर्ट ने खारिज कर दी। अदालत ने इस बात पर नाराजगी जताते हुए कि स्मारक के लिए तेरह साल तक संघर्ष करना पड़ा, पूछा कि याचिकाकर्ताओं पर जुर्माना क्यों न लगाया जाए। साथ ही एक महीने के भीतर जगह खाली कर पुणे मनपा को सौंपने का आदेश भी दिया। निवासियों की याचिका खारिज करने के साथ सुप्रीम कोर्ट ने भिडेवाड़ा के राष्ट्रीय स्मारक बनने का रास्ता भी साफ कर दिया है।

भिड़ेवाड़ा को लेकर हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ स्थानीय निवासियों और व्यापारियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस याचिका पर गुरुवार को जस्टिस ए. एस. बोपन्ना और पी. एस. नरसिम्हा की पीठ के समक्ष सुनवाई हुई। अदालत ने कहा, यह अफसोसजनक है कि राष्ट्रीय स्मारक के लिए 13 साल तक संघर्ष करना पड़ा। पुणे मनपा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता माधवी दीवान एवं अधिवक्ता मकरंद अडकर ने मामले की पैरवी की। मनपा के कानूनी विभाग की प्रमुख सलाहकार निशा चव्हाण, भूमि अधिग्रहण विभाग की उपायुक्त प्रतिभा पाटिल, विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी श्वेता दारुंकर, सहायक वकील प्रणीव सताले और शांतुन अडकर ने इसके लिए विशेष प्रयास किए।

15 दिन पहले, बुधवार पेठ में भिडे वाडा स्थल, जहां महात्मा फुले और सावित्रीबाई फुले ने पहला लड़कियों का स्कूल शुरू किया था, वहां भूमि अधिग्रहण से संबंधित उच्च न्यायालय में लंबित मामले का फैसला मनपा के पक्ष में किया गया था। नतीजा यह हुआ कि भिड़ेवाड़ा में राष्ट्रीय स्मारक बनाने का रास्ता साफ हो गया, मनपा प्रशासन ने जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू कर दी। साथ ही भिड़ेवाड़ा स्मारक का कच्चा खाका भी तैयार किया गया। हालांकि, स्थानीय निवासियों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने से इन कार्यों पर रोक लगने की संभावना पैदा हो गई थी। इस याचिका पर सुनवाई के बारे में निशा चव्हाण ने बताया कि कोर्ट ने एक महीने के भीतर जगह खाली कर मनपा को हस्तांतरित करने का आदेश दिया और याचिकाकर्ताओं से पूछा कि स्मारक का काम रोकने के लिए उन पर जुर्माना क्यों न लगाया जाए?

जिस स्थान पर महात्मा फुले ने पहला बालिका विद्यालय शुरू किया था, उस स्थान पर एक राष्ट्रीय स्मारक की मांग कई वर्षों से की जा रही है। हालाँकि, इस वाडा के निवासियों और व्यापारियों ने इस महल की भूमि अधिग्रहण के लिए उचित मुआवजा पाने के लिए उच्च न्यायालय में अपील की थी। पिछले 13 सालों में इस पर कोर्ट में करीब 80 बार सुनवाई हुई। फरवरी 2006 में, मनपा की सर्व साधारण सभा ने निर्णय लिया था कि भिड़ेवाड़ा को मनपा द्वारा अपने कब्जे में लेना चाहिए और वहां एक राष्ट्रीय स्मारक बनाना चाहिए। फिर जनवरी 2008 में स्थायी समिति ने इसे मंजूरी दे दी और भूमि अधिग्रहण के जरिए इस जगह पर कब्जा करने की प्रक्रिया शुरू कर दी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से स्मारक का रास्ता भी साफ हो गया है।

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