शिक्षा ली नहीं, 32 साल में 20 हजार पोस्टमार्टम में कर दी मदद
शहडोल शिक्षा ली नहीं, 32 साल में 20 हजार पोस्टमार्टम में कर दी मदद
डिजिटल डेस्क,शहडोल। किसी भी व्यक्ति की मौत का पता लगाने के लिए पोस्टमार्टम जरुरी होता है। हम बता रहे हैं एक ऐसे व्यक्ति के बारे में जो पांच या दस साल नहीं बल्कि पूरे 32 साल से पोस्टमार्टम में डॉक्टर की मदद कर रहे हैं। शहडोल जिला अस्पताल में तीन दशक से ज्यादा समय से बतौर सफाईमित्र सेवाएं दे रहे सुरेश बक्सरिया बताते हैं कि उन्होंने अब तक 20 हजार से ज्यादा पोस्टमार्टम में मदद की है। इस दौरान डॉक्टर समीप खड़े होते हैं और वे जिस अंग को देखने की बात कहते हैं, उसे फौरन निकालकर दिखा देते हैं। फिर चाहे वह फेफड़ा व हृदय हो, छोटी व बड़ी आंत हो या शरीर के दूसरे अंग। खासबात यह है कि सुरेश में पढ़ाई नहीं की है। स्कूल का मुंह तक नहीं देखा है, लेकिन काम अनुभव ऐसा है कि शहडोल जिला अस्पताल में उनके बिना कोई भी पोस्टमार्टम संभव ही नहीं होता है।
पीएम में मदद किया और नौकरी पक्की, नहीं भूलते वो एक दिन
सुरेश बताते हैं कि 32 साल पहले तत्कॉलीन डॉक्टर ने कहा था कि शव का पीएम करवा दो तब नौकरी पक्की होगी। इससे पहले वार्ड व दूसरे स्थानों पर काम करते थे। डॉक्टर के कहने पर पीएम में मदद की और नौकरी पक्की हो गई। काम में पीएम के बाद बाहर आते ही सब भुला देते हैं, लेकिन एक वाकया याद है। बात दो दशक पहले की है जब घुनघुटी रेलवे फाटक पर चलती ट्रेन की चपेट में बस आ गई थी। उस दिन जिला अस्पताल में एक साथ 7 पीएम करना पड़ा था।
पोस्टमार्टम पर खास बातें
ह्य पोस्टमार्टम के दो मुख्य पार्ट होते हैं, पहले पार्ट में शरीर के बाहरी और दूसरे पार्ट में भीतरी हिस्से की जांच होती है। ह्य पोस्टमार्टम एक सर्जिकल प्रोसेस है, जिसमें शव को चीरकर उसकी जांच की जाती है। ह्य पोस्टमार्टम को ऑटोप्सी व शव परीक्षा भी कहा जाता है, जिसे मृतक परिजनों की इजाजत के बाद ही किया जाता है। ह्य किसी भी व्यक्ति की मृत्यु से 7 से 9 घंटे के भीतर पोस्टमार्टम जरुरी होता है। इसके बाद शरीर में होने वाले बदलाव के कारण सही रिपोर्ट की गुंजाइश कम होती जाती है। ह्य पोस्टमार्टम के दौरान शरीर के आंतरिक अंगों की जांच होती है और इस कारण उन अंगो को बाहर निकालकर जांच के बाद वापस रखकर सिल दिया जाता है। ह्य पोस्टमार्टम हमेशा दिन के उजाले में किया जाता है। रात के समय कृत्रिम प्रकाश में स्पष्ट जांच मुश्किल होता है।
पोस्टमार्टम में सुरेश का योगदान वाकई काबिले तारीफ है। हम ऐसा कह सकते हैं कि सुरेश के बिना पोस्टमार्टम करना मुश्किल हो जाए। बड़ी बात यह है कि तीन दशक से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी ऐसा कभी नहीं हुआ कि सुरेश के कारण पोस्टमार्टम में विलंब हुआ हो, परीक्षण के दौरान वे डॉक्टर की पूरी तरह से मदद करते हैं।