12 एमएलसी के नामांकन वापस लेने के खिलाफ दायर याचिका पर जवाब तलब
- 10 दिनों में हलफनामा दायर करने का निर्देश
- कोल्हापुर के उद्धव गुट के शिवसेना शहर प्रमुख ने दायर की है जनहित याचिका
डिजिटल डेस्क, मुंबई. राज्य में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार के उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार द्वारा प्रस्तावित विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) के लिए 12 नामांकन वापस लेने के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर चुनौती दी गई है। अदालत ने सरकार को 10 दिनों के अंदर हलफनामा दायर कर जवाब देने का निर्देश दिया है।
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की खंडपीठ के समक्ष सोमवार को कोल्हापुर शहर के उद्धव गुट के शिवसेना प्रमुख सुनिल मोदी की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। खंडपीठ ने जनहित याचिका पर जवाब देने के लिए महाराष्ट्र सरकार को 10 दिन का समय दिया। नवंबर 2020 में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली एमवीए सरकार ने राज्यपाल को एमएलसी के रूप में 12 नामों की एक सूची की सिफारिश की थी। इसके बाद 2020 में हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें राज्यपाल को उस पर निर्णय लेने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी। उस समय हाईकोर्ट ने कहा था कि उचित समय के भीतर नामों को स्वीकार करना या वापस करना राज्यपाल का संवैधानिक कर्तव्य है।
एक साल बाद राजनीतिक उथल-पुथल के बाद राज्य सरकार बदल गई और एकनाथ शिंदे ने राज्य के नए मुख्यमंत्री का पद संभाला, तो नई कैबिनेट ने कथित तौर पर राज्यपाल को पत्र लिखा कि वे पिछली सरकार द्वारा प्रस्तुत 12 नामों की लंबित सूची को वापस ले रहे हैं। राज्यपाल ने पिछले साल 5 सितंबर को इसे स्वीकार कर लिया और उनके कार्यालय ने सूची मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) को वापस लौटा दी।
मोदी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल अंतुरकर ने अदालत में दलील दी कि राज्यपाल को हाईकोर्ट की खंडपीठ के फैसले पर ध्यान देना चाहिए था। यह वह मामला है, जहां प्राधिकरण 8 महीने से इस पर चुप्पी साधे बैठा है। खंडपीठ ने कहा कि यह ऐसा मामला है, जिसमें विनम्र तरीके से कुछ फैसले की जरूरत है. अदालत द्वारा कही गई किसी बात का सम्मान नहीं किया गया. यह उचित नहीं होगा. खंडपीठ ने राज्यपाल से अपने मन की बात कहने को कहा। महाधिवक्ता (एजी) डॉ. बीरेंद्र सराफ ने विचारणीयता के आधार पर याचिका का विरोध किया। उनके विवाद का मुद्दा यह था कि कैबिनेट पर सिफारिशें करने या सिफारिशें वापस लेने पर कोई रोक नहीं है। आज राज्यपाल के समक्ष कोई अनुशंसा नहीं है।
याचिकाकर्ता आज यह नहीं कह सकते कि सिफारिश की गई है, तो उसे हमेशा जारी रखा जाना चाहिए।' यह उनका मामला नहीं है कि राज्यपाल को पहले निर्णय लेना चाहिए था। उन्होंने कहा कि राज्यपाल ने सिफारिश की फाइल लौटा दी, क्योंकि वापसी के बाद कोई अन्य सिफारिश लंबित नहीं थी। यह कोई नीति परिवर्तन नहीं है. वही सरकार अपनी सिफारिश में बदलाव भी कर सकती है. एक बार सरकार बदलने के बाद कैबिनेट को पुनर्विचार करने की शक्ति से वंचित नहीं किया जा सकता है। अदालत ने सराफ को एक हलफनामे के रूप में सरकार की ओर से जवाब देने का निर्देश दिया है।