बॉम्बे हाईकोर्ट: बांद्रा की बजाय गोरेगांव में नई इमारत की भूमि की उपलब्धता का पता लगाने का निर्देश
- सरकार ने बांद्रा में नई हाई कोर्ट इमारत की आवंटित भूमि 2025 तक खाली होने की बात कही
- 25 जून को मामले की अगली सुनवाई
- गोरेगांव में नई इमारत की भूमि की उपलब्धता का पता लगाने का निर्देश
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से नए हाई कोर्ट इमारत के लिए गोरेगांव में जमीन की उपलब्धता देखने का निर्देश दिया है। अदालत ने टिप्पणी की कि यह केवल मेरी ओर से एक सोच है, हम गोरेगांव में खाली जमीन की उपलब्धता का पता लगा सकते हैं। इस गति से हम 2031 तक हाई कोर्ट की इमारत तैयार कर लेंगे। मुख्य न्यायाधीश देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति एएस डॉक्टर की खंडपीठ के समक्ष शुक्रवार को वकील अहमद आब्दी की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। खंडपीठ ने कहा कि हम राज्य सरकार को बांद्रा में वर्तमान परियोजना (हाई कोर्ट इमारत) को महत्व की सार्वजनिक परियोजना घोषित करने से नहीं रोकेंगे। हालांकि सरकार बांद्रा (पूर्व) में 44 एकड़ के आवंटित भूखंड पर तब तक कोई भी निर्णय न ले, जब तक कि हम नए अदालत परिसर पर कोई रुख अपना नहीं लेते हैं। अदालत ने सरकार से गोरेगांव की भूमि पर विचार करने का आग्रह किया, खासकर अगर प्रस्तावित कोस्टल रोड के माध्यम से उस तक (हाई कोर्ट की नई इमारत) पहुंचा जा सकता है। अदालत ने कहा कि बांद्रा में आवंटित भूमि को खाली नहीं कराया जा सका है। ऐसे में सरकार उस क्षेत्र का एक मोटा स्केच प्रदान करे, जहां से प्रस्तावित कोस्टल रोड के माध्यम से गोरेगांव में नई इमारत बनाए जाने पर उस तक पहुंच को दर्शाती हो। सरकार ने अदालत में हलफनामा दाखिल कर कहा कि प्रस्तावित नई हाई कोर्ट इमारत की भूमि दक्षिण कोरिया गणराज्य के आर्थिक विकास सहयोग कोष (ईडीसीएच) की सहायता से बांद्रा में 89 एकड़ से अधिक भूमि के पुनर्विकास के एक विशेष परियोजना का हिस्सा है। बांद्रा में नई हाई कोर्ट इमारत के लिए निर्धारित 30.16 एकड़ भूमि में से 13.73 एकड़ का एक हिस्सा मार्च 2025 तक उपलब्ध होने की उम्मीद है। खंडपीठ ने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट इमारत के लिए 100 एकड़ जमीन आवंटित की है। इस पर बीरेंद्र सराफ ने कहा कि मुंबई में जमीन की कीमत और उपलब्धता की तुलना छत्तीसगढ़ से नहीं की जा सकती। गोरेगांव में एक खाली 300 एकड़ का भूखंड उपलब्ध था, लेकिन उस भूमि का एक बड़ा हिस्सा अब एमएनएलयू को आवंटित किया गया है, क्योंकि हाई कोर्ट ने वहां जल्द पहुंचने के मुद्दों के कारण उस भूमि को खारिज कर दिया था।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने शहीद की विधवा को लाभ देने से इनकार करने पर राज्य सरकार पर जताई नाराजगी
इसके अलावा बॉम्बे हाई कोर्ट ने शुक्रवार को पूर्व सैनिकों के लिए अपनी विशेषाधिकार नीति के तहत जम्मू-कश्मीर में शहीद हुए सेना के मेजर अनुज सूद की विधवा आकृति सूद को लाभ देने से राज्य सरकार के इनकार करने पर नाराजगी जताई। अदालत ने सरकार को हलफनामा दाखिल कर 17 अप्रैल तक जवाब देने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति गिरीश कुलकर्णी और न्यायमूर्ति फिरदोश पूनीवाला की खंडपीठ के समक्ष शुक्रवार को आकृति सूद की याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान सरकारी वकील पी.पी.काकड़े ने कहा कि सूद को लाभ नहीं दिया जा सकता, क्योंकि वह राज्य के "निवासी’ नहीं थे। हमें एक उचित नीतिगत निर्णय लेने की जरूरत है, जिसके लिए हमें कैबिनेट से संपर्क करने की जरूरत है। जबकि कैबिनेट अभी नहीं बैठ रही है। खंडपीठ इससे प्रभावित नहीं हुई और कहा कि हर बार निर्णय न लेने के लिए कोई न कोई कारण दिया जाता है। हमने मुख्यमंत्री से निर्णय लेने का अनुरोध किया था। उन्हें निर्णय लेना चाहिए था। यदि वह निर्णय नहीं ले सकते थे या निर्णय लेना उनके लिए बहुत अनुचित था, तो हमें बताएं, हम इससे निपटेंगे। आकृति सूद द्वारा 2019 और 2020 के दो सरकारी प्रस्तावों के तहत पूर्व सैनिकों के लिए लाभ (मौद्रिक) की मांग की गई थी। मेजर सूद ने 2 मई, 2020 को जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी ठिकानों से नागरिक बंधकों को बचाते समय अपनी जान गंवा दी थी। उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया था। आकृति सूद ने अपनी याचिका में 26 अगस्त 2020 को सरकार के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें यह दावा करते हुए लाभ देने से इनकार कर दिया गया था कि सूद का जन्म महाराष्ट्र में नहीं हुआ था या वह 15 वर्षों से राज्य में नहीं रह रहे थे।