प्रचार में आमने सामने दो दिग्गज, अपने अपने राजनीतिक महत्व को बढ़ाने में जुटे
डिजिटल डेस्क, पटना। कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बाद बिहार में यह उपचुनाव यह भी तय करेगा कि कोरोना और बाढ़ प्रबंधन को लेकर नीतीश सरकार से लोग संतुष्ट हैं या नहीं। वहीं लोगों के दिलों में अभी लालू बसे है कि भूल गए। इसका पता चल जाएगा। चूँकि ये सीटें जेडीयू विधायकों के निधन की वजह से खाली हुई हैं इसलिए बीजेपी चुनावी मैदान में नहीं है। इन दोनों सीटों की हार जीत एक बार फिर बिहार के दो दिग्गजों के चेहरे पर टिकने की संभावना है। लालू प्रसाद यादव के चुनावी मैदान में आने से नीतीश के रंग कहीं फीके ना पड़ जाए।
तारापुर से जेडीयू विधायक और पूर्व मंत्री मेवालाल चौधरी की मृत्यु कोरोना संक्रमण से हुई थी तो कुशेश्वर स्थान की सीट वहां के जेडीयू विधायक शशि भूषण हजारी की मौत से खाली हुई।
तारापुर सीट यादव और कुशवाहा बहुल
जमुई संसदीय क्षेत्र में पड़ने वाली तारापुर विधानसभा सीट नीतीश कुमार की अति- पिछड़ावाद की रणनीति की हार-जीत से जुड़ी हुई है। पिछले चार विधानसभा चुनावों में यहाँ से कुशवाह समाज के प्रत्याशी ही चुनाव जीत रहे हैं और पिछले तीन चुनावों में इस सीट पर एक ही परिवार का कब्ज़ा रहा है
यादव और कुशवाहा बहुल इस विधानसभा क्षेत्र में वैश्य मतदाताओं का भी खासा प्रभाव है। इसके साथ ही अल्पसंख्यक और सवर्ण जाति की भी इलाके में ठीक-ठाक तादाद है। पिछले विधानसभा चुनाव में जेडीयू के प्रत्याशी मेवालाल चौधरी ने आरजेडी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री जय प्रकाश नारायण यादव की बेटी दिव्या प्रकाश को लगभग सात हज़ार मतों से पराजित किया था इलाकाई हसरतों की नुमाइंदगी करने के लिए यहाँ से जेडीयू ने पिछले तीन विधानसभा चुनावों की तरह इस बार भी कुशवाह जाति से आने वाले राजीव कुमार सिंह पर अपना दांव लगाया है। वहीं आरजेडी ने पहली बार यादव या कुशवाह समाज से हटकर वैश्य कार्ड खेला है। यहाँ से आरजेडी ने करीब 50 साल के प्रत्याशी अरुण साव को मैदान में उतारा है। एलएलबी की पढ़ाई पूरी कर चुके अरुण साव व्यवसायी हैं और एक बार आरजेडी की टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं।
कुशेश्वर का राजनीतिक गणित
वहीं 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई यह सीट दलितों के लिए आरक्षित है। कुशेश्वर स्थान विधानसभा सीट पर जेडीयू मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चुनावी सभा सोमवार से शुरू हो गयी है।
लालू प्रसाद यादव चुनावी मैदान में
लगभग तीन साल बाद लालू प्रसाद यादव चुनाव प्रचार कर रहे हैं। यह उपचुनाव तय करेगा कि लालू प्रसाद का करिश्माई जादुई मतदाताओं के बीच अब भी कायम है या नहीं, तेजस्वी की युवा नेतृत्व से मतदाता आकर्षित होते हैं या नीतीश कुमार पर अपना भरोसा बनाए रखते हैं इन तमाम अटकलों के बीच जानकारों का मानना है कि वर्तमान नीतीश सरकार बहुत ही मामूली बहुमत वाली सरकार है इसलिए यह उपचुनाव सीएम नीतीश कुमार के लिए इतना महत्वपूर्ण हो गया है जबकि महागठबंधन में दरार पड़ गयी है।
सत्तापक्ष अगर दोनों सीट हार जाती है तो सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन बहुमत के अंतर को बड़ा रखने के लिए इन सीटों का अधिक महत्व है। मात्र छह विधायकों के अंतर से यह सरकार चल रही है। वहीं लालू यादव के लिए यह उपचुनाव मतदाताओं के बीच अपने प्रभाव को दिखाने वाला और सत्तारूढ़ गठबंधन पर और हमलावर होने के मौके जैसा है वरिष्ठ पत्रकार अमरनाथ तिवारी ने बीबीसी बातचीत के दौरान बताया कि "दो सीटें हारने या जितने से किसी दल या सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, लेकिन इस उपचुनाव से जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस की प्रतिष्ठा जुड़ गयी है। उपचुनाव कितना महत्वपूर्ण है इस बात से समझा जा सकता है कि लालू प्रसाद को भी चुनाव के लिए आना पड़ा है। आरजेडी और कांग्रेस ने अलग होना उचित समझा, लेकिन अपनी दावेदारी नहीं छोड़ी। बहुकोणीय होते हुए भी यह उपचुनाव अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गया है।"
Created On :   27 Oct 2021 5:59 PM IST