स्वार्थ त्याग अपनाएं परमार्थ का रास्ता
शहडोल स्वार्थ त्याग अपनाएं परमार्थ का रास्ता
डिजिटल डेस्क, शहडोल। संसार अनादि काल से चल रहा है। वह इस बात का प्रतीक है कि स्वार्थ के रिश्ते आज तक बंधी हुई है और यह इस बात का प्रतीक भी है कि आगे कभी यह स्वार्थ के रिश्ते खत्म नहीं होने वाले। अगर हम चाहें तो अपने रिश्ते दुनिया से, संसार से खत्म कर सकते हैं। उक्त उद्गार मुनिश्री सुव्रतसागर जी महाराज ने पारस विद्या भवन शहडोल में आयोजित धर्म सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
मुनि श्री ने कहा कि हम रिश्तों में इस तरीके से बंध जाते हैं कि संसार से निकलना मुश्किल हो जाता है। जिन माता-पिता, बच्चों, परिवार के लिए हम समर्पित रहते हैं वह हमारे काम नहीं आती। जब हमारी मृत्यु हो जाती है तब यह रिश्ते क्या है, इनकी सच्चाई सामने आ जाती है, क्योंकि हमारी स्वांस जैसे ही रुकती है रिश्ते जलकर खाक हो जाते हैं। अनादि काल से हम रिश्तों के पालन पोषण करते हुए हम मरते हुए आते हैं, किंतु एक बार भी हमने स्वार्थ का त्याग करके परमार्थ का पथ अपनाकर मरने का प्रयास नहीं किया। अनादि कालीन संसार के पथ पर मरते हुए आने वाले संसारी प्राणियों को धर्म के पथ पर मरने का प्रयास करना चाहिए। मुनि श्री ने अपने परमार्थ और स्वार्थ की दो बातें इस तरह से आज लोगों के सामने रखी। बहुत अधिक संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।