सालों पहले जिसे 7 करोड़ खर्च कर मशक्कत के बाद बनाया, उसी की सफाई के लाले
गंदगी से तालाब के वॉकिंग जोन में भगदड़ से हालात
डिजिटल डेस्क,जबलपुर।
मानसून सीजन में आमतौर पर तालाबों में ज्यादा पानी होने पर ऑक्सीजन का स्तर बेहतर होता है उस समय जलीय जंतु बेहतर स्थितियों में होते हैं लेकिन गुलौआताल में बारिश के मौसम में भी इससे ठीक उलट हालात हैं। इस तालाब में बीते एक सप्ताह से हर दिन सैकड़ों मछलियाँ मर रही हैं। तालाब का ऑक्सीजन का स्तर घट रहा है और तालाब में मछलियों का दमघुट रहा है। इस तालाब में वैसे गर्मियों के दिनों में ऐसी स्थिति होती है जिसमें मछलियाँ मरती हैं जिससे आसपास से निकलना भी मुश्किल होता है पर इस बार बारिश के मौसम में बदतर स्थिति निर्मित हो चली है। बीते 3 दिनों से तो तालाब के किनारे मरी हुईं मछलियों का ढेर सा लग जाता है। जो मार्निंग वॉक में लोग यहाँ आते हैं वे नगर निगम की सफाई व्यवस्था को इसका जिम्मेदार मानते हैं। लोगों का कहना है कि तालाब में किसी तरह से विशेष तौर पर पानी साफ रहे इसकी ओर ध्यान ही नहीं दिया जाता है। न तो समय-समय इसकी सफाई होती है और न अन्य तरह से कोई जतन किया जाता है।
गंदगी की वजह से मौत
एक्सपर्ट का कहना है कि गर्मी के मौसम में तालाब का गंदा जल तेजी से सड़ने लगता है। इस अपघटन प्रक्रिया से जल निकाय में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। इसके अलावा, तापमान में वृद्धि से जल में घुलित ऑक्सीजन के स्तर में कमी आती है। जब गंदगी या अन्य कारणों से पानी में वियोजित ऑक्सीजन कम हो जाती है तो मछलियाँ मरने लगती हैं।
करोड़ों खर्च के बाद नहीं हुआ फायदा
इस तालाब को स्मार्ट सिटी के प्लान के तहत विकसित किया गया। इसमें वाॅकिंग जोन बनाया गया, कैफेटेरिया, जिम जैसी कई सुविधाएँ दी गईं पर इसको मेंटेनेंस करने या यह बेहतर हालात में बना रहे इसको लेकर सालों से अनदेखी हो रही है। गढ़ा ओवर ब्रिज में ऊपर घूमने वाले पाॅलीथिन या कचरा तालाब में फेंक जाते हैं, इसी तरह इसमें निर्माल्य को लाकर डाला जाता है। आवारा कुत्ते गंदगी फैलाते हैं, सफाई कर्मी आसपास के पेड़ों की छँटनी कर, कुछ पेड़ों के पत्ते बटोरकर अपना काम खत्म कर लेते हैं। तालाब में जो गंदगी या कचरा है उसको साफ करने की बेहतर कोशिश किसी तरह से होती ही नहीं है।