ईमानदारी से परमीशन लेने वाले बिल्डर को लगते हैं 5 एकड़ में 55 लाख

विडंबना: रेरा की पहुँच से दूर अवैध काॅलोनियाँ, हर तरफ मनमाने निर्माण ईमानदारी से परमीशन लेने वाले बिल्डर को लगते हैं 5 एकड़ में 55 लाख

Bhaskar Hindi
Update: 2022-12-22 11:40 GMT
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डिजिटल डेस्क,जबलपुर। ईमानदारी से काम करने वाले बिल्डर रेरा के नियम-कायदों से हलाकान हैं, तो वहीं बेईमानी से अवैध काॅलोनियाँ तान रहे तथाकथित बिल्डर रेरा की पहुँच से कोसों दूर हैं। 5 एकड़ में कंस्ट्रक्शन करने वाले एक ईमानदार बिल्डर को जहाँ नगर निगम, टीएंडसीपी व अन्य संस्थाओं को 55 लाख रुपये फीस चुकता करनी पड़ती है, तो वहीं अवैध काॅलोनी तानने वाले तथाकथित बिल्डर इन नियम-कायदों के शिकंजे में नहीं आ पाते। 

अकेले जबलपुर की बात करें तो यहाँ पर सैकड़ों की संख्या में अवैध काॅलोनियाँ तैयार होती जा रही हैं और प्रदेश शासन के द्वारा इन काॅलोनियों को वैध करने की घोषणा भी की जा चुकी है, तो वहीं दूसरी तरफ ईमानदारी से लोगों को आशियाना देने वाले बिल्डर रेरा के चंगुल में फँसकर छटपटा रहे हैं। हैरानी की बात तो यह है कि अवैध काॅलोनियाँ बनाने वालों को किसी भी स्तर पर परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता और न केवल वे पूरी काॅलोनी तान लेते हैं, बल्कि ग्राहकों को विक्रय भी कर देते हैं। वहीं दूसरी तरफ ईमानदार बिल्डर की दिक्कतें कभी खत्म नहीं होतीं।

विसंगति: पहले जिनके प्रोजेक्ट पास, उन्हीं के प्रोजेक्ट फेल

जबलपुर के कुछ बिल्डर ऐसे हैं जिनके प्रोजेक्ट पहले रेरा में पास हो चुके हैं। इसका मतलब साफ है कि उन्हें रेरा के नियम-कायदों की जानकारी बहुत अच्छी तरह से है। इसके बावजूद उनके प्रोजेक्ट पास नहीं हो पा रहे हैं। इससे यह तो ध्वनित होता है कि कहीं न कहीं बड़ी गड़बड़ी हो रही है। यह भी हो सकता है कि रेरा के वरिष्ठ अधिकारियों को इसकी जानकारी लगने नहीं दी जा रही हो। जानकार बताते हैं कि रेरा के नियम-कायदों से परिचित बिल्डर खुद नहीं चाहता कि उससे किसी तरह की लापरवाही हो। इसकी बड़ी वजह यह है कि हर बिल्डर अपने काम को जल्दी से आगे बढ़ाने की कोशिश में रहता है, ताकि वह समय पर उपभोक्ता को आशियाना उपलब्ध करा सके।

नेताओं को आसानी से मिल जाता है रजिस्ट्रेशन 

यह भी पता चला है कि रेरा के नियम और शर्तों के लिये सिर्फ उन बिल्डर्स को परेशान होना पड़ता है जिनकी एप्रोच ऊपर तक नहीं होती।  वहीं दूसरी तरफ प्रदेश में कई बड़े प्रोजेक्ट नेताओं या फिर उनके नाते-रिश्तेदारों के चल रहे हैं जो बड़ी आसानी के साथ रजिस्ट्रेशन नंबर हासिल कर लेते हैं। इन्हें कोई परेशानी नहीं होती और इन्हें हर संभव सहायता प्राप्त हो जाती है। 

हर विभाग में रेरा की ब्रांच हो 

जानकारों का कहना है कि प्रदेश में नगर निगम, टीएंडसीपी और हर उस जगह पर रेरा की ब्रांच खोली जाये जहाँ पर बिल्डरों को अपने दस्तावेज प्रस्तुत करने होते हैं।  इसके लिये पृथक से भर्तियाँ भी निकाली जा सकती हैं। चूंकि इससे बड़ा राजस्व हासिल होता है इसलिये रेरा की शाखाएँ खोलने में किसी तरह का नुकसान नहीं है, बल्कि इससे शासन को बड़े राजस्व का फायदा होना सुनिश्चित है। 

हर 3-4 माह में नई गाइड लाइन तैयार हो जाती है  

बड़ा सवाल यह भी है कि अगर हर 3-4 महीने में नई गाइड लाइन तैयार होती रहेगी तो फिर कोई प्रोजेक्ट कैसे तैयार हो सकेगा? बिल्डर्स जगत से जुड़े लोगों का कहना है कि उनके द्वारा एक बार सारे कागजात जमा कर दिये जाते हैं मगर बाद में उनमें नये-नये नियम जोड़कर फिर से वापस कर दिये जाते हैं। इस तरह से कई प्रोजेक्ट तो अधर में ही लटके रह जाते हैं।  इससे न केवल बिल्डर्स, बल्कि शासन को भी नुकसान होता है।  

टीएंडसीपी और नगर निगम भी करे रेरा का पालन  

जिस तरह से बिल्डर्स के लिये रेरा के नियम-कायदों का पालन करना अनिवार्य है  उसी तरह से अगर प्रदेश की हर नगर निगम और टीएंडसीपी कार्यालयों को रेरा के नियम-कायदों का पालन करने की सुविधा प्रदान हो जाये तो सारी समस्याएँ जड़ से खत्म हो सकती हैं। इससे बिल्डरों को भोपाल मुख्यालय पर आश्रित नहीं होना पड़ेगा और फाइलें भी स्क्रूटनी के बाद तेजी से आगे बढ़ने लगेंगी। अलबत्ता यह भी हो सकता है कि इन दस्तावेजों की जाँच के लिये अलग से प्रदेश स्तरीय टीम बनाई जाये जो अलग-अलग समय पर दौरा करके दस्तावेजों की कमियाँ दूर कर सकें।  

यह मुश्किलें

ऐसी हैं मध्य प्रदेश में रेरा में होने वाली अड़चनें 

कुछ ऐसे प्रोजेक्ट भी हैं, जो पूरी तरह से कम्प्लीट हो चुके हैं फिर भी रेरा का रजिस्ट्रेशन नहीं मिल पा रहा है। 
सबसे बड़ी परेशानी यह है कि बिल्डर्स के द्वारा फाॅर्म सबमिट कर दिये जाने के बाद नये नाॅर्म्स  जोड़ दिये जाते हैं।
कई बैंक ऐसे हैं जो बिना रेरा के फायनेंस नहीं करते, जिसकी वजह से प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ पाते हैं।
ऐसी स्थिति में बिल्डर ज्यादा ब्याज लेने वाली ऐसी बैंकिंग संस्थाओं के पास जाते हैं जो रेरा अप्रूवल के बिना भी लोन दे देते हैं।
मान लो 100 प्रोजेक्ट रेरा अप्रूवल के लिये कतारबद्ध हैं इनमें से केवल 25 ही आगे बढ़ पाते हैं।
प्रदेश में नियम से प्रोजेक्ट तैयार करने और नियम से घर खरीदने वालों की परेशानी बढ़ रही है।
प्रोजेक्ट के कम्प्लीशन सर्टिफिकेट में आईएएस अधिकारी के हस्ताक्षर होते हैं मगर उसे भी अमान्य कर दिया जाता है।

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