दो पहिया- लैपटॉप के लिए राशि बढ़ाने की विनती खारिज- आधा वेतन मेंटेनेंस में नहीं दे सकता पति
हाई कोर्ट दो पहिया- लैपटॉप के लिए राशि बढ़ाने की विनती खारिज- आधा वेतन मेंटेनेंस में नहीं दे सकता पति
डिजिटल डेस्क, नागपुर. अपने पति से अलग हो चुकी महिला ने दो पहिया वाहन, लैपटॉप, मोबाइल जैसी वस्तुओं के लिए पति के आधे वेतन पर दावा करते हुए न्यायालय की शरण ली। महिला की न्यायालय से प्रार्थना थी कि उक्त वस्तुएं खरीदने के लिए उसे पति का आधा वेतन मिलना चाहिए, लेकिन बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने इस प्रकरण में यह माना कि पति की आधी कमाई पत्नी को मेंटेनेंस के रूप में किसी हाल में नहीं दी जा सकती। इसकी सीमा 20 प्रतिशत तक ठीक है। इसी निरीक्षण के साथ हाई कोर्ट ने बुलढाणा पारिवारिक न्यायालय के उस आदेश को कायम रखा है, जिसमें न्यायालय ने पत्नी को सिर्फ 8000 रुपए प्रतिमाह अदा करने का आदेश दिया था।
पत्नी की दलील : आकोट निवासी युवक और बुलढाणा निवासी युवती का विवाह 4 फरवरी 2007 को हुआ था। दोनों में बनी नहीं, इसलिए पत्नी बुलढाणा लौट कर पति से अलग रहने लगी। उस वक्त स्थानीय न्यायालय ने पति को अपनी पत्नी को 750 रुपए प्रतिमाह मेंटेनेंस देने का आदेश दिया था। वर्ष 2013 में बुलढाणा अतिरिक्त सत्र न्यायालय ने इसे बढ़ा कर 2500 रुपए प्रतिमाह कर दिया। कुछ समय बाद पत्नी ने दोबारा पारिवारिक न्यायालय में अर्जी दायर करके मेंटेनेंस राशि बढ़ाने की प्रार्थना की। उसने दलील दी कि समय के साथ महंगाई बढ़ गई है। वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं। इसके अलावा वह प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी भी कर रही है, उसे किताबें, लैपटॉप, मोबाइल और दो पहिया वाहन खरीदने की सख्त जरूरत है। पत्नी ने न्यायालय से विनती की कि पति से उसे 20 हजार रुपए प्रतिमाह मेंटेनेंस दिलाया जाए। खास बात यह थी कि इस वक्त पति का वेतन ही लगभग 39 हजार रुपए था। ऐसे में पत्नी, पति के आधे वेतन की मांग कर रही थी।
जवाब में पति ने न्यायालय में दलील दी कि पत्नी उच्च शिक्षित है और 15 हजार रुपए प्रतिमाह की नौकरी कर रही है, साथ ही दो याचिकाओं के तहत कुल 4500 रुपए मेंटेेनेंस भी पा रही है। ऐसे में आधा वेतन उसे देने की विनती खारिज की जाए। पारिवारिक न्यायालय ने मामले में सभी पक्षों को सुनकर पत्नी के लिए 8000 रुपए प्रतिमाह वेतन निर्धारित किया। पति ने इससे असंतुष्ट हो कर हाई कोर्ट में याचिका दायर की। हाई कोर्ट ने निचली अदालत का आदेश कायम रखते हुए पति की याचिका खारिज कर दी।