सेवानिवृति के 7 दिन पहले डीईओ को मिली चार्जशी, 14 लाख के फर्जी भुगतान मामले में संदिग्ध भूमिका
सेवानिवृति के 7 दिन पहले डीईओ को मिली चार्जशी, 14 लाख के फर्जी भुगतान मामले में संदिग्ध भूमिका
डिजिटल डेस्क,सतना। अमरपाटन स्थित एक्सीलेंस स्कूल में 2 भृत्यों के एरियर्स मद में 14 लाख के फर्जी भुगतान के 6 वर्ष पुराने एक बहुचर्चित मामले में हाईकोर्ट के समक्ष विभागीय पक्ष रखने में घोर लापरवाही पर लोक शिक्षण आयुक्त जयश्री कियावत ने जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) बीएस देशलहरा को 25 जुलाई को चार्जशीट पकड़ा दी है। इस आरोप पत्र का समाधान कारक जवाब नहीं देने पर डीईओ के विरुद्ध विभागीय जांच संस्थित करने की चेतावनी भी दी गई है। उल्लेखनीय है, देशलहरा 31 जुलाई को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
जालसाजी का नायाब नमूना है पूरा मामला
सूत्रों के मुताबिक अमरपाटन स्थित एक्सीलेंस स्कूल में आकस्मिक निधि भृत्य के तौर पर वर्ष 1991 में राजमणि मिश्रा और वर्ष 1993 में राजीव कनगर की नियुक्ति हुई थी। वर्ष 2009 में एक शासनादेश के तहत इन दोनों भृत्यों के साथ जिले में शिक्षा विभाग में सेवारत 29 ऐसे ही भृत्य भी नियमित कर दिए गए। तकरीबन 4 साल तक सब ठीक ठाक चला, लेकिन आरोप है कि वर्ष 2012 में भृत्य राजमणि और राजीव प्राचार्य श्रवण तिवारी के झांसे में आ गए। सुनियोजित साजिश के तहत अमरपाटन स्थित एक्सीलेंस स्कूल के प्राचार्य श्री तिवारी ने तबके डीईओ उमाकांत शुक्ला को चिट्टी लिखी कि दोनों भृत्यों के भुगतान में बाधा आ रही है। इस मसले पर प्राचार्य के मार्गदर्शन मांगने पर डीईओ ने इस आशय का आदेश जारी कर दिया कि राजमणि मिश्रा और राजीव कनगर को आकस्मिक निधि भृत्य न मान कर भृत्य माना जाए। आरोप है कि आदेश जारी होने के बाद इसी आदेश के डिस्पैच नंबर से डीईओ के फर्जी हस्ताक्षर से इस आशय का आदेश बना लिया गया कि भृत्य राजमणि और राजीव को नियुक्ति दिनांक से 5 वर्ष बाद की स्थिति में नियमित कर दिया जाए। इसी फर्जी आदेश की दम पर प्राचार्य श्रवण तिवारी रीवा स्थित कोष लेखा से दोनों भृत्यों की सेवा पुस्तिका का अनुमोदन भी करा लाए। इतना ही नहीं उन्होंने एरियर्स के मद में दोनों भृत्यों के लिए 14 लाख की राशि का भुगतान कराने में भी अहम भूमिका निभाई।
ऐसे हुआ खुलासा
इन्हीं सूत्रों ने बताया कि दो भृत्यों के एरियर्स मद में 14 लाख के भुगतान का चमत्कार जब डीईओ आफिस के तबके स्थापना प्रभारी अनिल सिंह के संज्ञान में आया तो उन्होंने मामले की जानकारी तत्कालीन डीईओ उमाकांत शुक्ला को दी। डीईओ ने प्राचार्य से स्पष्टीकरण मांगा तो फर्जी आदेश पकड़ में आ गया। मामले की जांच वर्ष 2016 तक प्रक्रियाधीन रहा। इसी बीच केएस कुशवाहा डीईओ बन कर आए। उन्होंने फर्जी आदेश को निरस्त कर दिया और अनाधिकृत तौर पर आहरित राशि की रिकवरी शुरु करा दी।