रेटिनोब्लास्टोमा: 8 साल तक बच्चों की छिन रही आंखों की रोशनी, ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे ज्यादा प्रभावित

  • समय पर उपचार नहीं होने से होती आंखें खराब
  • कैंसर रोग विभाग में होता है उपचार
  • बच्चे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं

Bhaskar Hindi
Update: 2024-01-15 14:07 GMT

डिजिटल डेस्क, नागपुर, चंद्रकांत चावरे | रेटिनोब्लास्टोमा, जिसे नेत्र कैंसर के नाम से पहचाना जाता है। यह बीमारी 8 साल तक की आयु के बच्चों में पाई जाती है। शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेडिकल) के कैंसर रोग विभाग में हर साल कुल नए मरीजों में से आधा फीसदी मरीज इस बीमारी से ग्रस्त आते हैं। कैंसर रोग विभाग में हर साल औसत 2300 नए मरीज दर्ज किए जाते हैं। इनमें से आधा फीसदी यानी सालाना 115 मरीज रेटिनोब्लास्टोमा के दर्ज होते हैं। जागरूकता की कमी के कारण इस बीमारी से आंखों की रोशनी चली जाती है। प्राथमिक चरण से ही उपचार कराने पर यह बीमारी ठीक हो सकती है। 

समय पर उपचार नहीं होने से होती आंखें खराब

कैंसर रोग विभाग के सूत्रों के अनुसार मेडिकल के कैंसर रोग विभाग में हर साल 2300 नए मरीजों का पंजीयन होता है। इनमें से अधिकतर मरीज ग्रामीण क्षेत्रों के होते हैं। यह तीसरे व चौथे चरण में होते है। यह सभी कैंसर के विविध प्रकारों से पीड़ित होते हैं। इन्हीं में रेटिनोब्लास्टोमा के मरीज भी होते हैं। यह बीमारी अधिकतम 8 साल की अायु के बच्चों में पाई जाती है। इसमें पहले एक आंख खराब होने लगती है। समय पर उपचार नहीं करने पर दूसरी आंखों पर भी असर होता है। यह बीमारी ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों में अधिक पाई जाती है। मेडिकल में जब यह मरीज उपचार के लिए आते हैं, तो रेटिनोब्लास्टोमा तीसरे व चौथे चरण में पहुंच जाता है। तब तक आंखों की रोशनी चली जाती है। कई बार दोनों आंखें खराब हो जाती हैं। मेडिकल में आने वाले 115 में से अाधे की यही हालत होती है।

दोबारा नहीं आते : रेटिनोब्लास्टोमा होने पर कीमो थेरेपी, रेडिएशन, क्रायो थेरेपी, लेजर थेरेपी, एनक्लूएशन आदि पद्धति से उपचार किया जाता है। कीमो थेरेपी के साथ दवाएं लेते रहने पर टयूमर में लाभ मिलता है। रेडिएशन के जरिए कैंसर की कोशिकाओं को खत्म किया जाता है। छोटे ट्यूमर में क्रायो थेरेपी और लेजर थेरेपी के माध्यम से छोटे ट्यूमर का प्रभावी तरीके से उपचार होता है। आंखे अधिक खराब होने की स्थिति में सर्जरी करनी पड़ती है। रेटिनोब्लास्टोमा का उपचार थोड़ा कठिन होने से मरीजों को तकलीफ होती है, इसलिए अक्सर मरीज एक बार उपचार करवाने के बाद नियमित उपचार के लिए नहीं आते, जिससे आंखें खराब होकर रोशनी चली जाती है। 

कैंसर रोग विभाग में होता है उपचार

डॉ. अशोक कुमार दीवान, कैंसर राेग विभाग प्रमुख, मेडिकल के मुताबिक कैंसर के प्रति ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता का अभाव है। लोग आज भी छोटे-छोटे क्लिनिकों के भरोसे हैं। आर्थिक समस्या के चलते शहरों में आने से कतराते रहते हैं। जब मेडिकल में आते हैं, तब तक बीमारी तीसरे-चौथे चरण में पहुंच चुकी होती है। ऐसे में उपचार का कितना लाभ मिलेगा, यह बता पाना मुश्किल होता है। आंखों की कोई भी तकलीफ होने पर नेत्र रोग विशेषज्ञों को दिखाकर उनकी सलाहनुसार सभी तरह की जांच व उपचार करवाना चाहिए। ताकि समय पर उपचार हो सके। मेडिकल के कैंसर रोग विभाग में कैंसर से संबंधित विविध बीमारियों का उपचार होता है। 


यह होते हैं लक्षण : रेटिनोब्लास्टोमा का मुख्य कारण अनुवांशिकता बताई जाती है। बच्चों को यह बीमारी विरासत में मिलने का प्रमाण अधिक है। इस बीमारी के प्राथमिक लक्षणों में पुतलियाें का सफेद होना शामिल है। प्रारंभ में ल्यूकोरिया का असर होता है। आंख सामान्य की बजाय सफेद या धुंधली दिखाई देती है। आड़ी-तिरछी नजरें होना, आंखे लाल होना, सूजन आना, आंखों में दर्द होना समेत अन्य बदलाव होते हैं। ऐसे में नेत्र रोग विशेषज्ञ से आंखों की जांच करवाना जरूरी बताया गया है। विविध तकनीक से जांच करने के बाद बीमारी की पुष्टि हो जाती है। इसमें जांच के तौर पर इमेजिंग, अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन, एमआरआई, संभावित ट्यूमर आदि की जांच की जाती है।

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