वेदिका हत्याकांड: हाईकोर्ट ने खारिज की प्रियांश विश्वकर्मा की जमानत अर्जी
दोषी पुलिस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई के भी दिए निर्देश
डिजिटल डेस्क जबलपुर। शहर के बहुचर्चित वेदिका ठाकुर हत्याकांड के आरोपी भाजपा नेता प्रियांश विश्वकर्मा की जमानत अर्जी मप्र हाईकोर्ट ने खारिज कर दी। जस्टिस विशाल धगट की एकलपीठ ने आईजी-डीआईजी व पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिए िक एफआईआर नहीं लिखने वाले दोषी पुलिस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करें। कोर्ट ने कहा कि समय पर एफआईआर दर्ज हो जाती तो एक मासूम की जान को बचाया जा सकता था। कोर्ट ने उन अस्पतालों के खिलाफ भी कार्रवाई करने के निर्देश दिए, जिन्होंने पुलिस केस की सूचना संबंधित थाने में नहीं दी।
हाईकोर्ट में पेश किए गए जमानत आवेदन में गंगा नगर गढ़ा निवासी आरोपी प्रियांश ने कहा है िक वह 19 जून 2023 से जेल में बंद है। आरोपी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल खरे ने दलील दी िक मृतका ने अपने बयान में खुद यह कहा है िक बंदूक खराब थी, प्रियांश ने उसे लोड की और मिसफायर होकर उसे लगी। तर्क दिया गया िक प्रियांश का देविका की हत्या करने का इरादा नहीं था। उसने ही वेदिका का इलाज कराया और उसके रिश्तेदारों को सूचना दी। उल्लेखनीय है कि यह घटना प्रियांश के कार्यालय परिसर में हुई थी।
वहीं आपत्तिकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष दत्त ने जमानत का विरोध करते हुए तर्क दिया िक मृतका ने अपने बयान में कहा िक प्रियांश ने ही बंदूक में कारतूस डाले और फायर िकया। घटना स्थल पर बुलेट के 4 माक्र्स पाए गए जो इंगित करते हैं िक आरोपी ने मारने के इरादे से कई फायर िकए होंगे। अभिषेक झारिया ने भी अपनी गवाही में कहा िक घटना से पहले प्रियांश और वेदिका के बीच लड़ाई हुई थी। यह दलील भी दी गई िक गोली लगने के बाद आरोपी पीडि़ता को घुमाता रहा और शाम को एक बीएमएचएस डॉक्टर के यहाँ इलाज के लिए ले गया, जबकि घटनास्थल से दो सौ मीटर की दूरी पर मेडिकल कॉलेज मौजूद था। शासन की ओर से शासकीय अधिवक्ता अक्षय नामदेव ने पक्ष रखा।
सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा िक यह जानते हुए िक बंदूक खराब है और एक घातक हथियार है, आरोपी ने उसे लोड िकया और लड़की पर फायर करने का जोखिम उठाया। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि गोली शरीर के किस अंग में लगी, आवेदक ने स्वेच्छा से घातक हथियार चलाने का जोखिम उठाया।
तो बच जाती युवती की जान
हाईकोर्ट ने पुलिस के आला अधिकारियों को यह जाँच करने के निर्देश दिए िक किस पुलिस अधिकारी ने घटना की एफआईआर दर्ज करने से मना कर दिया था। कोर्ट ने कहा िक संज्ञेय अपराध में पुलिस अधिकारी का यह कर्तव्य है िक वह तुरंत एफआईआर दर्ज करे। यदि समय पर एफआईआर दर्ज हो जाती तो मृतका की जान बचाई जा सकती थी। जो भी दोषी पुलिस अधिकारी है उसके खिलाफ कार्रवाई की जाए।