अपनी ही पार्टी के पीएम को दिखाया काला झंडा, जानिए गैंगस्टर से नेता बने आनंद मोहन के जीवन से जुड़ा यह चर्चित किस्सा

He came into limelight by showing black flag to his own partys PM Morarji Desai, know this famous story related to the life of gangster-turned-politician Anand Mohan
अपनी ही पार्टी के पीएम को दिखाया काला झंडा, जानिए गैंगस्टर से नेता बने आनंद मोहन के जीवन से जुड़ा यह चर्चित किस्सा
आनंद मोहन रिहाई मामला अपनी ही पार्टी के पीएम को दिखाया काला झंडा, जानिए गैंगस्टर से नेता बने आनंद मोहन के जीवन से जुड़ा यह चर्चित किस्सा

डिजिटल डेस्क, पटना। बिहार के बाहुबली नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन जेल से रिहा हो गए हैं। वह करीब 15 साल से सहरसा जेल में बंद थे। उन्हें साल 1994 में गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा हुई थी। इस सजा के तहत उन्हें अभी कुछ साल और जेल में रहना था लेकिन बिहार सरकार द्वारा जेल मैनुअल के नियमों में संशोधन किया गया। दरअसल, सरकार ने सरकारी सेवकों की हत्या करने वालों की रिहाई नहीं होने वाला नियम जेल मैन्युल से हटा दिया। जिसके परिणामस्वरूप आनंद मोहन समय से पहले ही जेल से रिहा हो गए। उनके साथ 26 अन्य कैदियों को भी रिहा किया गया। आनंद मोहन की रिहाई के बाद से सियासी गलियारों में बवाल मचा हुआ है।   

राजनीति में एंट्री

आनंद मोहन की राजनीति में एंट्री 1974 में जेपी आंदोलन के दौरान हुई थी। महज 17 साल की उम्र में राजनीति में आने वाले आनंद मोहन इमरजेंसी के विरोध करने पर दो साल जेल में भी रहे। उनका नाम बिहार के उन नेताओं में शामिल है जिनकी 90 के दशक में तूती बोला करती थी। वह साल 1990 में सहरसा जिले की महिषी सीट से जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते और पहली बार विधायक बने। राज्य के सवर्ण नेता के रूप में पहचान बनाने वाले आनंद मोहन ने साल 1993 में सवर्णों के हक के लिए बिहार पीपुल्स पार्टी बनाई। जिस समय वो राजनीति में आए बिहार के सीएम लालू यादव थे और मंडल-कमंडल की राजनीति अपने चरम पर थी। लालू ने मंडल कमीशन का सपोर्ट किया जबकि आनंद मोहन ने इसका खुलकर विरोध किया। जिसके चलते वह लालू के घोर विरोधी बने। जनता दल से लेकर आरजेडी, कांग्रेस, बीजेपी और सपा के साथ नाता रखने वाले सवर्ण नेता आनंद मोहन का सियासी रसूख ही कहिए कि रिहाई के बाद आज कोई भी दल उनका खुलकर विरोध नहीं कर पा रहा है। 

जब अपनी ही पार्टी के प्रधानमंत्री का किया विरोध

इमरजेंसी लगाने पर कांग्रेस और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का विरोध करने वाले आनंद मोहन ने इमरजेंसी हटने के बाद जनता पार्टी का सपोर्ट किया। जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद देश के प्रधानमंत्री बने मोरारजी देसाई एक रैली में सहरसा पहुंचे। जिस जगह उनका मंच था वहां सुरक्षा को देखते हुए बांस-बल्ला लगा दिया गया। मंच के सामने बांस-बल्ला लगाना पार्टी के युवा कार्यकर्ता आनंद मोहन को पसंद नहीं आया। उन्होंने इसका विरोध किया और सभा में अपनी काले रंग की शर्ट खोलकर लहरा दी और नारा लगाने लगे। उनका नारा था, 'बांस-बल्ले की सरकार नहीं चलेगी।' मोहन ने ऐसा तब तक किया जब तक कि पुलिस उन्हें वहां से ले नहीं गई। 

दरअसल, आनंद मोहन को बांस-बल्ले के सुरक्षा घेरे से दिक्कत उस समय से थी जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। एक बार इंदिरा भी रैली करने सहरसा आई थीं। तब भी उनकी सुरक्षा के लिए बांस-बल्ला लगा था। आनंद मोहन को यह पसंद नहीं आया कि जनता का नेता इस तरह से कैसे जनता को खुद से दूर रखने के लिए सुरक्षा घेरे में रख सकता है। इस तरह जब अपनी ही पार्टी के शीर्ष नेता की सभा में उन्हें ये सुरक्षा घेरा दिखा तो उन्होंने अपना आपा खो दिया। 

उनके करीबी बताते हैं कि जनता की सरकार कहने वाले नेता का खुद को इस तरह से जनता से दूर रखना आनंद मोहन को नागंवार गुजरा। सहरसा के एसपी आवास के पास में स्थित मैदान में हुए इस कार्यक्रम में आनंद मोहन काला झंडा लेकर नहीं गए थे, लेकिन काली शर्ट पहन कर गए थे। उन्होंने उसे ही उतारकर हवा में लहराना शुरू कर दिया और साथ में जोर-जोर से नारे भी लगाए। 

काली शर्ट दिखाने पर सभा में मौजूद पुलिस वाले उन्हें वहां से ले गए और पिटाई करने के बाद उन्हें छोड़ दिया। बताया जाता है कि इसी घटना के बाद सहरसा के लोगों की नजरों में पहली बार आनंद मोहन चमके थे। 

Created On :   27 April 2023 11:10 AM GMT

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