सर्विस रिकॉर्ड में दर्ज करें यह कृत्य: पूर्व आदेश की अनदेखी कर नया ऑर्डर देना कोर्ट की अवज्ञा है
- हाईकोर्ट ने तल्ख टिप्पणी के साथ डीएमई पर लगाई 25 हजार की कॉस्ट
- इसके अलावा पूर्व में जारी कोर्ट के आदेश से भी सभी परिचित हैं
- कोर्ट ने कहा कि यह राशि डीएमई को अपनी जेब से देनी होगी।
डिजिटल डेस्क,जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक मामले में तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि अदालत के पूर्व आदेश की जानकारी होने के बावजूद डायरेक्टर मेडिकल एजुकेशन ने एसोसिएट प्रोफेसर का दोबारा स्थानांतरण किया। ये कृत्य कोर्ट की अवज्ञा की श्रेणी में आता है।
डीएमई ने न केवल मुकदमेबाजी के पहले दौर में पारित आदेश की अवज्ञा की वरन अदालती आदेशों का भी अनादर किया है। इस मत के साथ जस्टिस विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने डीएमई पर 25 हजार रुपए की कॉस्ट लगाई।
कोर्ट ने कहा कि यह राशि डीएमई को अपनी जेब से देनी होगी। कोर्ट ने डीएमई को सात दिन के भीतर जुर्माने की यह राशि याचिकाकर्ता को भुगतान करने के निर्देश दिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि डीएमई के इस आचरण को उनके सर्विस रिकॉर्ड में भी दर्ज किया जाए।
जबलपुर निवासी डॉ. मयूरा सेतिया की ओर से अधिवक्ता संजय वर्मा एवं श्रद्धा तिवारी ने पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति 2017 में सुभाषचंद्र मेडिकल कॉलेज जबलपुर में डिमॉन्स्ट्रेटर के पद पर हुई थी। मई 2018 में उनकी पदोन्नति असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर हुई। नवंबर 2022 में उन्हें एसोसिएट प्रोफेसर बनाया गया।
अधिवक्ता वर्मा ने बताया कि सेवा नियम के क्लाॅज-12 में स्पष्ट प्रावधान है कि याचिकाकर्ता की सेवाएँ स्थानांतरणीय नहीं हैं, इसके बावजूद उनका तबादला शासकीय मेडिकल कॉलेज सिवनी कर दिया गया।
उन्होंने दलील दी कि पूर्व में भी याचिकाकर्ता को अन्यत्र स्थानांतरित किया गया था और हाईकोर्ट ने उस स्थानांतरण आदेश को निरस्त कर दिया था। कोर्ट को बताया गया कि डीएमई सहित सभी अधिकारी इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि याचिकाकर्ता की सेवाएँ स्थानांतरित नहीं की जा सकतीं।
इसके अलावा पूर्व में जारी कोर्ट के आदेश से भी सभी परिचित हैं, इसके बावजूद तबादला किया गया जो कि अवमानना की श्रेणी में आता है। सुनवाई के बाद कोर्ट ने स्थानांतरिण आदेश निरस्त करते हुए उक्त आदेश पारित किए।