आज देश के 14 राज्यों में मशहूर है आदिवासी महिलाओं के बनाए उत्पाद
वनोपज से साबुन, बिस्किट, वाशिंग पाउडर बनाकर आत्मनिर्भर बनी महिलाएं आज देश के 14 राज्यों में मशहूर है आदिवासी महिलाओं के बनाए उत्पाद
सात साल पहले आदिवासी महिलाओं द्वारा शुरू किया स्टॉर्टअप आज है जिले की पहचान, तामिया के आदिवासी अंचल के 35 स्व-सहायता समूह की महिलाओं ने मिलकर शुरू किया था काम
डिजिटल डेस्क छिंदवाड़ा । तामिया जैसे आदिवासी अंचल की महिलाओं द्वारा सात साल पहले शुरु किए गए स्टॉर्टअप से किसी ने सोचा नहीं था कि एक दिन इन महिलाओं के बनाए उत्पाद जिले की पहचान बनेंगे। लेकिन जंगलों में मौजूद गुल्ली,बेहड़ा,आंवला,महुआ के बने प्रोडक्ट आज देश के 14 राज्यों में मशहूर हैं। डिमांड इतनी है कि आदिवासी महिलाओं के द्वारा बनाए गए उत्पादों को खरीदने के लिए खरीदार वेटिंग में रहते हैं। एक समूह का टर्नओवर लाखों में पहुंच गया है। तामिया के 35 स्व-सहायता समूहों की महिलाएं इन आदिवासी उत्पादों को बनाने में लगी है। जबकि सरकारी मदद के नाम पर इन्हें कुछ नहीं मिलता है। 2014 में जंगलों में मौजूद वनसंपदाओं से तामिया की आदिवासी महिलाओं ने मिलकर साबुन, महुए का तेल, लिक्विड सोप बनाना शुरू किया था। इन उत्पादों को बनाने मेेंं महिलाओं द्वारा जंगलों में मौजूद वन संपदा हर्रा, बहेड़ा, आंवला का उपयोग शुरू किया गया। पहले जिला स्तर पर इन उत्पादों को बेचने की मुहिम शुरू हुई। धीरे-धीरे डिमांड इतनी बढ़ी की आज देश के 14 राज्यों में आदिवासी महिलाओं के बनाए उत्पाद मशहूर है। एक स्व-सहायता समूह 2 से 3 लाख रुपए की आय अर्जित करता है। खेतों में काम कर अपने परिवार का गुजर-बसर करने वाली आदिवासी महिलाएं आज पूरे जिले की रोल मॉडल है। इन महिलाओं द्वारा बनाए गए उत्पादों को खरीदने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों से खरीदार तामिया आते हैं।
500 से ज्यादा महिलाओं को मिला रोजगार
तामिया क्षेत्र में कभी काम को तरसने वाली महिलाएं आज जिले की अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत है। पहले तकरीबन 50 महिलाओं ने वनसंपदाओं से इन उत्पादों को बनाने का काम शुरू किया था, लेकिन आज इस समूह में 500 से ज्यादा महिलाएं शामिल है। क्षेत्र की और महिलाओं को भी इन समूहों की महिलाएं अपने साथ जोडऩे की कोशिश कर रही है।
केरल में लिया प्रशिक्षण
महुए सहित वनसंपदाओं से बिस्किट, साबुन जैसे उत्पादों को बनाने का प्रशिक्षण महिलाओं ने केरल से लिया था। शुरुआत में साबुन के अलावा इन महिलाओं द्वारा वाशिंग पाऊडर, फिनाइल, लिक्विड सोप, नील बर्तन वाश आदि बनाने का काम किया करती थी। अब इन महिलाओं ने शहद, मक्के का आटा, मल्टीगे्रन, जामुन सिरका, त्रिफला चूर्ण, मक्का टोस्ट का उत्पादन भी शुरु कर दिया है।
इन राज्यों में होती है सप्लाई
2014 में जब इन उत्पादों का निर्माण शुरू किया गया तो सिर्फ जिला स्तर पर ही इन उत्पादों की सप्लाई हुआ करती थी लेकिन आज राजस्थान, महाराष्ट्र, उड़ीसा, बंगाल सहित देश के 14 राज्यों में इन महिलाओं के बनाए उत्पादों की बिक्री होती है। बड़े-बड़े व्यापारी इन महिलाओं के प्रोडक्ट खरीदकर अपने-अपने क्षेत्र में सप्लाई किया करते हैं।
जंगलों से लाती हैं कच्चा माल
तामिया जैसे आदिवासी अंचलों में वनसंपदाओं का भंडार भरा पड़ा है। ये महिलाएं सीजन में खुद ही इन उत्पादों के लिए कच्चा माल लेकर आती है। वहीं आसपास के ग्रामों से भी इन कच्चे माल की खरीदारी करती है। कुछ महिलाएं तो इन कच्चे माल की भी बिक्री करके शुद्ध मुनाफा कमाती है। इसके अलावा प्रोडक्ट तैयार करके भी दूसरे राज्यों में सप्लाई किया करती है।