मप्र चावल उद्योग संघ ने भोपाल को लिखा पत्र: 437 करोड़ की 20 लाख क्विंटल धान पर अब लग गया घटिया होने का टैग

  • एफसीआई में जमा करने का रेशो 27 से 20 किया जाए
  • मार्कफेड की खरीदी पर लगा सवालिया निशान
  • कहा- जबलपुर की धान निम्न गुणवत्ता की

Bhaskar Hindi
Update: 2024-07-31 13:35 GMT

डिजिटल डेस्क,जबलपुर। जबलपुर जिले की धान को घटिया कहा जा रहा है और यही कारण है कि मिलर्स ने हाथ खड़े करते हुए मिलिंग से भी इनकार कर दिया है। उनका साफ कहना है कि जबलपुर जिले की धान निम्न गुणवत्ता की है, जिसकी वजह से भारतीय खाद्य निगम में चावल जमा करने का अनुपात कम किया जाए।

अब सवाल उठता है कि जिले की धान यदि घटिया है तो उसकी खरीदी ही क्यों की गई और खरीदी हुई तो फिर खरीदी एजेंसी मार्कफेड के अधिकारियों पर क्या कार्रवाई की जा रही है। यह काेई साधारण मामला नहीं है क्योंकि अभी भी जिले की करीब 20 लाख क्विंटल धान की मिलिंग बाकी है जिसकी कीमत करीब 437 करोड़ रुपए होती है।

मामला दरअसल यह है कि पूर्व तक नियम के अनुसार जो भी धान उपजती थी उसमें से मिलिंग के बाद 80 किलो चावल नागरिक आपूर्ति निगम के पास जाता था और 20 किलो भारतीय खाद्य निगम यानी एफसीआई के पास। बाद में इसमें संशोधन हुआ और 27 फीसदी चावल एफसीआई के पास जाने लगा और बचा हुआ 73 प्रतिशत हिस्सा नागरिक आपूर्ति निगम के पास जाकर राशन दुकानों के जरिए लोगों के घरों तक पहुँचने लगा।

अब मिलर्स की माँग है कि एफसीआई के पास जाने वाले चावल की जाे मात्रा 20 से 27 की गई है उसे कम किया जाए, क्याेंकि एफसीआई के मानकों के अनुरूप धान जबलपुर में मिल ही नहीं रही है। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि मिलर्स यह कह रहे हैं कि हम जिस धान को चावल में बदल रहे हैं उसकी गुणवत्ता ऐसी नहीं है जैसी एफसीआई को चाहिए, लेकिन चावल देना तो है ही, इसलिए मात्रा कम की जाए ताकि यदि एफसीआई उसे रिजेक्ट भी करती है तो ज्यादा का नुकसान न हो।

धान का गणित| जबलपुर जिले में धान के लिए वर्ष 2023-24 में कुल 54073 किसानों ने पंजीयन कराया था और कुल 54718 मीट्रिक टन धान की खरीदी हुई थी। धान का समर्थन मूल्य 2184 रुपए प्रति क्विंटल था। इस हिसाब से कुल धान का मूल्य 1194.49 करोड़ रुपए हुआ था। अब यदि 20 लाख क्विंटल धान की मिलिंग नहीं हो पा रही है तो उस धान की कीमत करीब 437 करोड़ रुपए होती है।

तो दोषी कौन

अब सवाल उठता है कि यदि धान खराब है तो उसका दोषी कौन है। धान की खरीदी मार्कफेड यानी मप्र राज्य सहकारी विपणन संघ द्वारा की जाती है। कलेक्टर दीपक सक्सेना जब यहाँ आए तब तक खरीदी हो चुकी थी। ऐसे में ज्यादा कुछ किया नहीं जा सकता था, लेकिन इसके बाद भी उन्होंने कई वेयर हाउसों की जाँच कराई थी और कई पर कार्रवाई भी की।

वायरल हुए वीडियो की हकीकत जानने पहुँची टीम

विगत दिनों एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें यह कहा गया था कि सहजपुर के एक वेयर हाउस में रात के वक्त खरीदी हो रही थी और वहाँ खुलेआम मूँग में मिलावट की जा रही थी।

इस मामले पर संज्ञान लेते हुए पाटन की अनुविभागीय कृषि अधिकारी डॉ. इंदिरा त्रिपाठी और उनकी टीम ने निरीक्षण किया। यहाँ एक किसान की मूँग जिसे खरीदा नहीं गया था में कुछ गड़बड़ी नजर आई। उसे तत्काल ही अपग्रेड करने के बाद खरीदी के निर्देश दिए गए।

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