पै्रक्टिकल के नाम पर होती है खानापूर्ति
शहडोल पै्रक्टिकल के नाम पर होती है खानापूर्ति
डिजिटल डेस्क, शहडोल। जिले में वर्षों से संचालित आधा दर्जन से अधिक नर्सिंग कॉलजों में छात्रों के पै्रक्टिल वर्क के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति ही की जा रही है। इंडियन नर्सिंग कौंसिल (आईएनसी) द्वारा नर्सिंग कॉलेज संचालन की दिए जाने वाली अनुमति के शर्तों में खुद का अस्पताल होना अनिवार्य है। पंजीयन के तीन वर्ष तक संबद्धता वाले अस्पतालों में पै्रक्टिकल के बाद स्वयं के अस्पताल अथवा संबंद्धता वाले चिकित्सालयों मेें छात्रों का पै्रक्टिकल कराया जाना चाहिए। शहर में चल रहे संस्थाओं द्वारा दो शासकीय व इतने ही निजी चिकित्सालयों में पै्रक्टिकल के लिए भेजा जाता है, लेकिन जितनी संख्या में छात्रों को दाखिला दिया जाता है उस अनुपात में पै्रक्टिकल के लिए जगह ही नहीं बचती। तमाम अव्यवस्थाओं का निरीक्षण भी नहीं के बराबर होता है। कहा जाता है कि सारा कुछ अब भोपाल से नियंत्रण होता है।
संबद्धता से चलाया जा रहा काम
आईएनसी की गाइडलाइन के अनुसार उन्हीं चिकित्सालयों में नर्सिंग छात्रों को पै्रक्टिकल के लिए भेजा जाना है जिनकी क्षमता 50 बेड या उससे ऊपर की हो। जिले में केवल शासकीय जिला चिकित्साल, मेडिकल कॉलेज के अलावा दो ही निजी चिकित्सालय 50 या इससे ज्यादा बेड वाले हैं। एक निजी चिकित्सालय बंद हो चुका है, जो 100 बेड का था। नियम तो नर्सिंग कॉलेजों के पास अपने अस्पताल होने चाहिए, लेकिन दशकों बाद भी किसी संस्था के पास अस्पताल नहीं हैं, केवल संबद्धता लेकर ही काम चलाया जा रहा है।
छात्र कैसे हो पाएंगे प्रशिक्षित
सूत्रों की मानें तो नर्सिंग संस्थाओं द्वारा पै्रक्टिकल ज्ञान के नाम पर कुछ महीने ही अस्पतालों के दर्शन कराए जाते हैंं। कुछ संस्थाएं हैं जिन्होंने निजी व शासकीय अस्पताल से संबंद्धता ले रखी है। नियमानुसार हर बैच में साल के तीन से लेकर 6 महीने तक का पै्रक्टिकल कराया जाना चाहिए, जिसके लिए छात्रों से भारी भरकम फीस भी ली जाती है, लेकिन उन्हें वांछित पै्रक्टिकल प्रशिक्षण नहीं दिलाया जाता।
कागजों में ही दुरुस्त फैकेल्टी
नर्सिंग कॉलेज के संचालन में सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया गाइडलाइन के अनुसार फैकेल्टी की उपलब्धता होती है। लेकिन एक दो को छोड़कर किसी भी संस्थान में नियमानुसार शिक्षक नहीं हैं। गाइडलाइन के अनुसार 40 की छात्र संख्या वाले संस्थान में कुल 14 फैकेल्टी होना चाहिए। इनमें एमएससी नर्सिंग के साथ तीन वर्ष टीचिंग के साथ बीएससी नर्सिंग में पांच साल पढ़ाने के अनुभवधारी एक प्राचार्य, एक उप प्राचार्य, डिप्लोमा डिग्रीधारी 10 ट्यूटर तथा दो की संख्या में एडिशनल ट्यूटर भी होना चाहिए। परंतु जमीनी तौर पर संस्थाओं में विषयवार टीचर का अभाव ही मिलेगा।
इनका कहना है
पंजीयन से लेकर निरीक्षण का कार्य चिकित्सा शिक्षा विभाग भोपाल के निर्देशों पर ही होता है। वार्षिक निरीक्षण आदि को लेकर जो भी गाइडलाइन हैं उनके पालन के बारे में जानकारी ली जाएगी।