सियासत बचाने के लिए अब इंदिरा गांधी की राह पर चलेंगे ठाकरे, शरद पवार के फॉर्मूले में छुपा है इंदिरा का ताकतवर इतिहास, जो बन सकता है ठाकरे का 'पावर प्ले'

To save politics, Thackeray will now follow Indira Gandhis path, Sharad Pawars formula has hidden Indiras powerful history, which can become Thackerays power play
सियासत बचाने के लिए अब इंदिरा गांधी की राह पर चलेंगे ठाकरे, शरद पवार के फॉर्मूले में छुपा है इंदिरा का ताकतवर इतिहास, जो बन सकता है ठाकरे का 'पावर प्ले'
इंदिरा की राह पर ठाकरे! सियासत बचाने के लिए अब इंदिरा गांधी की राह पर चलेंगे ठाकरे, शरद पवार के फॉर्मूले में छुपा है इंदिरा का ताकतवर इतिहास, जो बन सकता है ठाकरे का 'पावर प्ले'

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। इलेक्शन कमिशन के फैसले के बाद शिवसेना को गंवा चुके उद्धव ठाकरे अब इंदिरा गांधी के रास्ते पर चलने को मजबूर हो गए हैं। एनसीपी चीफ शरद पवार ने ठाकरे को ये उपाय सुझाया है। माना जा रहा है कि ठाकरे अगर इंदिरा गांधी की तरह दमदारी से मैदान में उतरते हैं और अपनी हार को पावर प्ले में बदल पाते हैं तो मुंबई और महाराष्ट्र पर उद्धव ठाकरे अपना राज कायम रख सकते हैं।

एनसीपी नेता शरद पवार ने कांग्रेस के चुनाव चिह्न का उदाहरण देते हुए उद्धव ठाकरे को कहा है कि, ''मुझे याद है, इंदिरा गांधी को भी ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा था। उस समय दो बैलों की जोड़ी कांग्रेस का चुनाव चिन्ह हुआ करता था। बाद में ये उनसे छिन गया और 'हाथ' चुनाव चिन्ह मिला, जिसे लोगों ने स्वीकार किया। इसी तरह लोग नया सिंबल (उद्धव गुट का) स्वीकार करेंगे।''

दो बैलों की जोड़ी था कांग्रेस का चुनाव चिह्न

दरअसल, शरद पवार की यह बात भारत की सबसे ताकतवर मानी जाने वाली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दौर की है। जब कांग्रेस पार्टी को एक बार नहीं बल्कि दो बार चुनाव चिह्न को बदलना पड़ा था। जानकारी के लिए बता दें कि, कांग्रेस पार्टी ने 1952, 1957 और 1962 लोकसभा चुनावों में पार्टी ने दो बैलों की जोड़ी चुनाव चिह्न के साथ चुनाव लड़ा था और केंद्र में अपनी मजबूत सरकार बनाई थी। लाल बहादुर शास्त्री के समय भी कांग्रेस का चुनाव चिह्न दो बैलों की जोड़ी ही थी।

                                                                     

जब पहली कांग्रेस का चुनाव चिह्न बदला

शास्त्री जी के निधन के बाद जब इंदिरा गांधी ने पार्टी की बागडोर संभाली, तब उन्हें पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की गुटबाजी का सामना करना पड़ा। इंदिरा गांधी के नेतृत्व को लेकर कांग्रेस पार्टी के भीतर कुछ नेता नाराज थे। उन्होंने बहुत से कांग्रेसियों को साथ लेकर कांग्रेस (आर) के नाम से नई पार्टी बना ली। इसके अलावा पार्टी का दूसरा धड़ा कांग्रेस (ओ) बना लिया गया था। इसमें अधिकतर नेता पार्टी के सीनियर थे। जिसके बाद इंदिरा गांधी की पार्टी कांग्रेस आर को बैलों की जोड़ी का चुनाव चिह्न नहीं मिला। फिर उन्होंने गाय और बछड़े को अपनी पार्टी का चुनाव चिह्न बनाया। जिसके बाद उन्होंने पार्टी के चुनाव चिह्न का जोरशोर से प्रचार किया। इस दौरान उन्होंने गरीबी हटाओ का नारा दिया था। साल 1971 आते-आते उन्होंने खुद को पार्टी के एक ब्रांड के तौर पर स्थापित कर लिया। 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी की नई पार्टी ने जबरदस्त कामयाबी हासिल की थी।

                                                                      

इंदिरा ने एक बार फिर चुनाव चिह्न को बदला

1975 के आते-आते कांग्रेस पार्टी एक बार फिर से बिखरने लगी। इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया था। जिसके बाद देशभर में इंदिरा गांधी के खिलाफ विरोध देखने को मिला था। इसका खामियाजा कांग्रेस को 1977 के लोकसभा चुनाव में झेलना पड़ा था। इसके पीछे की बड़ी वजह यह थी कि आपातकाल के दौरान कांग्रेस पार्टी के कई सीनियर लीडर्स इंदिरा गांधी का साथ छोड़ चुके थे। आम चुनाव में मिली हार का सारा ठीकरा कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने इंदिरा गांधी पर फोड़ा था। उसके बाद कांग्रेस पार्टी एक बार दो धड़ो में बंट गई। एक बार फिर पार्टी का एक खेमा इंदिरा गांधी के साथ था और दूसरा उनके विरोध में था। पार्टी के अंदरूनी कलह को कुचलने के लिए इंदिरा गांधी ने एक बार फिर से नई पार्टी बना ली। जिसका नाम कांग्रेस (आई) यानी इंदिरा कांग्रेस रखा गया था। 1977 के चुनाव के बाद कांग्रेस पार्टी के चुनाव चिह्न गाय और बछड़े का विरोधी नेताओं ने खूब मजाक बनाया था। विरोधियों ने तो यहां तक कहना शुरू कर दिया था कि गाय मतलब इंदिरा गांधी और बछड़ा मतलब संजय गांधी है। इसके बाद इंदिरा गांधी ने पुराने चुनाव चिन्ह को छोड़ने का फैसला किया। जिसके बाद तब से अब तक कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिह्न हाथ है। 

                                                                      

ऐसे छिना चुनाव चिह्न

महाराष्ट्र में जारी सियासी उठापटक के बीच केंद्रीय चुनाव आयोग ने शुक्रवार को शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न एकनाथ शिंदे गुट को सौंप दिया। चुनाव आयोग के इस फैसले के बाद उद्धव ठाकरे ने सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया। इस बीच राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार ने उद्धव ठाकरे को चुनाव आयोग का फैसला मानने की सलाह दी। साथ ही शरद पवार ने उद्धव ठाकरे को यह भी कहा है कि यह चुनाव आयोग का फैसला है और एक बार चुनाव आयोग ने फैसला दे दिया है, तो इस मुद्दे पर बहस करने का कोई मतलब नहीं रह जाता है। इसे स्वीकार कीजिए और नया चिह्न लीजिए। उन्होंने कहा कि बस इस मुद्दे पर कुछ दिनों तक चर्चा होगी। लोग उद्धव ठाकरे के नए चुनाव चिह्न को स्वीकार कर लेंगे। 


 

Created On :   18 Feb 2023 3:30 PM IST

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