एनडीए सरकार: इंडिया ब्लॉक को विपक्ष का नेता चुनने में कितनी देरी, 10 साल से आधिकारिक रुप से खाली था पद
- दस साल से खाली था विपक्ष का नेता पद
- 10 फीसदी जीतकर लाना पड़ती है सीट
- 2014 में 44 और 2019 में 52 सीट कांग्रेस को मिली थी
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के नतीजे आए करीब एक सप्ताह होने जा रहा है लेकिन अभी तक विपक्षी दलों के गठबंधित समूह ने विपक्षी दल का नेता नहीं चुना है। हालांकि कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में राहुल गाँधी के नाम पर रायशुमारी हुई है। जिस पर खुद राहुल के फैसले का इंतजार है। ऐसे में ये सस्पेंस अभी भी बरकरार है कि विपक्षी दल का नेता कौन होगा। सियासी गलियारों में ये सवाल अब जोर पकड़ने लगा है।
आपको बता दें हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम 4 जून को आए। नतीजों में बीजेपी बहुमत से दूर है लेकिन उसके नेतृ्त्व वाले गठबंधन एनडीए को पर्याप्त बहुमत मिला है। एनडीए ने अपने दल के नेता का चयन कर सरकार बना ली और एक बार फिर नरेंद्र मोदी की लीड़रशिप में एनडीए की सरकार बनी है। ये एनडीए सरकार की हैट्रिक है। बीते कल रविवार को राष्ट्रपति भवन के परिसर में भव्य शपथ ग्रहण समारोह में मोदी ने तीसरी बार पीएम पद की शपथ ली। उनके साथ उनके मंत्रिमंडल में शामिल 71 मंत्रियों ने भी शपथ ली। हालांकि इस शपथ ग्रहण समारोह में कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के अलावा और कोई विपक्ष का नेता शामिल नहीं हुआ।
इसके बाद विपक्ष के नेता को लेकर और तेजी से सवाल यह उठ रहे है कि विपक्ष का नेता कौन चुना जाएगा? हालाकि इंडिया ने राहुल गांधी के सामने विपक्ष का प्रतिनिधि बनने का प्रस्ताव पेश किया है। चलिए जानते हैं नेता प्रतिपक्ष से जुड़ी कुछ बातें जो आपके लिए जानना जरूरी है। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल 20 मई 2014 से 29 मई 2019 तक और उसके बाद मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल 30 मई 2019 से 9 जून 2024 तक आधिकारिक रूप में ये पद खाली रहा।
नेता प्रतिपक्ष कौन होता है?
नेता प्रतिपक्ष को विपक्ष का नेता और लीडर ऑफ अपोजिशन के नाम से भी जाना जाता है। नेता प्रतिपक्ष विरोधी दल का चेहरा होता है। चुनाव में दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा सीट और वोट हासिल करने वाली पार्टी अपना नेता चुनती है। उसी चुने गए नेता को लीडर ऑफ अपोजीशन कहा जाता है। लीडर ऑफ अपोजीशन पूरे विपक्ष का प्रतिनिधि कहलाता है।
विपक्ष नेता बनने के लिए कितनी सीट चाहिए?
विपक्ष अपना लीडर खुद चुनता है, जिसे नेता प्रतिपक्ष या विपक्ष का नेता कहा जाता है। नेता प्रतिपक्ष वहीं दल चुन सकता है जिसके पास कम से कम सदन की कुल सीटों का दस फीसदी सीट हों। अगर कोई दल कुल सीटों की 10 फीसदी सीट जीत पाने में नाकामयाब होता है तब ऐसे में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली रह जाता है। हालांकि कभी कभी ऐसे मौके भी है जब किसी विपक्षी दल ने 10 फीसदी सीटें नहीं जीती। ऐसे में सदन में सबसे ज्यादा सीटें पाने वाली पार्टी के नेता को ही विपक्ष के नेता का पद मिलता है। एक अन्य स्थिति ये भी बनती है कि जब सदन में दो दलों को एक समान सीट मिली हो तब अध्यक्ष तय करता है कि नेता प्रतिपक्ष का पद किसे दिया जाए।
लीडर ऑफ अपोजिशन की जरुरत?
सदन में लीडर ऑफ अपोजीशन यानी विरोधी प्रतिनिधि होना लोकतंत्र के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह सरकार की नीतियों पर विचार विमर्श करता है। विरोध भी करता है। एक लोकतंत्र के लिए विपक्ष का नेता होना बहुत जरूरी है। विपक्ष का नेता सीबीआई, ईडी, केंद्रीय सूचना आयोग, एनएटआरसी, केंद्रीय सतर्कता आयोग, के साथ- साथ चुनाव आयोग के निदेशोकों को चुनने में गंभीर भूमिका निभाता है। यह संसद की समितियों का हिस्सा बनता है।
विपक्ष का नेता न केवल प्रधानमंत्री के साथ सदन में उपस्थित होता है बैठता बल्कि सरकार की योजनों पर सवाल भी खड़े करने के साथ आलोचना कर राय भी दे सकता है। विपक्षी नेता केंद्रीय मेज पर पीएम के सामने बैठता है। लीडर ऑफ अपोजिशन विपक्ष दल के विचार सामने रखता है और जनता के हित से जुड़े मुद्दे उठाता है। नेता प्रतिपक्ष का पद लोकतंत्र के लिए काफी अहम होता है। नेता प्रतिपक्ष को संसद में आधिकारिक मान्यता प्राप्त होती है।
Created On :   10 Jun 2024 8:19 PM IST