जबलपुर: निरर्थक याचिका कोर्ट का समय बर्बाद करती हैं, एजी ऑफिस गंभीरता बरतें
- मनमाने तरीके से रिव्यू याचिका दायर करने पर जताई नाराजगी
- लगाई एक लाख रुपए की कॉस्ट
- हाई कोर्ट ने 90 दिन के भीतर अभ्यावेदन निराकृत करने के निर्देश दिए थे
डिजिटल डेस्क,जबलपुर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने मनमाने तरीके से एक रिव्यू याचिका दायर करने पर राज्य शासन को कड़ी फटकार लगाई।
कोर्ट ने कहा कि निरर्थक याचिका दायर करने से अदालत का समय बर्बाद होता है। जस्टिस संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने ओआईसी पर एक लाख रुपए की कॉस्ट भी लगाई।
कोर्ट ने कहा कि जुर्माने की राशि ओआईसी से व्यक्तिगत रूप से वसूल कर मप्र हाई कोर्ट कर्मचारी संघ को प्रदान की जाए। कोर्ट ने साफ किया कि अदालतों में लंबित मामलों की अत्यधिक संख्या से वाकिफ होने के बावजूद इस तरह का रवैया सर्वथा अनुचित है।
ऐसी निरर्थक याचिकाएँ कोर्ट का कीमती समय बर्बाद करती हैं। साथ ही वित्तीय बोझ बढ़ाती हैं। उक्त रिव्यू पिटीशन प्रमुख सचिव, आयुक्त उच्च शिक्षा व डाॅ. एसके विजय, प्राचार्य महारानी लक्ष्मी बाई काॅलेज, भोपाल की ओर से दायर की गई थी।
मामला उच्च शिक्षा विभाग में पदस्थ लैब अडेंडर के एरियर भुगतान से संबंधित था। इस मामले में दायर याचिका की सुनवाई करते हुए पूर्व में हाई कोर्ट ने 90 दिन के भीतर अभ्यावेदन निराकृत करने के निर्देश दिए थे। लेकिन ऐसा न करते हुए रिव्यू पिटीशन दायर कर दी गई।
महाधिवक्ता बनाएँ कमेटी
हाई कोर्ट ने महाधिवक्ता को कहा कि वे इस बात की तहकीकात करें कि इस तरह की निरर्थक याचिकाएँ एजी ऑफिस से कैसे दायर हो रही हैं। कोर्ट ने कहा कि महाधिवक्ता वरिष्ठ विधि अधिकारियों की एक कमेटी बनाएँ।
यह समिति इस बात की जाँच करेगी कि कोर्ट द्वारा दिए फैसले को चुनौती देना उचित है या नहीं। हाई कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दायर करने से पूर्व यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि इसका ठोस आधार मौजूद है या नहीं।