जबलपुर: हर दिन 7 ई-रिक्शा उतर रहे सड़कों पर, इनके आगे सब बेबस
- तीन महीने में 600 बढ़े, शहर में इनकी संख्या पहुँच गई 7 हजार पर
- लोगों का कहना- जल्दी ही इनमें लगाम नहीं लगाया तो यातायात का दम घोंट देंगे
- औसत रूप से हर दिन 7 ई-रिक्शा सड़कों पर उतारे जा रहे हैं।
डिजिटल डेस्क,जबलपुर। कुछ लोगों के लिए ई-रिक्शा पेट पालने का जरिया है इससे कोई इनकार नहीं कर सकता है लेकिन अब शहर में अच्छा खासा दूसरा व्यवसाय करने वाले लोगों ने ई-रिक्शा खरीदकर इसको ठेके पर चलाना शुरू कर दिया है।
हालात ऐसे तक हैं कि लोगों ने 8 से 10 और 20 की संख्या में ई-रिक्शा फाइनेंस कराकर इनको किराये पर देना शुरू कर दिया। 300 से 400 रुपए में ई-रिक्शा किराये पर दो और साथ में दूसरी इनकम भी चालू कर लो। केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय ने शहरों में ई-रिक्शा को चलाने का बढ़ावा इसलिए दिया कि इससे मानव रिक्शा खत्म हो और पर्यावरण का संरक्षण किया जाए पर सरकार की छूट का नतीजा अब शहरवासियों के लिए घातक साबित हो रहा है।
इनके आगे आरटीओ, ट्रैफिक पुलिस सब बेबस हैं। हालात ऐसे हैं कि ई-रिक्शा शहर में सड़कें जाम करते हुये यातायात का दम घोंटने उतारू हैं। बीते तीन महीने में जबलपुर आरटीओ में इनका पंजीकरण 600 तक बढ़ा। औसत रूप से हर दिन 7 ई-रिक्शा सड़कों पर उतारे जा रहे हैं। अब इनकी कुल संख्या 7 हजार के करीब पहुँच चुकी है।
गलियाँ भी जाम हो रहीं
राँझी, अधारताल, गढ़ा, दीक्षितपुरा, मिलौनीगंज, गोरखपुर आदि अनेक पुराने क्षेत्र में यह स्थिति यह है कि गलियों में ये ई-रिक्शा घरों के सामने रखे जाते हैं और अब गलियों में इनकी वजह से निकलना मुश्किल होता है।
जब ये रिक्शा सड़कों पर होते हैं तो शहर की गति धीमी हो जाती है और जब ये नहीं चलते तो गलियों में चार्जिंग के दौरान गली जाम किये हुये रहते हैं। आरोप तो यह तक लगाये जा रहे हैं कि कई इलाकों में चोरी की बिजली से ई-रिक्शा चार्ज किये जा रहे हैं।
कई शहरों ने संख्या सीमित की
इनकी बढ़ती संख्या और यातायात को नियंत्रित करने के लिए कई शहरों में इनका नया पंजीकरण रोकने की सिफारिश की गई है। परिवहन विभाग इसको लेकर सरकार के निर्णय का इंतजार कर रहा है।
सड़क सुरक्षा समितियों ने यहाँ तक कहा है कि यदि इनकी बढ़ती संख्या पर लगाम न लगाई गई तो दूसरे वाहनों का चलना संभव न हो सकेगा। वैसे शहर में इनकी वजह से चौराहों से लेकर छोटी-छोटी सड़कों और चौड़ी सड़कों तक पर ट्रैफिक का कबाड़ा होने लगा है।