गर्भाशय कैंसर: मृत महिलाओं में 19 फीसदी की उम्र 50 से कम, टीकाकरण नीति में HPV शामिल करना जरूरी

  • टीकाकरण नीति में एचपीवी को शामिल करना जरूरी
  • एक से अधिक लैंगिक संबंध रखना है कारण
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रिपोर्ट प्रकाशित

Bhaskar Hindi
Update: 2024-01-22 13:48 GMT

डिजिटल डेस्क, नागपुर। कैंसर से मरनेवाली महिलाओं में गर्भाशय के कैंसर से मरनेवाली महिलाओं की संख्या अधिक है। इससे हर साल 70 हजार महिलाओं को अपनी जान गंवानी पड़ती है। इसमें से 19 फीसदी महिलाओं की आयु 50 साल से कम होती है। वर्तमान में उपलब्ध आधुनिक उपचार पद्धति से कैंसर का निदान होता है। प्राथमिक स्तर से ही नियमित उपचार किया गया तो कैंसर से बचा जा सकता है।

इसके लिए 30 साल की उम्र पार करने पर महिलाओं ने हर पांच साल में ह्यूमन पॅपिलोमा वायरस (एचपीवी) नामक जांच करवानी चाहिए। सरकार ने अपनी टीकाकरण नीति में इस जांच को शामिल करना चाहिए। एडवायजरी कमेटी ऑफ नेशनल इम्यूनाइजेशन प्रैक्टिसेस के सदस्य व टीकाकरण विशेषज्ञ डॉ. संजय मराठे ने कहा है। उन्होंने टीकाकरण के संबंध में बताया कि कीटाणु, वायरस व जीवजंतुओं के संक्रमण से होनेवाली मृत्यु दर को कम किया जा सकता है।

एडवाइजरी कमेटी ऑफ नेशनल इम्यूनाइजेशन प्रैक्टिसेस इस केंद्रीय समिति द्वारा हर साल टीकाकरण को लेकर विविध अभियान चलाये जाते हैं। इस समिति द्वारा राज्य सरकार को विविध सलाह दी जाती है। इस समिति में टीकाकरण विशेषज्ञ के रूप में डॉ. मराठे शामिल हैं।

एक से अधिक लैंगिक संबंध रखना है कारण

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इसमें गर्भाशय के कैंसर से महिलाओं की मौत के संबंध में नीतिगत कार्यक्रम तैयार करने की सूचना दी गई है। इसे लेकर आयोजित संवाद कार्यक्रम में डॉ. मराठे ने विविध पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कैंसर के कारण होनेवाले मृत्यु में गर्भाशय के कैंसर से मरनेवालों की संख्या एक चौथाई है। इनमें से अधिकतर महिलाएं 30 से 50 साल आयु वर्ग की होती है। पश्चिमी देशों के मुकाबले भारतीय महिलाओं में गर्भाशय कैंसर की जांच का प्रमाण केवल 2 फीसदी है।

जांच व उपचार के अभाव में इस बीमारी से मरनेवालों में भारतीय महिलाओं का प्रमाण अधिक है। इसका कारण एक से अधिक लैंगिक संबंध रखना बताया गया है। इससे संक्रमण होकर मुख गर्भाशय का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए जांच के बाद एचपीवी टीकाकरण होना चाहिए। यह टीके मुख गर्भाशय कैंसर के वायरस को कम करते हैं। इसे नियमित टीकाकरण नीति में शामिल करना जरूरी है। सरकार ने इसकी दखल लेनी चाहिए।

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