जबलपुर: चीफ सेक्रेटरी खुद वर्चुअली हाजिर होकर दें स्पष्टीकरण

  • छह साल बाद भी आदेश का नहीं हुआ पालन
  • हाईकोर्ट ने कर्मचारियों के वेतनमान से जुड़े मामले पर जताई नाराजगी
  • पूर्व में चीफ जस्टिस ने हाईकोर्ट कर्मचारियों के लिए उच्च वेतनमान की सिफारिश की थी।

Bhaskar Hindi
Update: 2024-07-04 12:46 GMT

डिजिटल डेस्क,जबलपुर। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के कर्मचारियों के उच्च वेतनमान से जुड़े मामले में पिछले 6 साल बाद भी आदेश का पालन नहीं होने पर हाईकोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई। एक्टिंग चीफ जस्टिस शील नागू व जस्टिस अमरनाथ केसरवानी की खंडपीठ ने प्रदेश की मुख्य सचिव वीरा राणा को इस मामले में सरकार का मंतव्य स्पष्ट करने के निर्देश दिए।

कोर्ट ने चीफ सेक्रेटरी को गुरुवार को दोपहर ढाई बजे वर्चुअली हाजिर होकर जवाब देने के निर्देश दिए। कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि दो साल पहले अंतिम रिपोर्ट पेश होने के बाद भी सरकार नींद से नहीं जागी।

मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के कर्मचारियों के उच्च वेतनमान से जुड़े मामले के लिए बनी विशेष कमेटी की रिपोर्ट 21 मई 2022 को सरकार ने सीलबंद लिफाफे में पेश की थी। इसके पहले कोर्ट के आदेशों के परिपालन का रास्ता निकालने एक कमेटी का गठन किया था।

कमेटी में हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल, विधि एवं विधायी कार्य विभाग के प्रमुख सचिव, वित्त विभाग के प्रमुख सचिव और एडिशनल चीफ सेक्रेटरी शामिल थे।

कोर्ट ने हाजिर करवाया -

बुधवार को मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि पूर्व आदेश और अवमानना के बावजूद सरकार ने मामले में कोई निर्णय नहीं लिया। कोर्ट ने एडिशनल एडवोकेट जनरल को कहा कि दोपहर ढाई बजे मुख्य सचिव को वर्चुअली हाजिर कराइए और उनसे पूछा जाए कि क्यों न उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाए।

चीफ सेक्रेटरी वीरा राणा वर्चुअली हाजिर हुईं। पूर्व में चीफ जस्टिस ने हाईकोर्ट कर्मचारियों के लिए उच्च वेतनमान की सिफारिश की थी।

सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता ने कंप्लायंस रिपोर्ट पेश कर बताया कि यदि उक्त अनुशंसा को मान लिया जाएगा तो सचिवालय एवं अन्य विभागों में कार्यरत कर्मियों से भेदभाव होगा और वे भी उच्च वेतनमान की माँग करेंगे, इसलिए कैबिनेट ने अनुशंसा को अस्वीकर कर दिया है।

वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ ने कोर्ट काे बताया कि सरकार ने पहले भी यही ग्राउंड लिया था, जिसे अस्वीकार किया जा चुका है। तत्कालीन जस्टिस जेके माहेश्वरी ने इसी मामले में 5 सितंबर 2019 को सरकार की इस दलील को नकारते हुए चीफ जस्टिस की अनुशंसा पर विचार करने के आदेश दिए थे।

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