जिले में घटा धान बोनी का रकवा, फिर भी खाद की किल्लत

शहडोल जिले में घटा धान बोनी का रकवा, फिर भी खाद की किल्लत

Bhaskar Hindi
Update: 2022-07-07 09:19 GMT
जिले में घटा धान बोनी का रकवा, फिर भी खाद की किल्लत

डिजिटल डेस्क, शहडोल। मानसून की बेहतर बारिश के बावजूद खरीफ फसलों की बोनी पिछड़ रही है। जिले में सबसे ज्यादा धान की खेती होती है। नर्सरी तैयार करने व बोनी के लिए सबसे ज्यादा डीएपी खाद की आवश्यकता होती है, लेकिन इसकी किल्लत बनी हुई है। विभागीय लापरवाही के चलते ऐसे समय में खाद की कमी है जब धान की बोनी का रकवा गत वर्ष से कम किया गया है। विपणन संघ के गोदामों में मात्र 54 मीट्रिक टन ही खाद बची हुई है।  इसमें शहडोल के नरसरहा गोदाम में 5 टन, बुढ़ार में 15, गोहपारू में 5 एवं जयसिंहनगर में 25 टन डीएपी है। ब्यौहारी के गोदाम निल हैं। शीघ्र ही इसकी आवक नहीं हुई तो बोनी पिछड़ जाएगी। इसको लेकर अन्नदाता परेशान हैं। ऐसा पहली बार नहीं है जब जरूरत के समय किसानों को खाद की कमी हुई हो। पिछले वर्ष भी यही स्थिति बनी थी। इसके बावजूद पर्याप्त स्टॉक की व्यवस्था नहीं कराई गई।
जिसकी जरूरत उसी की कमी
जिले में इस वर्ष लगभग 1.54 लाख हेक्टयेर में धान की बोनी हो रही है। जो गत वर्ष के 1.59 लाख हेक्टेयर के मुकाबले कम है। जिले में खरीफ फसलों में 80 प्रतिशत धान की बोनी होती है। कोदो, कुटकी, दलहन व तिलहन की फसलों को बढ़ावा देने के लिए धान का रकवा कम किया गया है। इस लिहाज से करीब 5 लाख किसानों को वर्तमान में डीएपी खाद की जरूरत है। लेकिन नहीं मिल पा रही है। जबकि यूरिया का पर्याप्त स्टॉक बताया जा रहा है, जिसकी जरूरत किसानों को अभी नहीं है।
प्रशासन ने बरती लापरवाही
खाद की समय पर आपूर्ति के लिए प्रशासन पर लापरवाही के आरोप लगाए जा रहे हैं। इस वर्ष इस सीजन के लिए 15800 एमटी खाद का लक्ष्य रखा गया था। शुरुआती दिनों में डीएपी की जुलाई माह में ही 3032 टन की जरूरत थी, लेकिन आपूर्ति हो पाई मात्र 1668 टन की। डीएपी की डिमांड 6 हजार टन की थी। वहीं यूरिया 8500 टन की जरूरत है। इसका स्टॉक होना बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि गत वर्ष आई समस्या से शबक लेते हुए इस बार डीएपी की पर्याप्त उपलब्धता के लिए समय पर प्रयास नहीं किए गए।
डीएपी का विकल्प नहीं भा रहा
डीएपी की कमी के चलते कृषि विभाग इसका विकल्प यूरिया व सुपरफास्टफेड बता रहे हैं, लेकिन किसान इसे आजमाने को तैयार नहीं है। कृषि विभाग के उपसंचालक अमर सिंह चौहान ने बताया कि डीएपी में नेत्रजन फास्फोरस रहता है। यदि यूरिया व सुपरफास्फेड मिलाकर यूज किया जाए तो वही रिजल्ट आता है जो डीएपी में होता है। उन्होंने बताया कि इसकी समझाइश विभाग द्वारा किसानों को दी जा रही है।
डीएपी खाद की ही कमी है। जरूरत के अनुसार डिमांड भेज दी गई है। कुछ ही दिनों में आपूर्ति हो जाएगी।

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