अमेठी लोकसभा सीट 2024: स्मृति को कौन देगा चुनौती, क्या राहुल गांधी की होगी वापसी, जानिए क्या है अमेठी का चुनावी इतिहास
- गांधी-नेहरू परिवार का गढ़ रही है अमेठी सीट
- स्मृति ईरानी ने लगाई सेंध
- 2024 में होगा महामुकाबला
डिजिटल डेस्क,नई दिल्ली। उत्तरप्रदेश की अमेठी लोकसभा सीट एक समय में गांधी-नेहरू परिवार का गढ़ हुआ करती थी। बता दें कि साल 1967 में स्थापित अमेठी लोकसभा सीट पर अब तक हुए चुनावों में से तीन चुनावों को छोड़ दें तो लगातार कांग्रेस ने ही बाजी मारी है। वर्तमान में भाजपा की स्मृति ईरानी यहां से सांसद हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में बस अब कुछ ही महीने बाकी हैं। ऐसे में विपक्ष और कांग्रेस की ओर से कौन मैदान में उतरेगा? यह बड़ा सवाल है। कांग्रेस की ओर से क्या राहुल गांधी फिर से इस सीट से चुनाव ताल ठोंकेगे या फिर उनकी बहन प्रियंका गांधी अपने गढ़ से दांव खेलेगी? लोकसभा सीटों के सियासी हालचाल की श्रंखला में आज हम आपको अमेठी के चुनावी इतिहास और वहां के चुनावी समीकरण के बारे में बताएंगे।
आपको बता दें कि साल 1977 के आम चुनाव में कांग्रेस ने पहली बार गांधी परिवार के किसी नेता को अमेठी से उतारा था। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने यहां से चुनाव लड़ा था। हालांकि वह चुनाव हार गए थे। उन्हें भारतीय लोकदल के प्रत्याशी रवींद्र प्रताप सिंह ने हराया था। लेकिन इसके बाद से तो अमेठी सीट गांधी परिवार के वारिसों का 'लॉंचिंग पैड' बन गई। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने यहां से चार बार चुनाव लड़ा और जीता। जबकि कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष और राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी यहां से एक बार की सांसद रह चुकी हैं। इसके अलावा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी अमेठी से तीन बार के सांसद बन चुके हैं। पर साल 2014 के लोकसभा चुनाव में जब से मोदी लहर शुरू हुई है तब से कांग्रेस की पकड़ यहां बहुत कमजोर होती गई है। नतीजतन साल 2019 के आम चुनाव में राहुल गांधी को भाजपा की स्मृति ईरानी से हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद के बाद से भाजपा की पकड़ अमेठी में काफी मजबूत हो गई है।
1967 में गठित हुई अमेठी सीट
आजादी के कई वर्षों बाद साल 1967 में अमेठी लोकसभा सीट का गठन हुआ था। इससे पहले अमेठी सुल्तानपुर दक्षिण सीट का हिस्सा था। साल 1951 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में सुल्तानपुर दक्षिण सीट से कांग्रेस के वीवी केशकर ने चुनाव जीता था। फिर साल 1957 में भी उन्होंने इस क्षेत्र से अपनी सांसदी बरकरार रखी। साल 1962 के आम चुनाव में इस सीट का नाम बदलकर मुसाफिरखाना रख दिया गया। सीट का बदलने के साथ ही इस बार कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी भी बदला। इस बार यहां से कांग्रेस के लिए रणजय सिंह ने चुनाव जीता। फिर साल 1967 में इस सीट का नाम बदलकर अमेठी रख दिया गया। साल 1967 के आम चुनाव में कांग्रेस के विद्याधर वाजपेई यहां से पहले सांसद को तौर पर चुने गए। विद्याधर ने अपना प्रदर्शन बरकरार रखते हुए 1971 का अगला आम चुनाव भी जीता।
1977 में हुई गांधी परिवार की एंट्री
आपातकाल के बाद लोकसभा चुनाव हुए और कांग्रेस विरोधी लहर के चलते देश में पहली बार गैर कांग्रेस सरकार सत्ता में आई। साल 1977 के आम चुनाव में अमेठी सीट से गांधी नेहरू परिवार के सदस्य संजय गांधी ने डेब्यू किया। लेकिन आपातकाल के दुष्प्रचार और नसबंदी लहर के कारण संजय गांधी चुनाव हार गए। उन्हें भारतीय लोकदल के नेता रवींद्र प्रताप सिंह ने 75,844 वोटों से हरा दिया था। संजय ने चुनाव हारने के बाद भी अमेठी नहीं छोड़ा। तीन साल बाद ही 1980 में हुए अगले आम चुनाव में संजय गांधी वोटों के बड़े अंतर से चुनाव जीते। संजय गांधी की विमान दुर्घटना में असमय मृत्यु होने के बाद उनके भाई राजीव गांधी को अमेठी से उतारा जाता है। साल 1981 के उप-चुनाव में राजीव गांधी ने लोक दल के प्रत्याशी को 2 लाख 37 हजार 696 के वोट के अंतर से हराया।
अमेठी में कुल कितनी विधानसभा सीटें?
अमेठी में कुल 5 विधानसभा सीटें हैं। इनमें अमेठी, जगदीशपुर, तिलोई, सलोन, गौरीगंज शामिल हैं।
अमेठी विधानसभा सीटों की वर्तमान स्थिति:
जगदीशपुर विधानसभा सीट से बीजेपी के सुरेश पासी
तिलोई विधानसभा सीट से बीजेपी के मंयकेश्वर शरण सिंह
सलोन विधानसभा सीट से बीजेपी के अशोक कोरी
गौरीगंज विधानसभा सीट से सपा के राकेश प्रताप सिंह
अमेठी विधानसभा सीट से सपा की महाराजी प्रजापति
इतनी बार हुआ गांधी और गांधी का आमना-सामना
एक वक्त ऐसा भी आया था जब गांधी परिवार के ही दो नेताओं का आमना-सामना हुआ था। साल 1984 के आम चुनाव में राजीव गांधी के सामने संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी ने चुनाव लड़ा था। हालांकि, अमेठी के लोगों ने राजीव गांधी पर भरोसा जताया। राजीव ने उस चुनाव में 3 लाख 14 हजार 878 वोटों के बड़े अंतर से जीत दर्ज की। फिर 1989 के अगले आम चुनाव में एक बार फिर गांधी बनाम गांधी का युद्ध देखने को मिला। इस बार राजीव गांधी को चुनौती देने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पौत्र राज मोहन गांधी अमेठी से मैदान में उतरे। लेकिन इस बार भी जनता ने राजीव गांधी को ही जीत का सहरा पहनाया। 1989 के चुनाव में अमेठी से राजीव को 2 लाख 2 हजार 138 वोटों के भारी मार्जिन से जीत मिली। इस चुनाव में बसपा से काशीराम भी चुनाव लड़ने अमेठी पहुंचे थे। हालांकि,वह अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए थे।
राजीव गांधी ने अमेठी से कुल चार बार सांसदी का चुनाव जीता। साल 1991 का चुनाव जीतने के बाद उनकी हत्या हो गई थी। जिसके बाद उप-चुनाव हुए और राजीव के साथी कैप्टन सतीश शर्मा ने जीत हासिल की। कैप्टन सतीश शर्मा 1996 के अगले लोकसभा चुनाव में अमेठी से दोबारा जीत गए। लेकिन साल 1998 में उन्हें भाजपा के प्रत्याशी संजय सिंह के हाथों हार का सामना करना पड़ा। यह दूसरी बार था जब कांग्रेस को अमेठी से हार झेलनी पड़ी थी।
1999 में हुई गांधी परिवार की वापसी
संजय गांधी और राजीव गांधी के बाद गांधी परिवार से एक और सदस्य की एंट्री अमेठी में हुई। साल 1999 के लोकसभा चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी को अमेठी से उतारा गया। उनके सामने भाजपा के संजय सिंह थे। सोनिया गांधी को इस चुनाव में 3 लाख से भी अधिक वोटों से एकतरफा जीत मिली जिसने अमेठी में कांग्रेस की भी वापसी कराई। हालांकि, अगले चुनाव में वह अमेठी की सीट छोड़कर रायबरेली चली गईं।
राहुल ने भी तीन बार मारी बाजी
अमेठी में गांधी-नेहरू परिवार के नेताओं को लॉन्च करने का सिलसिला यहीं नहीं थमा। संजय गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी के बाद इस फेयरिस्ट में राहुल गांधी का नाम भी शामिल हो गया। सोनिया गांधी के बेटे राहुल गांधी ने साल 2004 के लोकसभा चुनाव में अमेठी से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। इस चुनाव में उन्होंने कुल 3 लाख 90 हजार 179 वोटों से जीत दर्ज की। जबकि अमेठी में राहुल के मुख्य प्रतिस्पर्धी रहे बसपा नेता चंद्र प्रकाश मिश्रा को मात्र 99 हजार 326 वोट ही मिले। अगले आम चुनाव में भी राहुल गांधी का दबदबा अमेठी सीट से कायम रहा। साल 2009 के आम चुनाव में राहुल गांधी ने पिछले चुनाव से भी अधिक वोटों से बहुमत हासिल किया। उन्हें कुल 4 लाख 64 हजार 195 वोट मिले जिससे उन्होंने अमेठी में एकतरफा जीत दर्ज की। बसपा से उनके प्रतिद्वंदी नेता आशीष शुक्ला को मात्र 93,997 वोट ही मिल पाए थे। फिर साल 2014 का लोकसभा चुनाव आया। इस चुनाव में देश भर में कांग्रेस और यूपीए की सत्ता के खिलाफ एंटीइनकमबैंसी का महौल बन चुका था। पूरे देश में मोदी लहर फैल चुकी थी। इन सब परिस्थितियों के बावजूद राहुल गांधी ने भाजपा की स्मृति ईरानी को 1 लाख 7 हजार 903 वोटों के अंतर से हरा दिया था। हालांकि, इस चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत काफी खराब था। केवल 46.71 फीसदी वोट ही कांग्रेस को मिले थे। मोदी लहर के चलते अमेठी में भाजपा को 34.38 फीसदी वोट मिले थे। कांग्रेस और भाजपा के अलावा इस चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) ने भी चुनाव लड़ा था। आप के नेता कुमार विश्वास को इस चुनाव में मात्र 25,572 वोट ही मिल पाए थे और इसके साथ वह चौथे स्थान पर थे।
2019 में स्मृति की ऐतिहासिक जीत
राहुल गांधी की अमेठी में लगातार जीत के सिलसिले को स्मृति ईरानी ने आखिरकार रोक ही दिया। साल 2014 में केंद्र में भाजपा और एनडीए की सरकार बनी। स्मृति ईरानी अमेठी से चुनाव हार चुकी थीं उसके बावजूद उन्हें पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल में जगह दी। वह अमेठी का चुनाव भले ही हार गई थीं लेकिन उन्होंने इस क्षेत्र में अपनी सक्रियता बनाई रखी। नतीजा यह रहा कि अगले ही लोकसभा चुनाव में स्मृति ने अमेठी से अभी तक की सबसे बड़ी ऐतिहासिक जीत दर्ज की। उन्होंने इस चुनाव में रिकॉर्डतोड़ 4 लाख 67 हजार 598 वोट हासिल किए। इस चुनाव में सपा और बसपा ने कांग्रेस का साथ दिया था। अमेठी सीट से स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को सीधी मुकाबले में 55 हजार 120 वोटों के अंतर से हरा दिया था। इस चुनाव में राहुल गांधी को 4 लाख 13 हजार 394 वोट मिले थे।
ताकतवर होती रही भाजपा, कमजोर पड़ती गई कांग्रेस
जब से स्मृति ईरानी अमेठी में लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बनी हैं तब से लगातार भाजपा को यहां मजबूती मिली है। पिछले दो विधानसभा चुनावों का अध्ययन करने से यह पता चलता है कि भाजपा अमेठी में ताकतवर होती गई है। जहां साल 2012 के हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के पास एक भी सीट नहीं थी वहां साल 2017 के विधानसभा में गौरीगंज विधानसभा सीट छोड़कर अन्य सभी सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी। साल 2017 के चुनाव में कांग्रेस अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने अमेठी लोकसभा की 5 विधानसभा सीटों में से तीन पर जीत हासिल की। जबकि दो सीटें सपा को मिलीं।
सपा की उम्मीदें बढ़ीं
पिछले दो विधानसभ चुनाव पर नजर डालें तो पता चलता है कि एक ओर जहां कांग्रेस अमेठी में कमजोर पड़ती गई तो वहां दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी का वोट बैंक मजबूत हुआ है। साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो 5 में से कुल 2 सीटें सपा ने जीती हैं। जहां गौरीगंज सीट से सपा के राकेश प्रताप सिंह ने चुनाव जीता तो वहीं अमेठी से महाराजी प्रजापति ने भाजपा के संजय सिंह को हराया। इस चुनाव के वोट डिस्ट्रिब्यूबशन को देखें तो भाजपा को 4 लाख 13 हजार 394 वोट मिले। जबकि समाजवादी पार्टी को पांच सीटों में 3 लाख 52 हजार 475 वोट मिले। और कमजोर होती गई कांग्रेस को 1 लाख 42 हजार 949 वोट मिले। जब से समाजवादी पार्टी का गठन हुआ है तब से लेकर अब तक सपा ने लोकसभा चुनाव में केवल दो बार अमेठी से प्रत्याशी उतारा है। सपा ने साल 1996 में शिव प्रसाद कश्यप और 1999 में सोनिया गांधी के खिलाफ कमरूज्जमा फौजी को उम्मीदवार बनाया था। हालांकि, इन दोनों चुनावों में सपा का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था। लेकिन विधानसभा चुनाव के नतीजों से उत्साहित होकर सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने अमेठी में बूथ कमेटी का गठन शुरू किया है। इस कमेटी का लोक प्रभारी सुनील सिंह साजन को बनाया गया है।
अमेठी में बदला राजनीतिक हवा का रूख
बता दें कि स्मृति ईरानी ने जब से अमेठी में सासंद का पदभार संभाला है तब से वह लगातार क्षेत्र में सक्रिय हैं। लगभग हर महीने ही वह अपने संसदीय क्षेत्र के दौरे पर जाती रही हैं। साल 2024 के चुनाव की तैयारी उन्होंने पिछले वर्ष ही शुरु कर दी थी। पिछले साल ही स्मृति ने जन संवाद विकास यात्रा के तहत सेक्टर स्तर पर जाकर चौपाल लगाते हुए जनता से सीधे संवाद करना शुरु किया था। जबकि राहुल गांधी अमेठी से चुनाव हारने के बाद अब तक केवल तीन बार ही यहां आए हैं। आखरी बार राहुल पिछले विधानसभा चुनाव में एक दिन के प्रचार के लिए आए थे। वर्तमान में राहुल गांधी केरल की वायनाड लोकसभा सीट से सांसद हैं।
राहुल- प्रियंका और महामुकाबला
अमेठी में कांग्रेस इस बार राहुल गांधी या प्रियंका गांधी में से किसे उतारती है यह एक बड़ा सवाल है। अगर कांग्रेस इन दोनों के अलावा किसी और चेहरे को अमेठी से उतारती है तो स्मृति ईरानी को चुनाव जीतने में ज्यादा मुश्किल नहीं होगी। स्मृति अपने क्षेत्र में वैसे भी सक्रिय तौर पर काम कर रहीं हैं। लेकिन अगर कांग्रेस राहुल या प्रियंका में से किसी एक को उतारती है तो अमेठी में भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है।
कैसा है जातीय समीकरण?
पिछले लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो अमेठी लोकसभा में वोटरों की कुल संख्या 17 लाख 16 हजार 102 थी। अनुमानित जातीय आंकड़ो के मुताबिक अमेठी में सबसे अधिक अनुसूचित जाति के मतदाता हैं। दलित मतदाताओं की संख्या लगभग 26 फीसदी है। मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 20 फीसदी है। 18 फीसदी ब्राह्मण मतदाता हैं। 11 फीसदी क्षत्रिय मतदाता हैं। यादव और मौर्य को मिलाकर मतादाताओं की संख्या कुल 16 फीसदी है। इसके अलावा 10 फीसदी मतदाता लोधी और कुर्मी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं।
Created On :   13 Feb 2024 6:24 PM IST