जालसाजी के मामले में हाईकोर्ट से 5 आरोपी बरी, आदेश में फर्जी जांच का हवाला 

अदालत जालसाजी के मामले में हाईकोर्ट से 5 आरोपी बरी, आदेश में फर्जी जांच का हवाला 

Bhaskar Hindi
Update: 2023-04-23 15:03 GMT
जालसाजी के मामले में हाईकोर्ट से 5 आरोपी बरी, आदेश में फर्जी जांच का हवाला 

डिजिटल डेस्क, मुंबई. बॉम्बे हाई कोर्ट ने फर्जी जांच का हवाला देते हुए जालसाजी के एक मामले में 5 लोगों को बरी कर दिया। अमरावती विश्वविद्यालय में सहायक रजिस्ट्रार शरद बोंडे के साथ जालसाजी हुई थी। हाई कोर्ट ने कहा कि जाली दस्तावेज पर सही हस्ताक्षर के बारे में पता लगाने के लिए हैंडराइटिंग एक्सपर्ट की कोई रिपोर्ट नहीं थी। इस पहलू पर जांच दोषपूर्ण है। न्यायमूर्ति जीए सनप ने कहा कि हैंडराइटिंग विशेषज्ञ की रिपोर्ट के अभाव में शिकायतकर्ता के स्वयं हस्ताक्षर करने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। हस्तलेख विशेषज्ञ की रिपोर्ट नहीं होने से मुखबिर की भूमिका को लेकर वाजिब संदेह पैदा किया गया है। तथ्यों और परिस्थितियों में मुखबिर भालचंद्र सरजोशी के हस्ताक्षर करने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

याचिकाकर्ता अमरावती विश्वविद्यालय में सहायक रजिस्ट्रार शरद बोंडे ने दावा किया कि उन्होंने दलाल आशीष शर्मा के जरिए सोसायटी के सदस्य से एक भूखंड खरीदा था। शर्मा ने उस व्यक्ति को भूखंड के मालिक के रूप में पेश किया, जिसकी पुष्टि सोसायटी अध्यक्ष शिरीष मोहोड और अशोक देशमुख ने किया था। बिक्री नामा पर उस व्यक्ति ने हस्ताक्षर किए और अन्य दो आरोपी विक्की थेटे और विलास पेठे लेनदेन में गवाह थे। जब बोंडे ने प्लॉट पर निर्माण कार्य की अनुमति सोसायटी से मांगी, तो उन्हें इस आधार पर मना कर दिया गया कि प्लॉट उनका नहीं है।

बोंडे ने आरोप लगाया कि आरोपियों ने ट्रांसफर डीड में हेरफेर की। उन्होंने शर्मा, थेटे, पेठे, मोहोद और देशमुख के खिलाफ धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज कराई। न्यायिक मजिस्ट्रेट ने उन्हें यह कहते हुए बरी कर दिया कि अभियोजन पक्ष अपराध साबित करने में विफल रहा। बोंडे ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी। हाई कोर्ट ने कहा कि मुख्य आरोपी शर्मा की मौत हो चुकी है। इसलिए उसके खिलाफ अभियोजन समाप्त हो गया है। बाकी आरोपी प्लॉट के हस्तांतरण से सीधे तौर पर संबंधित नहीं थे। 

शिकायतकर्ता ने चुकाई गई रकम पाने के लिए आरोपी के खिलाफ दीवानी मुकदमा दायर किया था। शर्मा की मृत्यु के कारण उनके खिलाफ मुकदमा समाप्त कर दिया गया था। प्लॉट के मूल मालिक भालचंद्र सरजोशी ने गवाही दी कि ट्रांसफर डीड पर हस्ताक्षर उनके नहीं हैं। बोंडे ने दावा किया कि मूल मालिक के रूप में उनका परिचय कराने वाला व्यक्ति सरजोशी, नहीं बल्कि एक नकली व्यक्ति था। उन्होंने उस नकली व्यक्ति का विवरण नहीं दिया, जिससे पुलिस उसका पता लगा सकती थी।

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