यस बैंक घोटाला : धीरज वाधवान को बॉम्बे हाईकोर्ट से राहत

  • निजी अस्पताल में ट्रायल कोर्ट के फैसले तक रहने की मिली अनुमति
  • यस बैंक घोटाला
  • सीबीआई शुक्रवार को ट्रायल कोर्ट में दायर करेगा जवाब

Bhaskar Hindi
Update: 2023-07-27 14:40 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने यस बैंक घोटाले के आरोपी डीएचएफएल प्रमोटर धीरज वधावन को बड़ी राहत मिली है। अदालत ने उन्हें ट्रायल कोर्ट का फैसला आने तक मुंबई के एक निजी अस्पताल में रहने की अवधि बढ़ाने की अनुमति दे दी है। एक विशेष अदालत ने वधावन को 13 जुलाई को 8 दिनों तक निजी अस्पताल में रहने की अनुमति दी थी। उन्हें 18 जुलाई को निजी अस्पताल में भर्ती न्यायमूर्ति पी.डी.नाइक की एकलपीठ के समक्ष गुरुवार को धीरज वधावन की याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता के वरिष्ठ वकील अमित देसाई और वकील रोहन दक्षिणी ने दलील दी कि जब डॉक्टरों के दिमाग में ईडी और सीबीआई जैसी एजेंसियों का डर बैठ जाता है, तो वे सब कुछ भूल जाते हैं। क्योंकि वे ही भी दहशत में हैं। निजी अस्पताल के डॉक्टर ने अदालत के समक्ष एक आवेदन दिया कि वधावन को 3 से 4 दिनों के लिए अस्पताल में रहने की जरूरत है। डॉक्टर द्वारा दिए गए डिस्चार्ज आवेदन को देखें, तो लगता है कि मरीज को अस्पताल में रहने के लिए कोई विस्तार नहीं मिला है, इसलिए उसे छुट्टी दी जा रही है।

देसाई ने आरोप लगाया कि वाधवान को डिस्चार्ज करने के लिए अस्पताल पर सीबीआई अधिकारी दबाव बना रहे हैं। जबकि तलोजा सेंट्रल जेल की स्थिति ऐसी है कि जहां कथित तौर पर केवल आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं और जेल अस्पताल में नर्सिंग स्टाफ की अनुपस्थिति के साथ कोई सुविधाएं नहीं हैं। सीबीआई ने यह बताने के लिए कोई हलफनामा दायर नहीं किया है कि वधावन सुविधा का दुरुपयोग कर रहे थे। यदि जेल में याचिकाकर्ता की तबीयत खराब हो जाती है और उसके साथ कोई हादसा हो जाता है, तो जिम्मेदारी कौन लेगा। जेल में इंजेक्शन कौन लगाएगा? अगर उसकी तबीयत खराब हो रही थी, तो लक्षण कौन देखेगा? अस्पताल में उसका इलाज क्यों नहीं किया जा सकता? हम डॉक्टर नहीं हैं। डॉक्टरों को अपने करियर को जोखिम में डाले बिना डॉक्टरों को इलाज करने की आजादी दी जानी चाहिए।

विशेष लोक अभियोजक एएम चिमलकर ने कहा कि वधावन ने हमेशा सरकारी अस्पताल में भर्ती होने से इनकार कर दिया है, चाहे वह राज्य संचालित जे.जे. अस्पताल हो या दिल्ली में एम्स। उन्होंने कहा कि कैसे वधावन ने अस्पताल में रहने की सुविधा का दुरुपयोग किया था। पिछली बार उन्होंने एक आदमी को अस्पताल में भर्ती कराया और वह आरोपी के पास आया, दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए और इस तरह कुछ पेंटिंग बेची गईं। मामले में उसके खिलाफ आरोप पत्र भी दायर किया गया है।

चिमलकर ने अमीत देसाई की इस दलील का विरोध किया कि ट्रायल कोर्ट का फैसला आने तक वधावन को अस्पताल में रहने की अनुमति दी जाए। चिमलकर ने कहा कि वह वहां रिसॉर्ट में रहने के लिए नहीं गए हैं और इसलिए यह डॉक्टर को तय करना है कि उन्हें कितने समय तक भर्ती रखना है। वधावन पहले 11 महीने तक मुंबई के एक "आलीशान" निजी अस्पताल में थे।

न्यायमूर्ति नाइक ने चिमलकर से पूछा कि क्या एजेंसी ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष जवाब दाखिल किया है। चिमलकर ने आश्वासन दिया कि शुक्रवार तक जवाब दाखिल कर दिया जाएगा। इस पर पीठ ने कहा कि मामला ट्रायल कोर्ट के क्षेत्र से संबंधित है। ट्रायल कोर्ट को निर्णय लेने दें। इस तरह पीठ ने वधावन को राहत देते हुए उनकी याचिका को समाप्त कर दिया।

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