जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों को भावनात्मक वादों से वोट नहीं मिलेगा

Political parties will not get votes with emotional promises in Jammu and Kashmir assembly elections
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों को भावनात्मक वादों से वोट नहीं मिलेगा
जम्मू सियासत जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों को भावनात्मक वादों से वोट नहीं मिलेगा

डिजिटल डेस्क, श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार देने वाले अनुच्छेद 370 और 35ए को जब से निरस्त किया गया है तब से राज्य के राजनीतिक परि²श्य के साथ-साथ जमीनी हकीकत भी बदल गई है। जम्मू-कश्मीर में भूमि को लेकर जो अधिकार दिए गए थे उनका अब कोई मतलब नहीं रह गया है। जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक दलों को अब आगामी विधानसभा चुनावों के दौरान मतदाताओं को लुभाने के लिए अन्य वादों के बारे में सोचना होगा।

राज्य में 70 सालों से राजनीति मुख्य रूप से क्षेत्रीय एकाधिकार बनी हुई है। कश्मीर के राजनीतिक दल चाहे वो नेशनल कांफ्रेंस (एनसी) हो, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) हो या यहां तक कि स्वतंत्र उम्मीदवार हों सब स्थानीय लालसा पर सफल हुए हैं। दिलचस्प बात यह है कि सभी स्थानीय राजनीतिक दलों के चुनाव अभियानों ने दिल्ली और श्रीनगर के बीच भावनात्मक और संवैधानिक दूरी को जिदा रखने पर ध्यान केंद्रित किया है।

एनसी और पीडीपी ने दिल्ली और श्रीनगर के बीच की दूरी को मजबूत करने का वादा कर जम्मू कश्मीर में दो चुनाव लड़े। राजनीतिक दलों ने पहले चुनाव में आंतरिक स्व-शासन का वादा किया और बाद में स्व-शासन का। लेकिन कोई भी वादा पूरा नहीं किया जा सका। जबकि पीपल्स कांफ्रेंस के पास राज्य के विशेष दर्जे की रक्षा के लिए अपना विजन डॉक्यूमेंट था।

तो वहीं भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर अन्य सभी राजनीतिक दलों ने कश्मीर के विशेष दर्जे को जारी रखने की वकालत की। जबकि हैरत की बात यह है कि कांग्रेस ने संघ में राज्य की विशेष स्थिति को भंग नहीं करने का वादा कर चुनावों के दौरान स्थानीय राजनीतिक दलों के साथ भी खिलवाड़ किया।

5 अगस्त 2019 के बाद जब जम्मू कश्मीर से उसका विशेष दर्जा छीन लिया गया, इसके बाद से सुरक्षा और स्वयं शासन, स्व-शासन और विजन दस्तावेज अतीत की बाते बन गई। 2019 के बाद राजनीतिक दलों को अपने संवादों में हजारों शिक्षित, बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार जैसे वादों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। इसके अलावा शहरों में बेहतर सड़कें बनाना और स्वास्थ्य देखभाल, प्राथमिक शिक्षा और बिजली की बेहतर उपलब्धता पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा।

अनुच्छेद 370 की बहाली सुप्रीम कोर्ट के पास लंबित मामला है। इस मुद्दे पर अदालत जो भी निर्णय देगी वह अंतिम फैसला होगा। राज्य का दर्जा वापस दिलाना एक और चुनावी वादा है जिसे स्थानीय राजनीतिक दल अपने चुनाव अभियानों और घोषणापत्रों में सबसे ऊपर रखेंगे।

विडंबना यह है कि स्थानीय राजनीतिक दल के नेता राज्य की बहाली की अपनी मांग के संबंध में संसद में दिए गए अमित शाह के बयान का हवाला देते रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे की बहाली के नारे पहले ही खोखले हो चुके हैं। ऐसा तब तक नहीं किया जा सकता जब तक कि देश की संसद अपने फैसले को पलटने का विकल्प नहीं चुन लेती।

विकास, पर्यटन, शिक्षा, रोजगार, उद्योग, हास्पिटैलिटी, हॉर्टिकल्चर, सड़कों और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए स्थानीय राजनीतिक और मध्यमार्गी राजनीतिक दलों के लिए आखिरकार क्या उपलब्ध है और हासिल करने योग्य है, इसके देखना चाहिए। राजनीति दलों को ठोस चुनावी वादे करने चाहिए जिन्हें व निभा सकें। मतदाता बहुत अच्छे से जानते हैं कि पिछले चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों के द्वारा किए गए वादे कितने खोखले और भावनात्मक थे जिनके परिणामस्वरूप राज्य में केवल मौतें हुईं हैं और राज्य का विनाश हुआ है।

(आईएएनएस)

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Created On :   27 Nov 2022 12:30 PM GMT

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