कमलनाथ के गढ़ को भेदने की तैयारी में भाजपा, जानिए क्या हैं छिंदवाड़ा का चुनावी समीकरण
- विधानसभा चुनाव 2023
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव जैसे जैसे नजदीक आ रहे है, वैसे वैसे राजनैतिक दलों की सक्रियता बढ़ती जा रही है। भाजपा फिर से शिवराज के भरोसे चुनावी मैदान में उतरने के मूड़ में है। वहीं कांग्रेस ने कमलनाथ के हाथों में कमान सौंपी है। बीजेपी कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा को भेदने की तैयारी में बड़े जोर शोर से जुट गई है। इसके लिए बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह ने छिंदवाड़ा का भी दौरा किया। कमलनाथ के कारण छिंदवाड़ा कांग्रेस का इकलौते ऐसा एक किला बचा है, जिसे बीजेपी भेद नहीं पाई है।
विधानसभा चुनावों की मिली बांगडोर से छिंदवाड़ा के साथ साथ पूरे प्रदेश का दारोमदार कमलनाथ के ऊपर है। पिछले 6 साल से कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ का फोकस मध्यप्रदेश पर है। कमलनाथ के नेतृत्व में 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई थी, और कमलनाथ मुख्यमंत्री बने लेकिन 15 महीने के भीतर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी का दामन थाम लिया था, जिससे कमलनाथ की सरकार बहुमत खो बैठी। कमलनाथ सीएम कुर्सी से हट गए लेकिन फिर भी उन्होंने मध्यप्रदेश को नहीं छोड़ा । और तब से कमलनाथ मध्यप्रदेश में और अधिक रूप से सक्रिय हुए। कमलनाथ कांग्रेस कार्यकर्ताओं की हौसलाअफजाई कर रहे है।
छिंदवाड़ा की राजनीति और कमलनाथ का अभेद किला
छिंदवाड़ा में कमलनाथ अधिकतर लोकसभा चुनाव में ही फोकस करते थे। लेकिन प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बनने के बाद 2018 से उन्होंने विधानसभा में फोकस किया और 2018 के चुनावों में सातों विधानसभा से कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। 2018 में भी छिंदवाड़ा में कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के नाम पर वोट डाले गए थे और 2023 में भी एक बार फिर कमलनाथ को मुख्यमंत्री के लिए कांग्रेस की तरफ से प्रचारित किया जा रहा है। आपको बता दें आदिवासी बाहुल्य छिंदवाड़ा की सियासी जमीन पर कांग्रेस की जड़ें बहुत मजबूत और गहरी है। राजनैतिक पार्टियां लोकलुभावन वादे करके एसटी समुदाय को साधने की कोशिश कर रही है। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने छिंदवाड़ा जिले की सभी सातों सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं 2019 के आम चुनाव में यहां मोदी लहर ज्यादा कमाल नहीं दिखा पाई थी, और कांग्रेस ने आखिरकार जीत दर्ज की थी।
आपको बता दें कमलनाथ छिंदवाड़ा से 9 बार से लोकसभा सांसद रह चुके हैं, पिछले 43 सालों से वे छिंदवाड़ा की राजनीति कर रहे हैं। छिंदवाड़ा में उनका राजनीतिक प्रभाव बहुत अधिक है। 2018 में सीएम बनने के बाद कमलनाथ ने छिंदवाड़ा से 2019 में विधानसभा का चुनाव लड़ा था, और विजयी हुए थे। वहीं 2019 में मध्यप्रदेश लोकसभा की इकलौती एक सीट छिंदवाड़ा को छोड़कर बीजेपी ने सभी 28 सीटों पर विजय हासिल की थी। 2019 में कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ ने छिंदवाड़ा से लोकसभा का चुनाव जीता था। आपको बता दें 1977 में जब उत्तर भारत से कांग्रेस का सफाया हुआ था, उस समय में भी कांग्रेस ने जीत का परचम लहराया था।
कमलनाथ की घेराबंदी में बीजेपी के कई दिग्गज
भाजपा ने छिंदवाड़ा में कमलनाथ को घेरने के लिए दिग्गजों कि टीम लगा रखी है। छिंदवाड़ा में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और डॉक्टर एल मुरुगन को जिम्मेदारी सौंपी है. साथ ही राज्यसभा सांसद कविता पाटीदार लगतार छिंदवाड़ा में दौरा कर रही हैं। 25 मार्च को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने छिंदवाड़ा से ही महा विजय अभियान की शुरुआत की, वहीं रीवा से पीएम मोदी ने कमलनाथ पर हमला बोलते हुए छिंदवाड़ा विकास मॉडल पर निशाना साधा।
छिंदवाड़ा का वोट बैंक
छिंदवाड़ा की आबादी 21 लाख से अधिक है। जिनमें से करीब 75 फीसदी आबादी गांवों में निवास करती है। कमलनाथ के चलते छिंदवाड़ा में कई कंपनिया हैं, जिनमें गांव में रहने वाले हजारों आदिवासी मजदूरी का काम करते है। जिनकी वजह से कांग्रेस यहा मजबूत स्थिति में है। वहीं संघ और भाजपा भी आदिवासियों के जरिए छिंदवाड़ा में मजबूत पकड़ बनाने की कोशिश में लगे हुए है। अब देखना ये होगा कि आगामी विधानसभा चुनाव में कौन सी पार्टी अपनी जीत का परचम फहराएंगी। वैसे अबकी बार भी छिंदवाड़ा में विकास मॉडल और सीएम चेहरा दोनों ही मुद्दे चुनावों में काफी अहम होंगे।
छिंदवाड़ा में सात सीट जुन्नारदेव, अमरवाड़ा, चौरई, सौंसर, छिंदवाड़ा, परासिया और पांढुर्ना है। सातों सीट कांग्रेस के पास है। सात में से चार सीट आरक्षित है। जुन्नारदेव, अमरवाड़ा, पांढुर्ना एसटी के लिए तो परासिया अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।
छिंदवाड़ा विधानसभा सीट
छिंदवाड़ा सामान्य विधानसभा सीट पर बारी बारी से बीजेपी और कांग्रेस जीतती आ रही है। छिंदवाड़ा सीट पर एसटी और एससी वोटर्स निर्णायक भूमिका में रहते है। यहां जीजीपी और बीएसपी चुनावी मैदान में शोर तो मचाते है लेकिन चुनावी नतीजों पर इसका असर नहीं पड़ता।
चौरई विधानसभा सीट
छिंदवाड़ा सीट की तरह ही चौरई विधानसभा सीट पर हार जीत के समीकरण चुनावी मौसम के अनुसार बदले रहते है। इस पर कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी की जीत होती आई है। इस सीट पर कौन विजय होगा ये कहना मुश्किल है।
सौंसर विधानसभा सीट
सौंसर विधानसभा सीट पर 2018 में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी, उससे पहले 2013, 2008 में यहां बीजेपी की कब्जा था। इस सीट पर बीएसपी तीसरे नंबर पर आती है।
पांढुर्ना विधानसभा सीट
एसटी के लिए आरक्षित पांढुर्ना विधानसभा सीट से 2018 और 2013 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। उससे पहले 2003 और 2008 में इस सीट पर बीजेपी ने क्रांगेस को हराया था। यहां गोंडवाना गणतंत्र पार्टी किसी भी पार्टी का खेल बिगाड़ सकती है।
जुन्नारदेव विधानसभा सीट
जुन्नारदेव विधानसभा सीट पर कांग्रेस बीजेपी की टक्कर में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी त्रिकोणीय मुकाबला बना देती है। 2008 और 2018 में यहां से कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, जबकि 2013 में बीजेपी ने जीत हासिल की थी।
अमरवाड़ा विधानसभा सीट
अमरवाड़ा में बीजेपी कांग्रेस के साथ साथ गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का भी काफी दबदबा है। 2018 और 2013 में ये सीट कांग्रेस के कब्जे में रही, जबकि 2008 में बीजेपी और 2003 में गोंडवाना ने जीत हासिल की थी। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का इस सीट पर अन्य सीटों की अपेक्षा अधिक दबदबा है।
परासिया विधानसभा सीट
2013 और 2018 से पहले परासिया विधानसभा सीट पर दो दशक से अधिक समय तक बीजेपी का कब्जा रहा है। 2013 और 2018 में यहां कांग्रेस ने जीत हासिल की थी।
Created On :   17 Jun 2023 3:33 PM IST