Mumbai News: बॉम्बे हाईकोर्ट से एक कस्टोडियल डेथ के मामले में पुलिस अधिकारी 30 साल बाद निर्दोष बरी

    Bhaskar Hindi
    Update: 2024-11-28 16:03 GMT

    Mumbai News : बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक कस्टोडियल डेथ के मामले में पुलिस अधिकारी सिद्दप्पा काशीराय सावली को 30 साल बाद निर्दोष बरी कर दिया। अदालत ने उनके खिलाफ ट्रायल कोर्ट के 2002 के आदेश को रद्द कर दिया है। अदालत ने माना कि प्रथम दृष्टया मुझे कोई कारण नहीं दिखाई देता कि बिना किसी प्रथम दृष्टया समर्थन सामग्री के याचिकाकर्ता को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। 1993 में तलोजा पुलिस की हिरासत में चोरी के एक संदिग्ध आरोपी की मौत हो गई थी। इस मामले में पुलिस अधिकारी सावली को जिम्मेदार ठहराया गया था। न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की एकल पीठ के समक्ष पुलिस अधिकारी सिद्दप्पा काशीराय सावली की ओर से वकील निरंजन मुंदरगी और केरल मेहता की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द करने और उसे (याचिकाकर्ता) को कस्टोडियल डेथ के मामले में बरी करने का अनुरोध किया गया। पीठ ने याचिकाकर्ता की याचिका को स्वीकार करते हुए अपने आदेश में कहा कि ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ता की बरी करने की याचिका को खारिज करते हुए कोई कारण नहीं बताए। आपराधिक कानून में कोई प्रतिनिधि दायित्व नहीं है और इसलिए मामले के तथ्यों पर विचार करने की आवश्यकता है। जबकि ट्रायल कोर्ट का यह कर्तव्य था कि वह प्रथम दृष्टया साक्ष्य पर विचार करे और यह पता लगाए कि क्या यह याचिकाकर्ता के खिलाफ अभियोजन पक्ष द्वारा बनाए गए मामले के अनुरूप है।

    क्या है पूरा मामला

    याचिकाकर्ता तलोजा पुलिस स्टेशन में पुलिस उप निरीक्षक के पद पर तैनात था। 19 सितंबर 1993 को पनवेल के टोंडारे गांव निवासी भाऊ राम पाटिल ने तलोजा पुलिस स्टेशन में अपने घर में सोने के गहने चोरी की शिकायत दर्ज कराई थी। पुलिस ने अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 380 और 34 के तहत मामला दर्ज किया था। मामले की जांच पुलिस उप निरीक्षक सिद्दप्पा काशीराय सावली को सौंपी गई थी। सावली के नेतृत्व में चार पुलिसकर्मियों ने इस मामले में तीन संदिग्धों को पकड़ा था। उसमें से एक संदिग्ध आरोपी पांडुरंग धर्म पाटिल ने पुलिस स्टेशन के शौचालय में फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली। आरोपी के घर वालों ने पुलिस की मारपीट से परेशान होकर पाटिल के आत्महत्या करने की बात कही। तलोजा पुलिस स्टेशन के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक और उप निरीक्षक सावली समेत 6 पुलिसकर्मियों के खिलाफ कस्टोडियल डेथ का मामला दर्ज किया गया था। वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक विनायक जोशी और उप निरीक्षक सावली ने ट्रायल कोर्ट में इस मामले से बरी होने के लिए आवेदन किया। ट्रायल कोर्ट ने जोशी को निर्दोष बरी कर दिया, लेकिन उसी मामले में सावली के आवेदन को खारिज कर दिया। सावली ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी।

    नवाब मलिक के खिलाफ दर्ज एट्रोसिटी मामले में हाई कोर्ट ने पुलिस केस डायरी और जांच की प्रगति रिपोर्ट किया तलब

    हाई कोर्ट ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित) के नेता और पूर्व मंत्री नवाब मलिक के खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम (एट्रोसिटी) के तहत दर्ज मामले में मुंबई पुलिस से केस डायरी और जांच की प्रगति रिपोर्ट तलब किया है। अदालत ने इसको लेकर पुलिस को नोटिस जारी किया है। आईआरएस अधिकारी समीर वानखेडे ने याचिका के जरिये मलिक के खिलाफ वर्ष 2022 में दर्ज एट्रोसिटी के मामले की जांच सीबीआई को सौंपने का आदेश देने का अनुरोध किया है।

    अदालत ने गोरेगांव पुलिस को रिपोर्ट पेश करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया है। याचिकाकर्ता का आरोप है किउसने अगस्त 2022 में गोरेगांव पुलिस में मलिक के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी।लेकिन इसमें पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। पुलिस के उदासीन रवैये से याचिकाकर्ता (वानखेडे) और उनके परिवार के सदस्यों को जाति और नस्ल के आधार पर अपमानित होने के कारण मानसिक कष्ट का सामना करना पड़ रहा है।नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) मुंबई के पूर्व जोनल डायरेक्ट और महार अनुसूचित जाति के सदस्य वानखेडे की याचिका में दावा किया गया है कि 2021 में मलिक के दामाद समीर खान को उन्होंने गिरफ्तार किया था। आरोप है कि इसके बाद मलिक ने सोशल मीडिया और टेलीविजन पर उन्हें (वानखेडे) और उनके परिवार को बदनाम करने और अपमानित करने के लिए अभियान चलाया। मलिक ने उनकी जाति के बारे में अपमानजनक टिप्पणी की। वानखेडे की तरफ से पुलिस पर आरोप है किवह मामले की जांच नहीं कर रही है। इसलिए अदालत से इसकी जांच सीबीआई को सौंपने का अनुरोध किया है।

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