खिला चेहरा: ध्वनि की मदद से छह साल की बच्ची ने पहली बार सुनी दुनिया की आवाज
- मुंबई मनपा के सहयोग से सुनने की समस्या से जूझ रहे बच्चों की हो रही जांच
- मनपा का उद्यानों मे लगे हैं मदद के लिए पोस्टर
- 2010 के बाद 50 से ज्यादा बच्चों का कराया कॉक्लीअर इंप्लांट
डिजिटल डेस्क, मुंबई, दुष्यंत मिश्र। छह साल की सुमैय्या खातून ने आवाज देने पर प्रतिक्रिया दी तो उसके माता-पिता की खुशी का ठिकाना नहीं था क्योंकि बच्ची ने पहली बार आवाज पर कोई प्रतिक्रिया दी थी। बोरिवली इलाके में रहने वाले आर्थिक रुप से कमजोर परिवार के पास बच्ची के इलाज के लिए पैसे नहीं थे। इसी बीच उन्होंने मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) के उद्यान में एक पोस्टर देखा, जिसमें सुनने की परेशानी से जूझ रहे बच्चों की जांच और इलाज की मुफ्त व्यवस्था की बात लिखी हुई थी। उन्होंने दिए गए नंबर पर संपर्क किया और इलाज के बाद अब बच्ची सुनने लगी है। सुमैय्या अकेली नहीं है विपला फाउंडेशन सुनने की परेशानी से जूझ रहे हजारों बच्चों की मदद कर चुका है। भिवंडी के मनीष चव्हाण ने बताया कि उनकी बेटी जब चार-पांच महीने की हुई तो उन्हें समझ में आने लगा कि उसे सुनाई नहीं दे रहा है क्योंकि आवाज देने पर या कोई चीज गिरने पर वह कोई प्रतिक्रिया नहीं देती थी। जांच के बाद साफ हुआ कि बच्ची की श्रवण क्षमता 96 फीसदी कम थी। परिजनों ने बताया कि पोस्टर देखने के बाद हमने विपला फाउंडेशन से संपर्क किया। उन्होंने मशीन की व्यवस्था की जिसके बाद बच्ची की सुनने की क्षमता में काफी सुधार हुआ है। विपला फाउंडेशन के सीईओ प्रमोद निरगुडकर ने बताया कि संस्था ‘ध्वनि’ नाम से सुनने की परेशानी से जूझ रहे बच्चों के लिए मुफ्त सहायता उपलब्ध कराती है। जो परिवार इलाज का खर्च नहीं उठा पाते उनके लिए हम दूसरी संस्थाओं से आर्थिक सहयोग भी जुटाते हैं। मदद हासिल करने वालों में मुंबई ही नहीं देशभर के लोग शामिल हैं।
सिग्नल पर ठिठुरते बच्चों को देखकर हुई थी शुरुआत
संस्था की शुरुआत विपुला कादरी ने 33 साल पहले भारी बरसात में सिग्नल पर ठिठुरते बच्चों को देखकर की थी। उनकी इच्छा बेसहारा बच्चों की मदद करने की थी। संस्था के जरिए उन्होंने फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों को पढ़ाने से अपनी समाजसेवा का काम शुरु किया था, जिसमें समय के साथ कई आयाम जुड़ते गए। बच्चों को पढ़ाने के दौरान समझ में आया कि कई बच्चे सुनने और समझने की परेशानी से जूझ रहे हैं। धीरे-धीरे काम करते हुए समझ में आया कि बच्चों की जांच और इलाज की जल्द व्यवस्था करनी जरूरी है। इसके बाद उन्होंने मुहिम ‘ध्वनि’ के जरिए कमजोर वर्ग के लोगों को जागरूक करने की मुहिम शुरू की। 2007 में उनका निधन हो गया, लेकिन इसके बाद भी संस्था लगातार समाजसेवा के काम में जुटी हुई है।
4 हजार से ज्यादा बच्चों की हो चुकी जांच
संस्था से जुड़ी शरलिन ने बताया कि हमने 2010 से अब तक 50 से ज्यादा बच्चों का कॉक्लीअर इंप्लांट कराया गया है। इसके लिए 7 से 9 लाख का खर्च आता है जिसके लिए दानदाताओं से मदद ली जाती है। संस्था 4,022 बच्चों की जांच करा चुकी है जिसमें से 808 बच्चों में सुनने की समस्या पाई गई, जिनका इलाज कराया गया।
मिस कॉल देकर ले सकते हैं मदद
सुनने, बोलने और भाषा समझने की परेशानी से जूझ रहे बच्चों के लिए संस्था की मदद ली जा सकती है। इसके लिए 022-49393333 पर मिस कॉल देना होगा। जिसके बाद संस्था से जुड़े लोग फोन कर संबंधित नंबर पर संपर्क करते हैं और जरूरी मदद मुहैया कराते हैं।
बीएमसी ने की मदद
संस्था ज्यादा से ज्यादा अभिभावकों तक पहुंचना चाहती थी, इसके लिए उसने मुंबई महानगर पालिका के उद्यान विभाग से सहयोग मांगा। जिसे उद्यान विभाग के अधीक्षक जितेंद्र परदेशी ने स्वीकार कर लिया। इसके बाद संस्था ने ज्यादातर उद्यानों में हेल्पलाइन के पोस्टर लगाए। जिसका नतीजा हुआ है कि मदद के लिए फोन करने वाले अभिभावकों की संख्या कई गुना बढ़ गई है।
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