मुंबई: 26 सप्ताह की गर्भवती महिला को हाईकोर्ट ने गर्भपात की इजाजत देने से किया इनकार
- न्यायालय एमटीपी अधिनियम के तहत गठित मेडिकल बोर्ड की राय पर निर्भर करती है - बॉम्बे हाई कोर्ट
- महिला विवाहित व्यक्ति से प्रेम संबंध में अनचाहे गर्भ को सामाजिक कलंक के डर से चाहती थी गिराना
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने 26 सप्ताह की गर्भवती महिला को गर्भपात की इजाजत से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि एमटीपी अधिनियम के तहत गठित मेडिकल बोर्ड की राय पर अदालत निर्भर करती है। महिला विवाहित व्यक्ति से प्रेम संबंध में अनचाहे गर्भ को सामाजिक कलंक के डर से गिराना चाहती थी।
न्यायमूर्ति अजय गडकरी और नीला गोखले की पीठ ने महिला की याचिका पर मेडिकल बोर्ड द्वारा रिपोर्ट के आधार भ्रूण को गिराने की अनुमति देने से इनकार करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता महिला ने जिस आधार पर अपनी गर्भावस्था को समाप्त करने का अनुरोध किया था, उनमें से एक आधार सामाजिक कलंक था। हमने उन आधारों पर विचार किया है, जिसमें मुख्य कारण सामाजिक कलंक का डर और उसकी आर्थिक स्थिति प्रतीत होती है। ये आधार उन अपवादों में शामिल नहीं हैं, जहां एमटीपी अधिनियम के तहत गर्भावस्था की अवधि की बाहरी सीमा हटा दी जाती है।
पीठ ने कहा सामाजिक कलंक के डर से गर्भपात कराने की उसकी इच्छा को स्वीकार करते और उसकी आर्थिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए यदि बच्चा जीवित पैदा होता है, तो अदालत अस्पताल को आवश्यकतानुसार नवजात शिशु की देखभाल प्रदान करने का निर्देश देगा। याचिकाकर्ता चाहे तो उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए बच्चे को गोद देने की अनुमति दी जा सकती है।
पीठ ने कहा कि अगर विवाहित महिला अपने पति के अलावा किसी अन्य पुरुष से गर्भवती हो जाती है, तो जैविक पिता को दर्द और सामाजिक तिरस्कार नहीं सहना पड़ता है, जैसा कि मां को सहना पड़ता है। इस मामले में महिला पति के साथ तलाक की कार्यवाही के दौरान अपने दोस्त के साथ यौन संबंध बनाने के बाद गर्भवती हो गई थी। अदालत के आदेश पर गठित मेडिकल बोर्ड ने गर्भवती महिला की मेडिकल जांच कर रिपोर्ट दिया कि महिला को गर्भपात की इजाजत नहीं दी जा सकती है।