हाईकोर्ट: बिना किसी आधार के दोषियों को पैरोल के लाभ में कटौती नहीं की जा सकती है

  • अदालत ने दोषियों को छुट्टी देने से मना करने पर जेल अधिकारियों की खिंचाई की
  • हत्या के मामले में दोषी तबरेज खान को मिली फरलो

Bhaskar Hindi
Update: 2024-07-15 15:22 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई. बॉम्बे हाई कोर्ट ने राज्य के जेल अधिकारियों के दोषियों को पैरोल और फरलो का लाभ देने से मना करने का आदेश देने के लिए खिंचाई की। अदालत ने कहा कि बिना किसी आधार के दोषियों को पैरोल और फरलो के लाभ में कटौती नहीं की जा सकती है। न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की पीठ के समक्ष दोषी तबरेज खान की याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान पीठ ने अपने आदेश में कहा कि स्थानीय पुलिस स्टेशन की रिपोर्ट में किसी दोषी की पैरोल या फरलो पर आपत्ति जताई गई है, तो केवल इसके आधार पर दोषी के पैरोल या छुट्टी के लाभ में कटौती नहीं की जा सकती। पीठ ने जेल अधिकारियों के फैसले को रद्द करते हुए तबरेज खान को फरलो दे दिया। अदालत ने इस बात का उल्लेख किया कि अगस्त 2022 में राज्य कारागार विभाग ने एक परिपत्र जारी कर जेल अधिकारियों को निर्देश दिया था कि वे केवल पुलिस की प्रतिकूल रिपोर्ट के आधार पर पैरोल और फरलो आवेदनों को अस्वीकार न करें।

पीठ ने कहा कि हमें उम्मीद है कि जेल और सुधार सेवाओं के महानिरीक्षक अपने विभाग द्वारा जारी इन दिशानिर्देशों के प्रति सचेत हैं। जेल प्रणाली में पैरोल और फरलो के प्रावधान मौजूद हैं, जिससे एक दोषी अपने पारिवारिक संबंधों और अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन कर सकता है। कारावास की सजा काट रहा एक दोषी इन लाभों का हकदार है। पीठ ने कहा कि जेल और सुधार सेवाओं के महानिरीक्षक ने एक हलफनामे में अदालत को बताया कि पुलिस ने खान को छुट्टी पर रिहा करने पर आपत्ति जताई है, क्योंकि गवाहों की जान को खतरा होने की संभावना है।

केंद्रीय जेल के उप महानिरीक्षक ने खान को छुट्टी देने से इनकार करते हुए कहा कि उसके खिलाफ अन्य मामले लंबित हैं और वह एक गैंगस्टर से जुड़ा हुआ है। खान को एक हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था। वह नासिक केंद्रीय जेल में इस मामले में सजा काट रहा है और कुछ अन्य मामलों में भी आरोपी है, जिनमें उसे जमानत दी गई है। पीठ ने कहा कि हमें उम्मीद है कि अधिकारी ऐसी टिप्पणी करने से बचेंगे, जो पूरी तरह से निराधार है। केवल एक दोषी को मिलने वाले लाभ से वंचित करने के इरादे से लिखी गई है, जो कैद होने के बावजूद भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अपने अधिकार से वंचित नहीं है।

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