देश की प्राण शक्ति उस देश की सामाजिक समरसता है -विनोद
समरसता सेवा संगठन ने संत गाडगे जी एवं संत रविदास जी की जयंती पर किया विचार गोष्ठी एवं सम्मान समारोह का आयोजन
जबलपुर। किसी भी देश की प्राण शक्ति क्या है जब इस पर अध्यन करते है तो ध्यान आता है की आर्थिक शक्ति नहीं है, सैन्य शक्ति भी प्राण शक्ति नहीं है। किसी भी देश की प्राण शक्ति सामाजिक समरसता है, यह बात राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रांत प्रचार प्रमुख विनोद दिनेश्वर ने समरसता सेवा संगठन द्वारा संत गाडगे जी एवं संत रविदास जी की जयंती पर आयोजित विचार गोष्ठी एवं सम्मान समारोह के अवसर पर अग्रसेन कल्याण मंडपम विजय नगर में कही। समरसता सेवा संगठन द्वारा अयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि ट्रिपल आईटी डीएम के निदेशक भारतेन्दु सिंह, मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रांत प्रचार प्रमुख विनोद दिनेश्वर, विशिष्ठ अतिथि पं रोहित दुबे, समरसता सेवा संगठन के अध्यक्ष संदीप जैन, सचिव उज्ज्वल पचौरी मंचसीन थे। कार्यक्रम के प्रथम चरण में विचार गोष्ठी एवं दूसरे चरण में सामाजिक जनों का सम्मान किया गया।
मुख्य वक्ता विनोद दिनेश्वर ने विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा समरसता शब्द भारत के अंदर किसी भी मत, पंथ संप्रदाय के किसी भी धर्म ग्रंथ में नही है क्योंकि इसकी आवश्यकता ही नही थी लेकिन 712 ईस्वी में मोहमद बिन कासिम भारत आया तो उन्होंने भारत को समझा, उन्होंने भारत को तोडऩे के लिए मंदिरो को तोडऩे, गाय काटना, बहिन बेटियो की इज्जत को मिटाना यह कार्य उनने की। भारत में कभी पर्दा प्रथा नही थी लेकिन मुगलों से बचाने हेतु महिलाओं को पर्दा करने विवश होना पड़ा। बाल विवाह भी मुगलों के आने के पहले नही होता था किंतु अपनी बच्चियों को बचाने उस समय लोगो ने इस कुप्रथा को अपनाया और कुछ वर्षो पहले तक यह कुप्रथा चलती रही और आज भी कुछ ग्रामीण अंचलों में यह प्रथा चल रही है।
उन्होंने कहा अस्पृश्यता जैसी बड़ी बीमारी भारत में मुगलों के आने के बाद ही आई। साथ में रहना, पढऩा, साथ में खाना यह हमारी प्राचीन परंपरा थी उस काल में जाति देखकर मित्र नहीं बनाए जाते थे। अस्पृश्यता और छुआछूत आने से हम जाति पंथ संप्रदाय में बंट गए और इतना बंट गए कि तलवारे खीच गई जिसका फायदा बाद में अंग्रेजो ने उठाया और फुट डालो शासन करो की नीति से हमे वर्षो तक गुलाम बनाए रखा।
उन्होंने कहा इन समस्याओं को जड़मूल से निर्मूलन करना आज की आवश्यकता है। हमारे संघ का मूल भाव इस विघटित समाज को संगठित करने का कार्य करना है। हमारा मूल समाज सम्पूर्ण हिंदू समाज है और उससे अस्पृश्यता जैसी बीमारी को दूर करना आज की महती आवश्यकता है। हरी को भजो तो हरी का होई यह कोई दोहा नही है इसका मूल ही है कि जो ईश्वर के पास है वह ईश्वर का ही है मंदिर और ईश्वर किसी जाति और समाज विशेष के नही होते।
उन्होंने कहा समरसता न भाषण का विषय है, न बौद्धिक का विषय है और न कार्यक्रम का विषय है यह जीवन में उतारने का विषय है। सभी को एक रस करते हुए समरस समाज की स्थापना करनी होगी। समरसता व्यवहार में लाने का विषय है और जिस दिन हमारे व्यवहार में आ गया तो जो हमारा लक्ष्य है कि भारत विश्व गुरु बनेगा उसकी ओर हम तेजी से बड़ेंगे।
मुख्य अतिथि भारतेंदु सिंह ने विचार गोष्ठि को संबोधित करते हुए कहा समरसता वर्तमान की आवश्यकता है, बाल्यकाल में दोनो ही संतो का जीवन गरीबी में गुजरा वे सेवा कार्य करते थे और उनका मानना था स माज में दरिद्र नारायण के रूप में ईश्वर विराजमान है उनकी सेवा करना चाहिए। संत गाडगे जी स्वच्छता के अग्रदूत थे। स्वच्छता का कार्य करते हुए उन्होंने मेहतना मिलने पर महाराष्ट्र के हर जिले में उन्होंने विद्यालय, अस्पताल, छात्रावास इत्यादि का निर्माण कराया।
उन्होंने कहा संत रविदास जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर यदि हम अनुसंधान करते तो पाएंगे की उन्हे एक मुस्लिम ने उनके प्रभाव को देखा और उन्हे साथ मिलाने का प्रयास किया। उन्होंने अपनी रचनाओं और कविताओं में अवधि, राजस्थानी भाषा का भी प्रयोग किया। गुरुवाणी में संत रविदास के 40 दोहों को स्थान मिला है। रविदास जी कबीरदास जी के समकालीन थे। हम जाति मुक्त समाज बनाए और वसुधैव कुटुंबकम् के हमारे भाव को साकार करने में अपना योगदान दे।
कार्यक्रम की प्रस्तावना एवं स्वागत उद्बोधन संगठन के अध्यक्ष संदीप जैन ने रखते हुए संगठन के गठन और कार्यों के विषय में बताया। संगठन की ओर से श्रीकांत साहू ने संतो की जीवनी पर विचार व्यक्त किए।
सम्मान- कार्यक्रम के दूसरे चरण में मुन्नीलाल अहिरवार, पुरषोत्तम रजक, कुंवरपाल जाटव, राजेंद्र रजक, गोपीनाथ जाटव, जीवन रजक, दौलत चौधरी, मूलचंद रजक, रोशनलाल चौधरी, सरोज रजक, संजीव अहिरवार, सुरेश भगोलिया, जय सिंह रजक, मनोहर रजक, शंभू रजक, मीता रजक, ज्योति रजक, कृष्णा रजक, अभिलाषा रजक, धर्मेंद्र रजक, रोहित रजक, रामकिशोर रजक, सुनील रजक, गणेश रजक, मुकेश रजक, राजकुमार रजक, भगवत रजक, गोविंद प्रसाद रजक, ओंकार रजक का सम्मान किया गया।कार्यक्रम का संचालन धीरज अग्रवाल एवं आभार विनीत यादव ने किया।
कार्यक्रम में अखिल विधार्थी परिषद के प्रांत संगठन मंत्री विपिन , प्रहलाद अग्रवाल, डॉ आनंद राणा, डॉ गंगाधर त्रिपाठी, शंकर चोदहा, भोलेशंकर सोनी, रत्नेश मिश्रा, सिद्धार्थ शुक्ला, शरद सिंघई, हरिशंकर विश्वकर्मा, डॉ मुकेश पांडे, सर्वेश जायसवाल, डॉ मनोज नामदेव, अनमोल बाजपई, अनिल तिवारी, मुकेश वर्मा, अरूण विश्वकर्मा, संतोष राठौर, दीपक विश्वकर्मा, अनिल जैन, दीपक श्रीवास्तव, अनंत कोरी आदि बड़ी संख्या में गणमान्य जन मौजूद रहे।